News18 : Jun 21, 2020, 05:46 PM
नॉर्थ कोरिया: कोरोना संक्रमण (coronavirus infection) से जूझते कई देशों पर एक और खतरा मंडरा रहा है। माना जा रहा है कि नॉर्थ कोरिया का एक हैकर ग्रुप कोरोना के नाम पर देशों को ठगने की योजना (North Korean group of hackers to launch a fishing campaign during coronavirus) बना चुका है। लैजारस (Lazarus) नाम का ये ग्रुप लोगों को फर्जी ईमेल भेज सकता है, जिसके जरिए निजी जानकारी हासिल कर बड़ा घपला किया जा सकता है। खुद देश की ऑफिशियल साइबर सिक्योरिटी एजेंसी Cert-IN ने ऑनलाइन हैकिंग (Online Hacking) को लेकर एडवाइजरी जारी की है। इसमें बताया गया कि है उत्तर कोरियाई हैकर्स 21 जून यानी आज से निशाना साधना शुरू कर सकते हैं। इसमें विश्वसनीय लगने वाली ईमेल ID उपयोग की जा सकती हैं। वैसे दुनिया के सबसे रहस्यमयी देशों में शुमार नॉर्थ कोरिया में हैकर्स काफी एडवांस है। माना जाता है कि इनके पास हैकिंग की अत्याधुनिक तकनीकें हैं।
ऐसे हो सकती है हैंकिंगहैकिंग की इस योजना का खुलासा सिक्योरिटी रिसर्च फर्म CYFIRMA ने किया है। सीएनबीसी टीवी18 में प्रकाशित खबर के मुताबिक CYFIRMA ने कहा है कि हैकर्स लोगों को ठगने के लिए बड़ा फिशिंग हमला करने की फिराक में है। जानकारी के मुताबिक भारत समेत अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया के करीब 50 लाख यूजर्स इस हैकर्स ग्रुप का निशाना बन सकते हैं।क्यों हैकर्स इन 6 देशों को निशाना बना रहे है, इसके पीछे एक खास वजह है। असल में कोरोना और उससे लगी बंदी के कारण देशों की इकनॉमी को पटरी पर लाने के लिए इन छहों देशों ने उद्योग-व्यापार को फंडिंग देने की बात की है। भारत में भी 20 लाख करोड़ रुपये की आर्थिक मदद की घोषणा की गई है। ऐसे में हैकर्स लोगों के साथ-साथ संस्थाओं को भी निशाना बना सकते हैं। मेल किसी आधिकारिक लगने वाले स्त्रोत से भेजा जाएगा और उसमें फ्री कोरोना जांच की बात कहते हुए जानकारी मांगी जा सकती है।क्या है ये नॉर्थ कोरियन ग्रुपलैजारस ग्रुप को नॉर्थ कोरिया का इंटेलिजेंस ब्यूरो Reconnaissance General Burea कंट्रोल करता है। साल 2009 में बनी ये खुफिया एजेंसी खासकर अमेरिका, साउथ कोरिया और जापान पर निशाना साधती है। इसके तहत वहां के बड़े प्रोग्राम को हैक करने सामाजिक और वित्तीय गड़बड़ियां पैदा करने की कोशिश की जाती है। इसी खुफिया एजेंसी के तहत आता है लेजारस समूह। इसमें काम करने वाले हैकर खुद को Guardians of Peace भी कहते हैं यानी शांति के रखवाले।पहले भी किए हैं बड़े अपराधबीते 10 सालों में ये समूह और ज्यादा एडवांस होता गया। साल 2014 में जब इसने सोनी पिक्चर्स के गुप्त डाटा लीक किए, तब पहली बार दुनिया को अंदाजा हो सका कि नॉर्थ कोरिया के हैकर्स कितने आगे निकल चुके हैं। बैंकों की लूट में भी इनका कोई मुकाबला नहीं। ये कई इंटरनेशनल बैंकों में चपत लगा चुके हैं। कुवैत के बैंक से भी ये ग्रुप 49 मिलियन डॉलर निकाल चुका है। अब इसपर लगातार अमेरिका भी चेतावनी देने लगा है।