400 वर्षों का इतिहास / राम मंदिर विध्वंस से अयोध्या में भूमि पूजन तक की पूरी कहानी

1528 : मुगल बादशाह बाबर के कमांडर मीर बकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया। 1885 : महंत रघुबीर दास ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर कर विवादित रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद ढांचे के बाहर शामियाना तानने की अनुमति मांगी। अदालत ने याचिका खारिज कर दी। 1949 : विवादित ढांचे के बाहर केंद्रीय गुंबद के अंदर रामलला की मूर्तियां लगाई गईं।

Live Hindustan : Aug 04, 2020, 07:44 PM
राम मंदिर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच अगस्त यानी कल अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करेंगे। इसके साथ ही मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। राम मंदिर निर्माण के लिए वर्षों तक कोर्ट में केस चला। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मंदिर आंदोलन के साथ-साथ इसे अपने चुनावी घोषणा पत्रों में भी लगातार शामिल किया। 

आइए एक जानते हैं राम मंदिर विध्वंस से अयोध्या में भूमि पूजन तक की पूरी कहानी:

1528 : मुगल बादशाह बाबर के कमांडर मीर बकी ने बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया।

1885 : महंत रघुबीर दास ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर कर विवादित रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद ढांचे के बाहर शामियाना तानने की अनुमति मांगी। अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

1949 : विवादित ढांचे के बाहर केंद्रीय गुंबद के अंदर रामलला की मूर्तियां लगाई गईं।

1950 : रामलला की मूर्तियों की पूजा का अधिकार हासिल करने के लिए गोपाल सिमला विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में याचिका दायर की।

1950 : परमहंस रामचंद्र दास ने पूजा जारी रखने और मूर्तियां रखने के लिए याचिका दायर की।

1959 : निर्मोही अखाड़ा ने जमीन पर अधिकार दिए जाने के लिए याचिका दायर की।

1981 : उत्तरप्रदेश सुन्नी केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने स्थल पर अधिकार के लिए याचिका दायर की।

एक फरवरी 1986 : स्थानीय अदालत ने सरकार को हिंदू श्रद्धालुओं के लिए स्थान खोलने का आदेश दिया।

14 अगस्त 1986 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित ढांचे के लिए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।

छह दिसम्बर 1992 : रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद ढांचे को ढहाया गया।

तीन अप्रैल 1993 : विवादित क्षेत्र में केंद्र द्वारा भूमि अधिग्रहण के लिए 'अयोध्या में निश्चित क्षेत्र अधिग्रहण कानून बना। कई रिट याचिकाएं दायर की गईं जिनमें एक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस्माइल फारूकी द्वारा दायर याचिका शामिल थी। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 139ए के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रिट याचिकाओं को स्थानांतरित कर दिया जो उच्च न्यायालय में लंबित थीं।

24 अक्टूबर 1994 : सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक इस्माइल फारूकी मामले में कहा कि मस्जिद इस्लाम से जुड़ा हुआ नहीं है।

अप्रैल 2002 : उच्च न्यायालय में विवादित स्थल के मालिकाना हक को लेकर सुनवाई शुरू।

13 मार्च 2003 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असलम उर्फ भूरे मामले में अधिग्रहित स्थल पर किसी भी तरह की धार्मिक गतिविधि की अनुमति नहीं है। 

30 सितम्बर 2010 : सुप्रीम कोर्ट ने 2 : 1 बहुमत से विवादित क्षेत्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।

9 मई 2011 : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या जमीन विवाद में उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाई।

26 फरवरी 2016 : सुब्रमण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाए जाने की मांग की।

21 मार्च 2017 : सीजेआई जे एस खेहर ने संबंधित पक्षों के बीच अदालत के बाहर समाधान का सुझाव दिया। 

7 अगस्त 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जो 1994 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

8 अगस्त 2017 : उत्तर प्रदेश शिया केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि विवादित स्थल से उचित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बनाई जा सकती है। 

11 सितम्बर 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि दस दिनों के अंदर दो अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति करें जो विवादिस्त स्थल की यथास्थिति की निगरानी करे। 

20 नवम्बर 2017 : यूपी शिया केंद्रीय वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि मंदिर का निर्माण अयोध्या में किया जा सकता है और मस्जिद का लखनऊ में। 

