Live Hindustan : Sep 13, 2019, 07:56 AM
उच्चतम न्यायालय में रामजन्मभूमि विवाद की सुनवाई अंतिम चरण में पहुंच गई है। मुस्लिम पक्ष की ओर से अधिवक्ता राजीव धवन ने अपनी दलीलें गुरुवार को पूरी कर लीं।
‘लिमिटेशन एक्ट’ का हवाला दिया : मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ के समक्ष धवन ने कहा, ‘हिंदू पक्ष जबरन घुसकर कब्जा करने के बाद स्थल पर मालिकाना हक मांग रहा है। क्या गैरकानूनी कार्य करने के बाद प्रतिकूल कब्जे का फायदा लिया जा सकता है?’ उन्होंने कहा कि लिमिटेशन एक्ट (मुकदमा दायर करने की समयसीमा संबंधी कानून) की धारा 65 और 142 के तहत प्रतिकूल कब्जा तभी होगा, जब इसमें कब्जे का एनिमस (इरादा) और कॉर्पस (वस्तु) हो तथा ये दोनों संयुक्त रूप से मौजूद हों। इसमें संवेदना और तंगियों को कोई तवज्जो नहीं दी जाती। प्रतिकूल कब्जा बलपूर्वक नहीं होता : धवन ने कहा, ‘हमने 1934 में उन्हें पूजा करने की अनुमति दी तो इसका मतलब यह नहीं है वे स्थल पर अधिकार जताने लगेंगे। प्रतिकूल कब्जे के लिए जरूरी है कि यह बलपूर्वक न हो। बाद में मजिस्ट्रेट का आदेश आ गया कि पूजा जारी रखी जाए। यह आदेश एक लगातार जारी रहने वाली गलती थी, जिसके आधार पर अब कब्जा मांगा जा रहा है।’ उन्होंने कहा कि कब्जे का एकमात्र उद्देश्य लिमिटेशन एक्ट से बचना था और कुछ नहीं। कब्जा (अंदरूनी आंगन में प्रतिमा रखना) दिसंबर 1949 में लिया गया और 1959 में प्रतिकूल कब्जे के आधार पर टाइटल लेने के लिए केस दायर कर दिया गया। जज ने पूछा, किसने करने दिया कब्जाजस्टिस बोब्डे ने पूछा कि उन्हें कब्जा किसने करने दिया और एक विशेष काम (पूजा) की अनुमति किससे मिली। इस पर धवन ने कहा, ‘यदि मुझे उच्चचम न्यायालय में आने की अनुमति है तो क्या कल मैं यह कह सकता हूं कि उच्चचम न्यायालय मेरा है। यह लाइसेंस मुझे बार काउंसिल ने दिया है और वह इसे वापस ले सकती है।’ जस्टिस बोब्डे ने धवन से कहा कि आपको यहां प्रैक्टिस करने की अनुमति है। इसे टाइटल विवाद के साथ जोड़ा नहीं जा सकता। सुनवाई शुक्रवार को जारी रहेगी।10 दिन में पूरी हो सकती है सुनवाईशुक्रवार से अधिवक्ता जफरयाब जिलानी बहस शुरू करेंगे। वह विवादित स्थल पर वर्ष 1934 के बाद की स्थिति पर अपनी दलीलें रखेंगे। जिलानी के बाद बाद मुस्लिम पक्ष की ओर से कुछ कानूनी बिंदुओं पर संभवत: वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े बहस करेंगे, फिर धवन मुस्लिम पक्ष की बहस को समाप्त करेंगे। यह पूरी कार्यवाही अधिकतम दस दिन में पूरी होने की संभावना है।कानूनी बिंदुओं पर केंद्रित मुस्लिम पक्ष की दलीलेंअध्योघ्या में विवादित स्थल पर मालिकाना हक के लिए उच्चचम न्यायालय में छह दिन चली मुस्लिम पक्ष की दलीलें मुख्य रूप से कानून पर केंद्रित रहीं। उसके वकीलों न तो इतिहास का हवाला दिया, न ही पुरातात्विक सबूतों का। वहीं, हिंदू पक्ष ने वैदिक काल (ईसा पूर्व) से लेकर मुगलकाल और ब्रिटिश राज के समय, गजेटियर, पुरातत्व सबूत, फिरंग यात्रियों के वृत्तांत तक का हवाला दिया।
