विश्व / अंटार्कटिका में टूटा 315 अरब टन का आइसबर्ग, जलवायु परिवर्तन कारण नहीं

अंटार्कटिका में पिछले सप्ताह अमेरी आइस शेल्फ से लगभग लंदन के आकार का 315 अरब टन का एक आइसबर्ग टूट गया। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसमें बड़े आइसबर्ग से बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े निकलते हैं। स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी के एक शोधकर्ता ने कहा है, "इस आइसबर्ग के टूटने और जलवायु परिवर्तन का कोई संंबंध नहीं है।"

RT : Oct 02, 2019, 10:43 AM
दुनिया के एकमात्र निर्जन महाद्वीप अंटार्कटिका से एक बड़ा हिमखंड टूटकर अलग हो गया है. इस हिमखंड का आकार 1,500 वर्ग किलोमीटर यानी दिल्ली के आकार से भी बड़ा है. दुनिया के वैज्ञानिक इस घटना के इंतजार में थे. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये घटना जलवायु परिवर्तन की वजह से नहीं हुई है. इस हिमखंड को डी 28 नाम दिया गया था. हिमखंड टूटने की इस घटना को यूरोपीय संघ के उपग्रह सेंटिनल 1 ने कैद कर लिया

यह अंटार्कटिका के अमेरी हिम इलाके से अलग हुआ है. नासा और दूसरी एजेंसियों के मुताबिक पिछली बार ऐसा बड़ा हिमखंड अंटार्कटिका से अलग होने की घटना 1960 में हुई थी. तब एक करीब 9800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का हिमखंड अंटार्कटिका से अलग हो गया था.

वैज्ञानिकों के मुताबिक इस हिमखंड के अलग होने के पीछे जलवायु परिवर्तन नहीं है. ये एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में किसी भी बड़े ग्लेशियर का एक हिस्सा सालों तक उस ग्लेशियर से अलग होता रहता है. यह हिमखंड भी पिछले 10 साल से अपने मूल ग्लेशियर से अलग होने की प्रक्रिया में था. इसकी दांतेदार संरचना की वजह से अब इसे अलग अलग निकनेम दिए जा रहे हैं. स्क्रिप्स इंस्टीट्यूट ऑफ ओशेनोग्राफी के वैज्ञानिक हेलेन फ्रिकर ने ब्रिटिश न्यूज सर्विस बीबीसी से बात करते हुए कहा कि लोग अंटार्कटिका को लेकर बेहद चिंतित हैं लेकिन इस हिमखंड का अलग होना किसी तरह की चेतावनी नहीं है. इस हिमखंड का अलग होना प्राकृतिक है. इससे अंटार्कटिका को कोई खतरा नहीं है.