दुनिया / जलवायु परिवर्तन: दुनिया के तीन अरब लोगों के लिए ख़तरे की घंटी

जब तक कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं आएगी, बड़ी संख्या में लोग ये महसूस करेंगे कि औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस से भी ज़्यादा हो गया है। पर्यावरण की ये स्थिति उस 'कम्फर्ट ज़ोन' से बाहर होगी जिस माहौल में पिछले छह हज़ार सालों से इंसान फलफूल रहे हैं। इस स्टडी के सहलेखक टिम लेंटन ने बीबीसी को बताया, "ये रिसर्च उम्मीद है कि जलवायु परिवर्तन को ज़्यादा मानवीय संदर्भों में देखता है।

BBC : May 08, 2020, 11:11 AM
अमेरिका: जब तक कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं आएगी, बड़ी संख्या में लोग ये महसूस करेंगे कि औसत तापमान 29 डिग्री सेल्सियस से भी ज़्यादा हो गया है। पर्यावरण की ये स्थिति उस 'कम्फर्ट ज़ोन' से बाहर होगी जिस माहौल में पिछले छह हज़ार सालों से इंसान फलफूल रहे हैं। इस स्टडी के सहलेखक टिम लेंटन ने बीबीसी को बताया, "ये रिसर्च उम्मीद है कि जलवायु परिवर्तन को ज़्यादा मानवीय संदर्भों में देखता है। शोधकर्ताओं ने अपनी स्टडी के लिए संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या और वैश्विक तापमान में वृद्धि संबंधी आंकड़ों का इस्तेमाल किया है। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भले ही पैरिस जलवायु समझौते पर अमल की कोशिशें की जा रही हैं लेकिन दुनिया तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की तरफ़ बढ़ रही है।

स्टडी के अनुसार इंसानी आबादी छोटे-छोटे जलवायु क्षेत्रों में सघन रूप से बस गई है। ज़्यादातर लोग वैसी जगहों पर रह रहे हैं जहां औसत तापमान 11 से 15 डिग्री के बीच है।

आबादी का एक छोटा हिस्सा उन इलाकों में रह रहा है जहां औसत तापमान 20 से 25 सेल्सियस के बीच है। इन जलवायु परिस्थितियों में लोग हज़ारों सालों से रह रहे हैं।

हालांकि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से अगर दुनिया का औसत तापमान तीन डिग्री बढ़ गया तो एक बड़ी आबादी को इतनी गर्मी में रहना होगा कि वे 'जलवायु की सहज स्थिति' के बाहर हो जाएंगे।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ एक्सटेर में ग्लोबल सिस्टम इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और जलवायु विशेषज्ञ टिम लेंटन की इस स्टडी में चीन, अमरीका और यूरोप के वैज्ञानिकों ने भाग लिया था।

गर्म जगहों पर सघन आबादी

टिम लेंटन कहते हैं, "समंदर की तुलना में ज़मीन ज़्यादा तेज़ी से गर्म होगी। इसलिए ज़मीन का तापमान तीन डिग्री ज़्यादा रहेगा। पहले से गर्म जगहों पर आबादी के बढ़ने की भी संभावना है। इनमें सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में पड़ने वाले अफ्रीका महादेश के ज़्यादातर इलाके होंगे। एक व्यक्ति को ज़्यादा गर्म माहौल में रहना होगा।"

"गर्म जगहों पर ज़्यादा सघन आबादी देखने को मिल रही है। उन गर्म जगहों पर गर्मी और बढ़ रही है। इसी वजह से हम देखते हैं कि तीन डिग्री ज़्यादा गर्म दुनिया में औसत आदमी को सात डिग्री अधिक गर्म परिस्थितियों में जीना पड़ रहा है।"

जिन इलाकों के इस बदलाव से प्रभावित होने की संभावना जाहिर की गई है, उसमें ऑस्ट्रेलिया, भारत, अफ्रीका, दक्षिण अमरीका और मध्य पूर्व के कुछ हिस्से शामिल हैं।

स्टडी में इस बात को लेकर भी चिंता जताई गई है कि ग़रीब इलाकों में रहने वाले लोग इतनी तेज़ गर्मी से खुद का बचाव करने में सक्षम नहीं होंगे।

पर्यावरण का कंफर्ट ज़ोन

टिम लेंटन कहते हैं, "मेरे लिए ये स्टडी उन अमीरों के बारे में नहीं है जो एयर कंडीशंड इमारतों में किसी भी चीज़ से खुद को बचा लेंगे। हमें उनकी चिंता करनी है जिनके पास जलवायु परिवर्तन और मौसम से खुद को बचाने के लिए संसाधन नहीं हैं।"

टीम की रिसर्च के मुख्य संदेश पर टिम का कहना है कि जलवायु परिवर्तन को अगर नियंत्रित किया जा सके तो इसके बड़े फायदे होंगे, पर्यावरण के कंफर्ट ज़ोन से बाहर रह जाने वाले लोगों की संख्या इससे कम की जा सकेगी।

आज जो तापमान है, उसमें होने वाली एक डिग्री की वृद्धि से भी क़रीब एक अरब लोग प्रभावित होते हैं। इसलिए तापमान में होने वाली वृद्धि की हरेक डिग्री से हम लोगों की रोज़ी-रोटी में होने वाले बदलाव को काफी हद तक बचा सकते हैं।"