चीन देता है इन्हें प्रशिक्षणकहा जाता है कि लैजारस ग्रुप को हैकिंग की ये ट्रेनिंग चीन से मिलती है। हैकिंग जानने वालों को एडवांस ट्रेनिंग के लिए सरकारी खर्च पर चीन के शेनयांग भेजा जाता है। यहां पर इन्हें मालवेयर की ट्रेनिंग मिलती है। मालवेयर यानी कंप्यूटर से इंटरनल छेड़छाड़ करना ताकि उसमें गड़बड़ी पैदा की जा सके। चीन में ट्रेंड होने के बाद लौटने पर हैकर्स को Kim Chaek University of Technology में और भी ट्रेनिंग दी जाती है। इस तरह से वे इंटरनेशनल हैकर्स की कतार में आ जाते हैं।शानोशौकत से जीते हैं यहां हैकर्सवॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक हैकर्स को उत्तर कोरिया में उसी तरह से ट्रेंड किया जाता है, जैसे देश अपने यहां ओलंपिक खिलाड़ियों को बनाते हैं। 11 साल की उम्र होते-होते ही ऐसे बच्चों की पहचान कर ली जाती है, जो कंप्यूटर में दिलचस्पी रखते हैं। ऐसे बच्चों को अलग से स्पेशल ट्रेनिंग पढ़ाई के साथ मिलने लगती है। इसके बाद उन्हें चीन भेजकर और पक्का बनाया जाता है। वहां से लौटे हुए साइबर क्रिमिनल्स को साइबर यूनिट में रख लिया जाता है। इसके बाद क्रिमिनल्स की जिंदगी ऐशोआराम से बीतती है।माना जाता है कि हैकर्स जब इंटरनेशनल बैंकों में सेंध लगाते हैं तो वो पैसे वर्कर्स पार्टी (Worker’s Party) के हेडक्वार्टर में बने ऑफिस 39 में जाता है। ये किम का खुफिया ऑफिस है, जिसतक केवल किम, उनकी बहन और कुछ वफादारों की ही पहुंच है। यहां बाहर से आने वाली रकम और सारे वैध-अवैध तरीकों से आए कीमती चीजों की निगरानी की जाती है।साल 2010 में U।S। Treasury Department ने इस ऑफिस के बारे में कहा कि अवैध स्त्रोतों से यहां आई रकम Korea Daesong Bank और Korea Daesong General Trading Corporation के पास जाती है। ये आरोप लगाया गया कि ये दफ्तर असल में डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया की सरकार की एक गुप्त शाखा है,जो किम परिवार को मदद करती है। इसमें अवैध तरीके से आए पैसे ही होते हैं।
ऐसे हो सकती है हैंकिंगहैकिंग की इस योजना का खुलासा सिक्योरिटी रिसर्च फर्म CYFIRMA ने किया है। सीएनबीसी टीवी18 में प्रकाशित खबर के मुताबिक CYFIRMA ने कहा है कि हैकर्स लोगों को ठगने के लिए बड़ा फिशिंग हमला करने की फिराक में है। जानकारी के मुताबिक भारत समेत अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया के करीब 50 लाख यूजर्स इस हैकर्स ग्रुप का निशाना बन सकते हैं।क्यों हैकर्स इन 6 देशों को निशाना बना रहे है, इसके पीछे एक खास वजह है। असल में कोरोना और उससे लगी बंदी के कारण देशों की इकनॉमी को पटरी पर लाने के लिए इन छहों देशों ने उद्योग-व्यापार को फंडिंग देने की बात की है। भारत में भी 20 लाख करोड़ रुपये की आर्थिक मदद की घोषणा की गई है। ऐसे में हैकर्स लोगों के साथ-साथ संस्थाओं को भी निशाना बना सकते हैं। मेल किसी आधिकारिक लगने वाले स्त्रोत से भेजा जाएगा और उसमें फ्री कोरोना जांच की बात कहते हुए जानकारी मांगी जा सकती है।