‘लिमिटेशन एक्ट’ का हवाला दिया : मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ के समक्ष धवन ने कहा, ‘हिंदू पक्ष जबरन घुसकर कब्जा करने के बाद स्थल पर मालिकाना हक मांग रहा है। क्या गैरकानूनी कार्य करने के बाद प्रतिकूल कब्जे का फायदा लिया जा सकता है?’ उन्होंने कहा कि लिमिटेशन एक्ट (मुकदमा दायर करने की समयसीमा संबंधी कानून) की धारा 65 और 142 के तहत प्रतिकूल कब्जा तभी होगा, जब इसमें कब्जे का एनिमस (इरादा) और कॉर्पस (वस्तु) हो तथा ये दोनों संयुक्त रूप से मौजूद हों। इसमें संवेदना और तंगियों को कोई तवज्जो नहीं दी जाती। प्रतिकूल कब्जा बलपूर्वक नहीं होता : धवन ने कहा, ‘हमने 1934 में उन्हें पूजा करने की अनुमति दी तो इसका मतलब यह नहीं है वे स्थल पर अधिकार जताने लगेंगे। प्रतिकूल कब्जे के लिए जरूरी है कि यह बलपूर्वक न हो। बाद में मजिस्ट्रेट का आदेश आ गया कि पूजा जारी रखी जाए। यह आदेश एक लगातार जारी रहने वाली गलती थी, जिसके आधार पर अब कब्जा मांगा जा रहा है।’ उन्होंने कहा कि कब्जे का एकमात्र उद्देश्य लिमिटेशन एक्ट से बचना था और कुछ नहीं। कब्जा (अंदरूनी आंगन में प्रतिमा रखना) दिसंबर 1949 में लिया गया और 1959 में प्रतिकूल कब्जे के आधार पर टाइटल लेने के लिए केस दायर कर दिया गया। जज ने पूछा, किसने करने दिया कब्जाजस्टिस बोब्डे ने पूछा कि उन्हें कब्जा किसने करने दिया और एक विशेष काम (पूजा) की अनुमति किससे मिली। इस पर धवन ने कहा, ‘यदि मुझे उच्चचम न्यायालय में आने की अनुमति है तो क्या कल मैं यह कह सकता हूं कि उच्चचम न्यायालय मेरा है। यह लाइसेंस मुझे बार काउंसिल ने दिया है और वह इसे वापस ले सकती है।’ जस्टिस बोब्डे ने धवन से कहा कि आपको यहां प्रैक्टिस करने की अनुमति है। इसे टाइटल विवाद के साथ जोड़ा नहीं जा सकता। सुनवाई शुक्रवार को जारी रहेगी।10 दिन में पूरी हो सकती है सुनवाईशुक्रवार से अधिवक्ता जफरयाब जिलानी बहस शुरू करेंगे। वह विवादित स्थल पर वर्ष 1934 के बाद की स्थिति पर अपनी दलीलें रखेंगे। जिलानी के बाद बाद मुस्लिम पक्ष की ओर से कुछ कानूनी बिंदुओं पर संभवत: वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े बहस करेंगे, फिर धवन मुस्लिम पक्ष की बहस को समाप्त करेंगे। यह पूरी कार्यवाही अधिकतम दस दिन में पूरी होने की संभावना है।कानूनी बिंदुओं पर केंद्रित मुस्लिम पक्ष की दलीलेंअध्योघ्या में विवादित स्थल पर मालिकाना हक के लिए उच्चचम न्यायालय में छह दिन चली मुस्लिम पक्ष की दलीलें मुख्य रूप से कानून पर केंद्रित रहीं। उसके वकीलों न तो इतिहास का हवाला दिया, न ही पुरातात्विक सबूतों का। वहीं, हिंदू पक्ष ने वैदिक काल (ईसा पूर्व) से लेकर मुगलकाल और ब्रिटिश राज के समय, गजेटियर, पुरातत्व सबूत, फिरंग यात्रियों के वृत्तांत तक का हवाला दिया।