वैक्सीन / कैसे काम करती है भारत सरकार द्वारा बुक की गई कोविड-19 की 'कोर्बेवैक्स' वैक्सीन?

भारत सरकार द्वारा बुक की गई कोविड-19 की वैक्सीन 'कोर्बेवैक्स' एक 'रीकॉम्बिनेंट प्रोटीन सब-यूनिट' वैक्सीन है जो स्पाइक प्रोटीन SARS-CoV-2 के खास हिस्से से बनी है। स्पाइक प्रोटीन के ज़रिए वायरस शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करता है। हालांकि, जब सिर्फ स्पाइक प्रोटीन दिया जाए तो यह शरीर में वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सकता है।

Vikrant Shekhawat : Jun 05, 2021, 04:30 PM
नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में कोरोना वैक्सीन की भारी मांग के मद्देनजर एक और देसी वैक्सीन 'कोर्बेवैक्स' की 30 करोड़ डोज बुक करा दी है। हैदराबाद स्थित भारत की बड़ी फार्मा कंपनी बायोलॉजिकल ई की रीकॉम्बिनेंट प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन 'कोर्बेवैक्स' का इंसान पर होने वाला फेज-3 ट्रायल अभी पूरा भी नहीं हुआ है। लेकिन, फिर भी केंद्र सरकार ने कंपनी को 1,500 करोड़ रुपये की एडवांस पेमेंट देकर 30 करोड़ डोज रिजर्व करने का फैसला किया है। इस तरह एक डोज की कीमत सिर्फ 50 रुपये पड़ेगी और यह सबसे सस्ती है। सवाल है कि बिना ट्रायल पूरा हुए सरकार इतना बड़ा जोखिम क्यों ले रही है और यह वैक्सीन किस तरह से काम करेगी इसको लेकर कई तरह की चर्चा हो रही है।

किस तरह काम करती है बायो ई वैक्सीन ?

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 'कोर्बेवैक्स' एक आरबीडी (रिसेप्‍टर-बाइंडिंग डोमेन) प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन है। इसमें कोरोना वायरस के आरबीडी के डिमेरिक फॉर्म का एंटीजन (स्पाइक प्रोटीन) की तरह इस्तेमाल किया जाता है। इस वैक्सीन का प्रभाव बढ़ाने के लिए इसमें एडजुवेंट (सहयाक) सीपीजी 1018 टीएम का भी इस्तेमाल हुआ है। इसके जरिए वायरस के एक खास हिस्से को टारगेट किया जाता है। इस वैक्सीन का हेपेटाइटिस बी जैसे वायरस के खिलाफ रोग-प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने के लिए पहले से ही उपयोग किया जाता रहा है। इस वैक्सीन की भी दो डोज लगाई जाएगी और कोवैक्सिन की तरह ही दोनों डोज में 28 दिन का ही अंतर रखना होगा।

क्या थर्ड फेज ट्रायल से पहले एडवांस पमेंट सही है ?

बायोलॉजिकल ई को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से पिछले 24 अप्रैल को फेज-3 क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी मिली थी, लेकिन उसके पास इससे पहले की एफिकेसी का डेटा मौजूद नहीं है। सरकार का कहना है कि फेज-1 और फेज-2 के ट्रायल के नतीजे बेहतर रहे हैं। हालांकि, कंपनी अभी तक उन ट्रायल के डेटा को किसी भी प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं करवा सकी है। ऐसे में कुछ एक्सपर्ट इससे पहले स्टॉक जुटाने और सरकार की ओर से एडवांस पेमेंट देने को जोखिम वाला सौदा बता रहे हैं। उनका कहना है कि अगर प्रोटीन सब-यूनिट अच्छे से काम करता है तब तो दूसरी वैक्सीन की तुलना में इसका जल्द निर्माण करना आसान है। जाने-माने वायरोलॉजिस्ट और सीएमसी वेल्लोर के प्रोफेसर डॉक्ट गगनदीप कंग ने मनी कंट्रोल से कहा है- 'समय को देखते हुए सरकार ने थोड़ा जोखिम लिया है।......प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन को लेकर मुझे उम्मीद है, क्योंकि यह ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां बहुत ज्यादा डोज तैयार की जा सकती है। बहुत कुछ एडजुवेंट (सहायक) पर निर्भर है, लेकिन हमें फेज 1-2 का परफॉर्मेंस चाहिए।

कोर्बेवैक्स' को लेकर उम्मीद

लेकिन, वैक्सीन उद्योग के दिग्गज और लाइफ सांइस इंडस्ट्री के कंसल्टेंट डॉक्टर केवी बालासुब्रमण्यम का मानना है कि यह बहुत ही अच्छी वैक्सीन साबित होगी और सरकार के लिए सस्ती भी पड़ेगी। वो कहते हैं- 'सबयूनिट प्रोटीन वैक्सीन बहुत ही सुरक्षित और प्रभावी होगी। निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों के लिए यह कम कीमत वाली कोविड वैक्सीन गेम चेंजर साबित होगी।'लेकिन, एफिकेसी डेटा नहीं होने के चलते ही इसपर सबसे ज्याद चिंताएं जताई जा रही हैं। ऐसे लोग नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं कि सरकार शायद दबाव में ऐसा कदम उठा रही है। उसे तो ऐसी वैक्सीन पर पैसे लगाने चाहिए जो मंजूर हो चुकी है और बड़े पैमाने पर लगाई जा रही है। वैसे जहां तक बायोलॉजिकल-ई को एडवांस देने की बात है तो भारत में बनी इससे पहले की दोंनों वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सिन के निर्माताओं-क्रमश: सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक को भी 1,500 करोड़ और 750 करोड़ बतौर एडवांस दी गई थी। बाद में इन दोनों को इमरजेंसी यूज की अनुमति मिल गई।