क्या है ये नॉर्थ कोरियन ग्रुपलैजारस ग्रुप को नॉर्थ कोरिया का इंटेलिजेंस ब्यूरो Reconnaissance General Burea कंट्रोल करता है। साल 2009 में बनी ये खुफिया एजेंसी खासकर अमेरिका, साउथ कोरिया और जापान पर निशाना साधती है। इसके तहत वहां के बड़े प्रोग्राम को हैक करने सामाजिक और वित्तीय गड़बड़ियां पैदा करने की कोशिश की जाती है। इसी खुफिया एजेंसी के तहत आता है लेजारस समूह। इसमें काम करने वाले हैकर खुद को Guardians of Peace भी कहते हैं यानी शांति के रखवाले।पहले भी किए हैं बड़े अपराधबीते 10 सालों में ये समूह और ज्यादा एडवांस होता गया। साल 2014 में जब इसने सोनी पिक्चर्स के गुप्त डाटा लीक किए, तब पहली बार दुनिया को अंदाजा हो सका कि नॉर्थ कोरिया के हैकर्स कितने आगे निकल चुके हैं। बैंकों की लूट में भी इनका कोई मुकाबला नहीं। ये कई इंटरनेशनल बैंकों में चपत लगा चुके हैं। कुवैत के बैंक से भी ये ग्रुप 49 मिलियन डॉलर निकाल चुका है। अब इसपर लगातार अमेरिका भी चेतावनी देने लगा है।चीन देता है इन्हें प्रशिक्षणकहा जाता है कि लैजारस ग्रुप को हैकिंग की ये ट्रेनिंग चीन से मिलती है। हैकिंग जानने वालों को एडवांस ट्रेनिंग के लिए सरकारी खर्च पर चीन के शेनयांग भेजा जाता है। यहां पर इन्हें मालवेयर की ट्रेनिंग मिलती है। मालवेयर यानी कंप्यूटर से इंटरनल छेड़छाड़ करना ताकि उसमें गड़बड़ी पैदा की जा सके। चीन में ट्रेंड होने के बाद लौटने पर हैकर्स को Kim Chaek University of Technology में और भी ट्रेनिंग दी जाती है। इस तरह से वे इंटरनेशनल हैकर्स की कतार में आ जाते हैं।शानोशौकत से जीते हैं यहां हैकर्सवॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक हैकर्स को उत्तर कोरिया में उसी तरह से ट्रेंड किया जाता है, जैसे देश अपने यहां ओलंपिक खिलाड़ियों को बनाते हैं। 11 साल की उम्र होते-होते ही ऐसे बच्चों की पहचान कर ली जाती है, जो कंप्यूटर में दिलचस्पी रखते हैं। ऐसे बच्चों को अलग से स्पेशल ट्रेनिंग पढ़ाई के साथ मिलने लगती है। इसके बाद उन्हें चीन भेजकर और पक्का बनाया जाता है। वहां से लौटे हुए साइबर क्रिमिनल्स को साइबर यूनिट में रख लिया जाता है। इसके बाद क्रिमिनल्स की जिंदगी ऐशोआराम से बीतती है।माना जाता है कि हैकर्स जब इंटरनेशनल बैंकों में सेंध लगाते हैं तो वो पैसे वर्कर्स पार्टी (Worker’s Party) के हेडक्वार्टर में बने ऑफिस 39 में जाता है। ये किम का खुफिया ऑफिस है, जिसतक केवल किम, उनकी बहन और कुछ वफादारों की ही पहुंच है। यहां बाहर से आने वाली रकम और सारे वैध-अवैध तरीकों से आए कीमती चीजों की निगरानी की जाती है।साल 2010 में U।S। Treasury Department ने इस ऑफिस के बारे में कहा कि अवैध स्त्रोतों से यहां आई रकम Korea Daesong Bank और Korea Daesong General Trading Corporation के पास जाती है। ये आरोप लगाया गया कि ये दफ्तर असल में डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया की सरकार की एक गुप्त शाखा है,जो किम परिवार को मदद करती है। इसमें अवैध तरीके से आए पैसे ही होते हैं।