Vikrant Shekhawat : Jul 24, 2021, 03:57 PM
Delhi: मीराबाई चानू ओलंपिक में मेडल जीतने वालीं भारत की दूसरी वेटलिफ्टर बन गई हैं। उन्होंने टोक्यो ओलंपिक 2020 में 49 किग्रा वर्ग में रजत पदक जीता। मीराबाई चानू से पहले 2020 के सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता था।मीराबाई चानू का जन्म 8 अगस्त 1994 को मणिपुर के नोंगपेक काकचिंग गांव में हुआ था। शुरुआत में मीराबाई का सपना तीरंदाज बनने का था, लेकिन किन्हीं कारणों से उन्होंने वेटलिफ्टिंग को अपना करियर चुनना पड़ा।
मणिपुर से आने वालीं मीराबाई चानू का जीवन संघर्ष से भरा रहा है। मीराबाई का बचपन पहाड़ से जलावन की लकड़ियां बीनते बीता। वह बचपन से ही भारी वजन उठाने की मास्टर रही हैं। बताते हैं कि मीराबाई बचपन में तीरंदाज यानी आर्चर बनना चाहती थीं। लेकिन कक्षा आठ तक आते-आते उनका लक्ष्य बदल गया। दरअसल कक्षा आठ की किताब में मशहूर वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी का जिक्र था। बता दें कि इम्फाल की ही रहने वाली कुंजरानी भारतीय वेटलिफ्टिंग इतिहास की सबसे डेकोरेटेड महिला हैं। कोई भी भारतीय महिला वेटलिफ्टर कुंजरानी से ज्यादा मेडल नहीं जीत पाई है। बस, कक्षा आठ में तय हो गया कि अब तो वजन ही उठाना है। इसके साथ ही शुरू हुआ मीराबाई का करियर।मीराबाई की मेहनत आखिरकार रंग लाई, जब उन्होंने 2014 में ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में 48 किलो भारवर्ग में उन्होंने भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता। लगातार अच्छे प्रदर्शन की बदौलत उन्होंने रियो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर लिया था। हालांकि रियो में उनका प्रदर्शन उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा था। वह क्लीन एंड जर्क के तीनों प्रयासों में भार उठाने में नाकामयाब रही थीं। रियो ओलंपिक की नाकामी को भुलाकर मीराबाई चानू ने 2017 के विश्व भारोत्तोलन चैम्पियनशिप में शानदार प्रदर्शन किया। अनाहेम में हुए उस चैम्पिनशिप में मीराबाई ने कुल 194 (स्नैच में 85 और क्लीन एंड जर्क में 107) किलो वजन उठाया था, जो कंपटीशन रिकॉर्ड था। 2018 में एक बार फिर कॉमनवेल्थ गेम्स में मीराबाई चानू ने गोल्ड मेडल जीतकर अपनी श्रेष्ठता साबित की। मीराबाई 2021 ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाली इकलौती भारतीय वेटलिफ्टर हैं। उन्होंने एशियन चैम्पियनशिप में 49 किलो भारवर्ग में कांस्य जीतकर टोक्यो का टिकट हासिल किया था। इस दौरान 26 साल की मीराबाई ने ने स्नैच में 86 किग्रा का भार उठाने के बाद क्लीन एवं जर्क में विश्व रिकॉर्ड कायम करते हुए 119 किलोग्राम का भार उठाया था।
मणिपुर से आने वालीं मीराबाई चानू का जीवन संघर्ष से भरा रहा है। मीराबाई का बचपन पहाड़ से जलावन की लकड़ियां बीनते बीता। वह बचपन से ही भारी वजन उठाने की मास्टर रही हैं। बताते हैं कि मीराबाई बचपन में तीरंदाज यानी आर्चर बनना चाहती थीं। लेकिन कक्षा आठ तक आते-आते उनका लक्ष्य बदल गया। दरअसल कक्षा आठ की किताब में मशहूर वेटलिफ्टर कुंजरानी देवी का जिक्र था। बता दें कि इम्फाल की ही रहने वाली कुंजरानी भारतीय वेटलिफ्टिंग इतिहास की सबसे डेकोरेटेड महिला हैं। कोई भी भारतीय महिला वेटलिफ्टर कुंजरानी से ज्यादा मेडल नहीं जीत पाई है। बस, कक्षा आठ में तय हो गया कि अब तो वजन ही उठाना है। इसके साथ ही शुरू हुआ मीराबाई का करियर।मीराबाई की मेहनत आखिरकार रंग लाई, जब उन्होंने 2014 में ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स में 48 किलो भारवर्ग में उन्होंने भारत के लिए सिल्वर मेडल जीता। लगातार अच्छे प्रदर्शन की बदौलत उन्होंने रियो ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर लिया था। हालांकि रियो में उनका प्रदर्शन उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहा था। वह क्लीन एंड जर्क के तीनों प्रयासों में भार उठाने में नाकामयाब रही थीं। रियो ओलंपिक की नाकामी को भुलाकर मीराबाई चानू ने 2017 के विश्व भारोत्तोलन चैम्पियनशिप में शानदार प्रदर्शन किया। अनाहेम में हुए उस चैम्पिनशिप में मीराबाई ने कुल 194 (स्नैच में 85 और क्लीन एंड जर्क में 107) किलो वजन उठाया था, जो कंपटीशन रिकॉर्ड था। 2018 में एक बार फिर कॉमनवेल्थ गेम्स में मीराबाई चानू ने गोल्ड मेडल जीतकर अपनी श्रेष्ठता साबित की। मीराबाई 2021 ओलंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाली इकलौती भारतीय वेटलिफ्टर हैं। उन्होंने एशियन चैम्पियनशिप में 49 किलो भारवर्ग में कांस्य जीतकर टोक्यो का टिकट हासिल किया था। इस दौरान 26 साल की मीराबाई ने ने स्नैच में 86 किग्रा का भार उठाने के बाद क्लीन एवं जर्क में विश्व रिकॉर्ड कायम करते हुए 119 किलोग्राम का भार उठाया था।