लाइफस्टाइल / श्रीकृष्ण की अर्जुन को बताई वो 5 बातें, जिन्हें अपनाकर जीवन के हर कदम पर मिलती है सफलता

महाभारत युद्ध के दौरान जब अर्जुन ने शस्त्र छोड़ दिए थे। तो श्रीकृष्ण उन्हें सीख देते हुए कर्म को प्राथमिकता देने की बात कही थी। देखा जाए, तो श्रीकृष्ण के दिए हुई इन सीखों की प्रासंगिकता आज भी है। गीता के श्लोक में भगवान कृष्ण ने मानव शरीर को मात्र एक कपड़े का टुकड़ा कहा है। हम क्रोध को एक सामान्य भावना मानते हैं लेकिन ये सामान्य भावना व्यक्ति के भीतर भ्रम की स्थिति पैदा करती है।

लाइफस्टाइल डेस्क | कहते हैं कि श्रीकृष्ण से बड़ा कोई उपदेशक नहीं है। महाभारत युद्ध के दौरान जब अर्जुन ने शस्त्र छोड़ दिए थे और अपनों को रणभूमि में देखकर वो दुख और दुविधा से घिर गए थे, तो श्रीकृष्ण उन्हें सीख देते हुए कर्म को प्राथमिकता देने की बात कही थी। देखा जाए, तो श्रीकृष्ण के दिए हुई इन सीखों की प्रासंगिकता आज भी है। आप इन सबक पर ध्यान देकर जीवन में सफल हो सकते हैं- 

आइए, जानते हैं-

व्यक्ति की आत्मा से होती है उसकी पहचान 

गीता के श्लोक में भगवान कृष्ण ने मानव शरीर को मात्र एक कपड़े का टुकड़ा कहा है। ऐसा कपड़ा जिसे आत्मा हर जन्म में बदलती है। अर्थात मानव शरीर, आत्मा का अस्थायी वस्त्र है, जिसे हर जन्म में बदला जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि हमें शरीर से नहीं उसकी आत्मा से व्यक्ति की पहचान करनी चाहिए।

क्रोध को त्याग दें

हम क्रोध को एक सामान्य भावना मानते हैं लेकिन ये सामान्य भावना व्यक्ति के भीतर भ्रम की स्थिति पैदा करती है। इसके फलस्वरूप हमारा मस्तिष्क सही और गलत के बीच अंतर करना छोड़ देता है, इसलिए इंसान को क्रोध के हालातों से बचकर हमेशा शांत रहना चाहिए।

अति बुद्धि-विवेक को करती है नष्ट 

आपने कई बार सुना होगा कि किसी भी प्रकार की अधिकता इंसान के लिए घातक सिद्ध होती है। संबंधों में कड़वाहट हो या फिर मधुरता, खुशी हो या गम, हमें कभी भी “अति” नहीं करनी चाहिए। जीवन में संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है।

स्वार्थी न बनें 

इंसान का स्वार्थ उसे अन्य लोगों से दूर ले जाकर नकारात्मक हालातों की ओर धकेलता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति अकेला रह जाता है। स्वार्थ शीशे में फैली धूल की तरह है, जिसकी वजह से व्यक्ति अपना प्रतिबिंब ही नहीं देख पाता। अगर जीवन में खुश रहना चाहते हैं तो स्वार्थ को कभी अपने पास भी ना आने दें।

अपने कर्मों को प्राथमिकता दें 

इंसान को कभी अपने कर्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। उसका जीवन उसके कर्मों के आधार पर ही फल देगा, इसलिए कर्म करने में कभी हिचकना नहीं चाहिए, जीवन में स्थायित्व और निष्क्रियता शिथिलता प्रदान करती है।