Vikrant Shekhawat : Jun 10, 2022, 08:59 PM
Delhi: धरती के वैश्विक भूवैज्ञानिक प्रांतों यानी जमीनी इलाकों और टेक्टोनिक प्लेटों का नया नक्शा बनाया गया है। इसकी बदौलत धरती की ऊपरी परत में हो रहे बदलावों का अध्ययन करने में मदद मिलेगी। साथ ही ये नक्शा उन लोगों के लिए फायदेमंद होगा जो भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाओं की स्टडी करते हैं। यह स्टडी की है ऑस्ट्रेलिया के यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड में डिपार्टमेंट ऑफ अर्थ साइंसेस के लेक्चरर डॉ। डेरिक हैस्टरॉक और उनके साथियों ने।
डॉ। डेरिक ने बताया कि हमने प्लेटों की बाउंड्री जोन और पुराने महाद्वीपीय क्रस्ट के ढांचे के निर्माण की तुलना की। उनका अध्ययन किया। महाद्वीप जिगशॉ की तरह जुड़े हुए हैं। हर बार एक पहेली की तरह जुड़ते और टूटते रहते हैं। एक नई तस्वीर और नया नक्शा बना देते हैं। हमारी स्टडी इस बात में मदद करेगी कि कैसे हम हर टुकड़े को जोड़कर पुरानी की तुलना में नई तस्वीर बना सकें। इस नक्शे में दो बातें नई सामने आई हैं। पहली ये कि इंडियन प्लेट और ऑस्ट्रेलियन प्लेट के बीच माइक्रोप्लेट को नक्शे में शामिल किया गया है। दूसरा ये कि भारत यूरोप की तरफ खिसक रहा है। डॉ। डेरिक ने बताया कि टेक्टोनिक प्लेट्स की बाउंड्री जोन धरती के क्रस्ट का 16 फीसदी हिस्सा कवर करती हैं। जबकि महाद्वीप का 27 फीसदी हिस्सा। हमने नई स्टडी से तीन नए जियोलॉजिकल मॉडल्स बनाए हैं। पहला प्लेट मॉडल, दूसरा प्रोविंस मॉडल और तीसरा ओरोगेनी मॉडल। ओरोगेनी मॉडल यानी पहाड़ों के बनने की प्रक्रिया। धरती पर 26 ओरोगेनीस हैं। यानी ये क्रस्ट के मूवमेंट या फिर प्लेटों के टकराने से बनी हैं। पहाड़ों की ये 26 ओरोगेनीस धरती के वर्तमान आर्किटेक्चर से मिलती हैं। इनमें से कई प्लेटें सुपरकॉन्टिनेंट के निर्माण में मदद करती आई हैं। डॉ। डेरिक ने बताया कि उनका काम टेक्टोनिक प्लेट्स के निर्माण की स्टडी करना। साथ ही उनके अपडेटेड बाउंड्री को समझना, ताकि भूकंप और ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का आकलन किया जा सके। डॉ। डेरिक ने बताया अभी जो टेक्टोनिक प्लेट का नक्शा था वह टोपोग्राफिक मॉडल्स और वैश्विक भूकंपीय गतिविधियों पर आधारित था। उसे साल 2003 से अपडेट नहीं किया गया था। हमारे नए नक्शे में कई माइक्रोप्लेट्स को भी शामिल किया गया है। जैसे तस्मानिया के दक्षिण में स्थित मैक्वायर माइक्रोप्लेट और कैप्रिकॉर्न माइक्रोप्लेट जो भारत और ऑस्ट्रेलियन प्लेट को अलग करती है।
सबसे बड़ा बदलाव पश्चिमी-उत्तर अमेरिका के प्लेट्स में देखने को मिला है। इसकी सीमा पैसिफिक प्लेट्स के साथ बनती है, जिसे सैन एंड्रियास औऱ क्वीन शार्लोट फॉल्ट्स जोड़ते हैं। लेकिन अब इन फॉल्ट्स के बीच 1500 किलोमीटर चौड़ी अंदरूनी लाइन यानी घाटी देखी गई है। यह इन दोनों प्लेट्स की दूरी को बढ़ा रही है। इसके बाद सबसे बड़ा बदलाव मध्य एशिया में आया है। नया मॉडल बताता है कि भारत के उत्तर में एक डिफॉर्मेशन जोन देखने को मिल रहा है। क्योंकि इंडियन प्लेट लगातार यूरेशियन प्लेट की तरफ खिसक रही है। वैज्ञानिकों ने इस बारे में नहीं बताया है कि इससे क्या असर होगा भारत की भौगोलिक और भूगर्भीय स्थिति पर। लेकिन यह तय है कि भविष्य में भारत इसका सकारात्मक असर तो नहीं ही होगा। यह स्टडी हाल ही में अर्थ-साइंस रिव्यू जर्नल में प्रकाशित हुई है। डॉ। डेरिक ने कहा कि हमारा नक्शा पिछले 20 लाख सालों में धरती पर आए 90 फीसदी भूकंपों और 80 फीसदी ज्वालामुखी विस्फोटो की पूरी कहानी बताता है। जबकि वर्तमान मॉडल्स सिर्फ 65 फीसदी भूकंपों की डिटेल देता है। इस नक्शे की मदद से लोग प्राकृतिक आपदाओं की गणना कर सकते हैं।
