AajTak : May 21, 2020, 10:19 AM
अंटार्कटिका: में बर्फ का रंग बदल रहा है। सफेद रंग की बर्फ अब हरे रंग में तब्दील हो रही है। इस अजीबो-गरीब प्राकृतिक बदलाव को देख कर वैज्ञानिक भी परेशान है। क्योंकि ऐसा क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रहा है या किसी और कारण से यह पता किया जा रहा है। कुछ वैज्ञानिक इसके पीछे वहां रहने वाले पेंग्विंस को भी जिम्मेदार ठहराते हैं।
पहले अंटार्कटिका (Antarctica) की तस्वीर सफेद आती थी लेकिन अब इसमें हरे रंग का मिश्रण शामिल हो रहा है। ये हरा रंग ज्यादातर अंटार्कटिका के तटीय इलाकों में ज्यादा देखने को मिल रहा है। हो सकता है कुछ सालों में आपको पूरे अंटार्कटिका में हरे रंग की बर्फ (Green Snow) देखने को मिले।यूरोपियन स्पेस एजेंसी के सेंटीनल-2 सैटेलाइट दो साल से अंटार्कटिका की तस्वीरें ले रहा है। इन्हें जांचने के बाद कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने पहली बार पूरे अंटार्कटिका में फैल रहे इस हरे रंग का मैप तैयार किया है। बर्फ के प्रमाण मिले हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि अंटार्कटिका के बर्फ का हरे रंग में बदलने का कारण एक समुद्री एल्गी है। जिसकी वजह से अलग-अलग जगहों पर ऐसे रंग देखने को मिल रहे हैं। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता मैट डेवी ने बताया कि ये एल्गी यानी की काई अंटार्कटिका के तटीय इलाकों में ज्यादा देखने को मिल रही हैं। इन एल्गी की बदौलत अंटार्कटिका वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड कैप्चर कर रहा है। मैट डेवी ने बताया कि ये एल्गी सिर्फ हरे रंग में ही नहीं है। हमें अटांर्काटिका के अलग-अलग हिस्सों में नारंगी और लाल रंग की एल्गी भी मिली है। हम उसका भी अध्ययन करने वाले हैं। अभी जो अंटार्कटिका की बर्फ में जो एल्गी मिली है वह माइक्रोस्कोपिक है। यानी बेहद छोटी जो सिर्फ माइक्रोस्कोप से ही देखी जा सकती है। लेकिन कहीं-कहीं पर वह इतनी ज्यादा मात्रा में है कि खुली आंखों से भी दिखाई दे रही है। मैट डेवी ने बताया कि हमें अंटार्कटिका की एक पेंग्विन कॉलोनी में पांच किलोमीटर की लंबाई वाले इलाके के 60 फीसदी हिस्से में ये हरे रंग की एल्गी देखने को मिली है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पेंग्विंस और अन्य जीव-जंतुओं के मल-मूत्र की वजह से भी विकसित हुई होगी। मैट ने बताया लेकिन पेंग्विंस अंटार्कटिका पर हर जगह नहीं है। इसलिए सिर्फ उन्हें दोष देना गलत होगा। अगर क्लाइमेट चेंज की वजह से धरती का तापमान ऐसे ही बढ़ता रहेगा तो यह सफेद दुनिया हरे रंग में बदल जाएगीक्योंकि, एल्गी यानी काई को पनपने के लिए जीरे डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान चाहिए। यानी अंटार्कटिका के सामान्य तापमान से ये कहीं ज्यादा है। एल्गी के फैलने की मात्रा उन जगहों पर ज्यादा है जहां पर किसी भी प्रकार के जीव-जंतु रहते हैं।
पहले अंटार्कटिका (Antarctica) की तस्वीर सफेद आती थी लेकिन अब इसमें हरे रंग का मिश्रण शामिल हो रहा है। ये हरा रंग ज्यादातर अंटार्कटिका के तटीय इलाकों में ज्यादा देखने को मिल रहा है। हो सकता है कुछ सालों में आपको पूरे अंटार्कटिका में हरे रंग की बर्फ (Green Snow) देखने को मिले।यूरोपियन स्पेस एजेंसी के सेंटीनल-2 सैटेलाइट दो साल से अंटार्कटिका की तस्वीरें ले रहा है। इन्हें जांचने के बाद कैंब्रिज यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने पहली बार पूरे अंटार्कटिका में फैल रहे इस हरे रंग का मैप तैयार किया है। बर्फ के प्रमाण मिले हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि अंटार्कटिका के बर्फ का हरे रंग में बदलने का कारण एक समुद्री एल्गी है। जिसकी वजह से अलग-अलग जगहों पर ऐसे रंग देखने को मिल रहे हैं। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता मैट डेवी ने बताया कि ये एल्गी यानी की काई अंटार्कटिका के तटीय इलाकों में ज्यादा देखने को मिल रही हैं। इन एल्गी की बदौलत अंटार्कटिका वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड कैप्चर कर रहा है। मैट डेवी ने बताया कि ये एल्गी सिर्फ हरे रंग में ही नहीं है। हमें अटांर्काटिका के अलग-अलग हिस्सों में नारंगी और लाल रंग की एल्गी भी मिली है। हम उसका भी अध्ययन करने वाले हैं। अभी जो अंटार्कटिका की बर्फ में जो एल्गी मिली है वह माइक्रोस्कोपिक है। यानी बेहद छोटी जो सिर्फ माइक्रोस्कोप से ही देखी जा सकती है। लेकिन कहीं-कहीं पर वह इतनी ज्यादा मात्रा में है कि खुली आंखों से भी दिखाई दे रही है। मैट डेवी ने बताया कि हमें अंटार्कटिका की एक पेंग्विन कॉलोनी में पांच किलोमीटर की लंबाई वाले इलाके के 60 फीसदी हिस्से में ये हरे रंग की एल्गी देखने को मिली है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पेंग्विंस और अन्य जीव-जंतुओं के मल-मूत्र की वजह से भी विकसित हुई होगी। मैट ने बताया लेकिन पेंग्विंस अंटार्कटिका पर हर जगह नहीं है। इसलिए सिर्फ उन्हें दोष देना गलत होगा। अगर क्लाइमेट चेंज की वजह से धरती का तापमान ऐसे ही बढ़ता रहेगा तो यह सफेद दुनिया हरे रंग में बदल जाएगीक्योंकि, एल्गी यानी काई को पनपने के लिए जीरे डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान चाहिए। यानी अंटार्कटिका के सामान्य तापमान से ये कहीं ज्यादा है। एल्गी के फैलने की मात्रा उन जगहों पर ज्यादा है जहां पर किसी भी प्रकार के जीव-जंतु रहते हैं।