1 दिसम्बर 2017 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती देते हुए 32 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने याचिका दायर की।

8 फरवरी 2018 : सिविल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की।

14 मार्च 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी की याचिका सहित सभी अंतरिम याचिकाओं को खारिज किया।

6 अप्रैल 2018 : राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 1994 के फैसले की टिप्पणियों पर पुनर्विचार के मुद्दे को बड़े पीठ के पास भेजने का आग्रह किया। 

6 जुलाई 2018 : यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कुछ मुस्लिम समूह 1994 के फैसले की टिप्पणियों पर पुनर्विचार की मांग कर सुनवाई में विलंब करना चाहते हैं। 

20 जुलाई 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।

27 सितम्बर 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष भेजने से इंकार किया। मामले की सुनवाई 29 अक्टूबर को तीन सदस्यीय नयी पीठ में होगी।

29 अक्टूबर 2018 : सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई उचित पीठ के समक्ष जनवरी के पहले हफ्ते में तय की जो सुनवाई के समय पर निर्णय करेगी। 

12 नवम्बर 2018 : अखिल भारत हिंदू महासभा की याचिकाओं पर जल्द सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इंकार।

4 जनवरी 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मालिकाना हक मामले में सुनवाई की तारीख तय करने के लिए उसके द्वारा गठित उपयुक्त पीठ दस जनवरी को फैसला सुनाएगी। 

8 जनवरी 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया जिसकी अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई करेंगे और इसमें न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना, न्यायमूर्ति यू यू ललित और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ शामिल होंगे। 

10 जनवरी 2019 : न्यायमूर्ति यू यू ललित ने मामले से खुद को अलग किया जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 29 जनवरी को नयी पीठ के समक्ष तय की। 

25 जनवरी 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ का पुनर्गठन किया। नयी पीठ में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर शामिल थे।

26 फरवरी 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता का सुझाव दिया और फैसले के लिए पांच मार्च की तारीख तय की जिसमें तय किया जाता कि मामले को अदालत की तरफ से नियुक्त मध्यस्थ के पास भेजा जाए अथवा नहीं। 

6 मार्च 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा कि क्या जमीन विवाद को मध्यस्थता के माध्यम से सुलझाया जा सकता है या नहीं। 

8 मार्च 2019 : सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि के मालिकाना हक से जुड़े विवाद के सर्वमान्य समाधान की संभावना तलाशने के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एफ. एम. आई. कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति गठित की। इस समिति के अन्य सदस्यों में आध्यत्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू शामिल हैं।

10 मई 2019 : सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता समिति को 15 अगस्त तक का समय दिया। तीन-सदस्यीय मध्यस्थता समिति के प्रमुख न्यायमूर्ति एफ.एम.आई. कलीफुल्ला ने मध्यस्थता प्रयासों में अब तक हुई प्रगति पर अदालत में रिपोर्ट पेश करते हुए और समय देने की मांग की जिसके बाद अदालत ने समय बढ़ाने का आदेश दे दिया।

11 जुलाई 2019: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की प्रगति पर रिपोर्ट मांगी।

18 जुलाई 2019: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति देते हुए एक अगस्त तक परिणाम रिपोर्ट देने के लिये कहा।

1 अगस्त 2019: मध्यस्थता की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को दी गई।

2 अगस्त 2019: सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता नाकाम होने पर छह अगस्त से रोजाना सुनवाई का फैसला किया। 

6 अगस्त 2019: सुप्रीम कोर्ट ने रोजाना के आधार पर भूमि विवाद पर सुनवाई शुरू की। 

4 अक्टूबर 2019: अदालत ने कहा कि 17 अक्टूबर तक सुनवाई पूरी कर 17 नवंबर तक फैसला सुनाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष को सुरक्षा प्रदान करने के लिये कहा। 

16 अक्टूबर 2019: सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा। 

9 नवंबर 2019: चीफ जस्टिस आफ इंडिया (सीजेआई) रंजन गोगोई के समझ 5 जजों की बेंच ने शनिवार को सुनाए गए फैसले में विवादित जमीन विराजमान राम लला को दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से अलग 5 एकड़ जमीन मस्जिद बनवाने के लिए दी है।