डॉ। डेरिक ने बताया कि हमने प्लेटों की बाउंड्री जोन और पुराने महाद्वीपीय क्रस्ट के ढांचे के निर्माण की तुलना की। उनका अध्ययन किया। महाद्वीप जिगशॉ की तरह जुड़े हुए हैं। हर बार एक पहेली की तरह जुड़ते और टूटते रहते हैं। एक नई तस्वीर और नया नक्शा बना देते हैं। हमारी स्टडी इस बात में मदद करेगी कि कैसे हम हर टुकड़े को जोड़कर पुरानी की तुलना में नई तस्वीर बना सकें। इस नक्शे में दो बातें नई सामने आई हैं। पहली ये कि इंडियन प्लेट और ऑस्ट्रेलियन प्लेट के बीच माइक्रोप्लेट को नक्शे में शामिल किया गया है। दूसरा ये कि भारत यूरोप की तरफ खिसक रहा है। डॉ। डेरिक ने बताया कि टेक्टोनिक प्लेट्स की बाउंड्री जोन धरती के क्रस्ट का 16 फीसदी हिस्सा कवर करती हैं। जबकि महाद्वीप का 27 फीसदी हिस्सा। हमने नई स्टडी से तीन नए जियोलॉजिकल मॉडल्स बनाए हैं। पहला प्लेट मॉडल, दूसरा प्रोविंस मॉडल और तीसरा ओरोगेनी मॉडल। ओरोगेनी मॉडल यानी पहाड़ों के बनने की प्रक्रिया। धरती पर 26 ओरोगेनीस हैं। यानी ये क्रस्ट के मूवमेंट या फिर प्लेटों के टकराने से बनी हैं। पहाड़ों की ये 26 ओरोगेनीस धरती के वर्तमान आर्किटेक्चर से मिलती हैं। इनमें से कई प्लेटें सुपरकॉन्टिनेंट के निर्माण में मदद करती आई हैं। डॉ। डेरिक ने बताया कि उनका काम टेक्टोनिक प्लेट्स के निर्माण की स्टडी करना। साथ ही उनके अपडेटेड बाउंड्री को समझना, ताकि भूकंप और ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का आकलन किया जा सके। डॉ। डेरिक ने बताया अभी जो टेक्टोनिक प्लेट का नक्शा था वह टोपोग्राफिक मॉडल्स और वैश्विक भूकंपीय गतिविधियों पर आधारित था। उसे साल 2003 से अपडेट नहीं किया गया था। हमारे नए नक्शे में कई माइक्रोप्लेट्स को भी शामिल किया गया है। जैसे तस्मानिया के दक्षिण में स्थित मैक्वायर माइक्रोप्लेट और कैप्रिकॉर्न माइक्रोप्लेट जो भारत और ऑस्ट्रेलियन प्लेट को अलग करती है।
सबसे बड़ा बदलाव पश्चिमी-उत्तर अमेरिका के प्लेट्स में देखने को मिला है। इसकी सीमा पैसिफिक प्लेट्स के साथ बनती है, जिसे सैन एंड्रियास औऱ क्वीन शार्लोट फॉल्ट्स जोड़ते हैं। लेकिन अब इन फॉल्ट्स के बीच 1500 किलोमीटर चौड़ी अंदरूनी लाइन यानी घाटी देखी गई है। यह इन दोनों प्लेट्स की दूरी को बढ़ा रही है। इसके बाद सबसे बड़ा बदलाव मध्य एशिया में आया है। नया मॉडल बताता है कि भारत के उत्तर में एक डिफॉर्मेशन जोन देखने को मिल रहा है। क्योंकि इंडियन प्लेट लगातार यूरेशियन प्लेट की तरफ खिसक रही है। वैज्ञानिकों ने इस बारे में नहीं बताया है कि इससे क्या असर होगा भारत की भौगोलिक और भूगर्भीय स्थिति पर। लेकिन यह तय है कि भविष्य में भारत इसका सकारात्मक असर तो नहीं ही होगा। यह स्टडी हाल ही में अर्थ-साइंस रिव्यू जर्नल में प्रकाशित हुई है। डॉ। डेरिक ने कहा कि हमारा नक्शा पिछले 20 लाख सालों में धरती पर आए 90 फीसदी भूकंपों और 80 फीसदी ज्वालामुखी विस्फोटो की पूरी कहानी बताता है। जबकि वर्तमान मॉडल्स सिर्फ 65 फीसदी भूकंपों की डिटेल देता है। इस नक्शे की मदद से लोग प्राकृतिक आपदाओं की गणना कर सकते हैं।