Sanjay Malhotra: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) में 2024 का वर्ष ऐतिहासिक बदलावों का साक्षी रहा। गवर्नर शक्तिकांत दास के नेतृत्व में आरबीआई ने ब्याज दरों में कटौती के लिए बढ़ते दबाव को अनदेखा करते हुए मुख्य ध्यान महंगाई पर बनाए रखा। अब, नए गवर्नर संजय मल्होत्रा के समक्ष यह बड़ा प्रश्न है कि क्या वे आर्थिक वृद्धि को प्राथमिकता देंगे या मुद्रास्फीति पर सख्त नियंत्रण बनाए रखने की दास की नीति को जारी रखेंगे।
दास का कार्यकाल: चुनौतियों से जूझता नेतृत्व
शक्तिकांत दास ने 2016 में नोटबंदी के बाद आरबीआई का कार्यभार संभाला। उनके नेतृत्व में केंद्रीय बैंक ने न केवल वित्तीय स्थिरता बनाए रखी, बल्कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में अहम भूमिका निभाई। दास के छह वर्षों के कार्यकाल में आरबीआई ने मौद्रिक नीतियों को कुशलतापूर्वक संचालित किया और 2024 के अंत तक प्रमुख नीतिगत दर रेपो को अपरिवर्तित रखा।महामारी के दौर में उनकी निर्णय क्षमता ने अर्थव्यवस्था को बड़ी मंदी से बचाया। हालांकि, आर्थिक वृद्धि की धीमी गति और मुद्रास्फीति के ऊंचे स्तर के चलते उनके कार्यकाल के अंतिम दिनों में कई आर्थिक चुनौतियां उभर कर सामने आईं।
संजय मल्होत्रा की नियुक्ति: नई दिशा की ओर कदम
2024 के अंत में दास का कार्यकाल समाप्त होने पर सरकार ने राजस्व सचिव रहे संजय मल्होत्रा को आरबीआई का नया गवर्नर नियुक्त किया। मल्होत्रा का कार्यभार संभालना ऐसे समय में हुआ जब मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) में ब्याज दरों में कटौती पर असहमति बढ़ रही है।
फरवरी की मौद्रिक नीति समीक्षा पर निगाहें
मल्होत्रा की नियुक्ति के साथ ही फरवरी 2025 की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक पर सभी की निगाहें टिक गई हैं। विश्लेषकों का मानना है कि नई नीतियां ब्याज दरों में कटौती की संभावना को बढ़ावा दे सकती हैं। हालांकि, अमेरिकी फेडरल रिजर्व के रुख और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के चलते इस संभावना पर भी सवाल उठने लगे हैं।मौद्रिक नीति समिति ने अक्टूबर 2024 में नीतिगत रुख को "तटस्थ" करने का निर्णय लिया था। इसके बावजूद दास ने चेताया था कि वृद्धि और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन अस्थिर बना हुआ है। उन्होंने मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण की विश्वसनीयता बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
रेपो दर में संभावित कटौती: क्या होगी प्रभावी?
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि 0.50 प्रतिशत की संभावित रेपो दर कटौती से आर्थिक गतिविधियों पर मामूली प्रभाव पड़ेगा। मुद्रास्फीति और वृद्धि के बीच जटिल समीकरण को देखते हुए यह कटौती अर्थव्यवस्था को किस दिशा में ले जाएगी, यह स्पष्ट नहीं है।
आगे की राह
संजय मल्होत्रा के समक्ष चुनौती है कि वे आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए नीतियों में बदलाव करें, जबकि मुद्रास्फीति नियंत्रण के प्रति आरबीआई की प्रतिबद्धता को भी बनाए रखें। उनके नेतृत्व में फरवरी की मौद्रिक नीति समीक्षा भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।मल्होत्रा के फैसले यह भी निर्धारित करेंगे कि क्या आरबीआई, शक्तिकांत दास के स्थिर और सावधानीपूर्वक नेतृत्व की विरासत को आगे बढ़ाएगा या आर्थिक विकास के नए रास्तों की तलाश करेगा।