देश / ज्वालामुखी विस्फोट के बाद भारतीय मानसून का सटीक अनुमान संभव : रिपोर्ट

बड़े ज्वालामुखी विस्फोट भारतीय मानसून के पूर्वानुमान का सटीक आकलन करने में मदद दे सकते हैं। एक भारत-जर्मन संयुक्त शोध टीम के मुताबिक, अनियिमत होने के कारण ज्वालामुखी विस्फोट पूर्वानुमान की क्षमता में सुधार करते हैं। कृषि आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था में मानसून की एक खास अहमियत है और इसकी बदौलत अच्छी बारिश होने से ही 1.38 अरब लोगों की रोजीरोटी का इंतजाम हो पाता है।

AMAR UJALA : Sep 20, 2020, 08:45 AM
Delhi: बड़े ज्वालामुखी विस्फोट भारतीय मानसून के पूर्वानुमान का सटीक आकलन करने में मदद दे सकते हैं। एक भारत-जर्मन संयुक्त शोध टीम के मुताबिक, अनियिमत होने के कारण ज्वालामुखी विस्फोट पूर्वानुमान की क्षमता में सुधार करते हैं। कृषि आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था में मानसून की एक खास अहमियत है और इसकी बदौलत अच्छी बारिश होने से ही 1.38 अरब लोगों की रोजीरोटी का इंतजाम हो पाता है।

शोधकर्ताओं ने मौसम से जुड़ी टिप्पणियों, जलवायु रिकॉर्ड, कंप्यूटर मॉडल सिमुलेशन और पेड़ों के छल्ले, मूंगा, गुफा में जमी परतें और पृथ्वी के इतिहास में लाखों साल से दबी पड़ी आइस कोर का डाटा एकसाथ जोड़ा था। इसके बाद शोधकर्ताओं ने इस संयुक्त डाटा की जांच की।

जांच में शोधकर्ताओं ने पाया कि भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून का अल नीनो के सबसे मजबूत संस्करण के साथ संबंध वर्षा सीजन में बारिश का सटीक आकलन करने में मदद करता है।

पुणे स्थित भारतीय उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के आर. कृष्णन ने कहा, बड़े ज्वालामुखी में विस्फोट से छोटे कण और गैसें बड़ी मात्रा में जलवायु में घुस जाते हैं और बहुत दिनों तक वहीं पर बनी रहते हैं।

वायुमंडलीय क्षेत्र में ज्वालामुखी से निकले पदार्थ कुछ सीमा तक सूर्य की रोशनी को धरती की सतह तक पहुंचने में बाधित कर देते हैं और निम्न सौर दबाव के चलते अगले सीजन में अल नीनो प्रभाव बनने की संभावना बढ़ जाती है।

उन्होंने कहा कि, ऐसा इसलिए है, क्योंकि कम धूप का अर्थ है कम गरमी और इस प्रकार उत्तरी तथा दक्षिणी गोलार्ध के बीच तापमान अंतरों में बदलाव आ जाता है, जो वातावरण के बड़े पैमाने पर वायु परिसंचरण तथा वर्षण गतिशीलता को प्रभावित करता है।

पोट्सडैम जलवायु प्रभाव अनुसंधान संस्थान (पीआईके) के नौर्बर्ट मारवान ने कहा, उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर और भारतीय मानसून के बीच समतुल्यता में धीरे-धीरे परिवर्तन हो रहा है। इसका एक कारण में मानव निर्मित ग्लेाबल वार्मिंग है, जो मानसून के सटीक पूर्वानुमान को बदतर बना रहा है। अब ये निष्कर्ष मानसून के पूर्वानुमान के लिए एक नई राह का संकेत देते हैं।