AajTak : Sep 18, 2020, 10:12 AM
UK: 30 साल पहले जम्मू-कश्मीर से पलायन करने को मजबूर हुए कश्मीरी पंडितों से संवेदना जताने के लिए ब्रिटेन की संसद में सोमवार को एक प्रस्ताव पेश किया गया है। ब्रिटेन की सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद बॉब ब्लैकमैन ने इस प्रस्ताव को सदन में पेश किया जिसे डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी के सांसद जिम शैनॉन और लेबर पार्टी के सांसद वीरेंद्र शर्मा का समर्थन मिला।
हाउस ऑफ कॉमंस में लाए गए 'अर्ली डे मोशन' (ईडीएम) में 1989-90 में इस्लामिक जिहाद का शिकार बने कश्मीरी पंडितों के परिवारों के प्रति सहानुभूति जताई गई है।इस ईडीएम में कश्मीरी पंडितों के सामूहिक पलायन को 'नरसंहार' की श्रेणी में रखने की मांग की गई है और भारत सरकार से अपील की गई है कि संयुक्त राष्ट्र में नरसंहार अपराध रोकने के लिए हुए समझौते का हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते वह अपना अंतरराष्ट्रीय दायित्व निभाए और नरसंहार को लेकर अलग से कानून बनाए।ब्रिटिश सांसद बॉब ब्लैकमैन ने इंडिया टुडे से कहा, 30 साल पहले अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए कश्मीरी पंडितों के परिवारों को आज भी न्याय का इंतजार है। मैं कश्मीर में हिंदुओं के साथ हुए अत्याचार को लेकर करीब तीन दशकों से आवाज उठाता रहा हूं और उनके अधिकारों के लिए कैंपेन भी चलाया। भारत में नरसंहार अपराध से जुड़ा कानून नहीं है इसलिए न्याय में देरी हुई और दोषियों को आज तक सजा नहीं मिल पाई है। ब्रिटेन में नरसंहार अपराधों की सजा तय करने के लिए अलग से कानून है क्योंकि उसने अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। मुझे उम्मीद है कि भारत सरकार भी अपने नागरिकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करेगी।अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत, नरसंहार से जुड़े अपराधों को रोकना और इसके दोषियों को सजा देना हर देश की जिम्मेदारी है। जेनोसाइड कन्वेंशन, 1948 के तहत युद्ध के दौरान भी ऐसे अपराध दंडनीय हैं, चाहे उन्हें कोई शीर्ष अधिकारी ही क्यों ना अंजाम दे। 1959 में भारत ने भी इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन भारत ने इसे लेकर अलग से कानून नहीं बनाया है। कुछ लोगों का कहना है कि नरसंहार को लेकर अलग से कानून की जरूरत नहीं है क्योंकि भारत में ऐसे अपराधों से निपटने के लिए पहले से ही कानूनी दायरा मौजूद हैबॉब ब्लैकमैन ने भारत सरकार से नरसंहार कानून को लेकर अपना रुख बदलने की अपील की। ब्लैकमैन ने कहा कि ब्रिटेन में मौजूद भारतीय समुदाय को भी अपने स्थानीय सांसदों के जरिए कश्मीरी पंडितों के न्याय के लिए आवाज उठानी चाहिए। इससे कश्मीरी पंडितों के लिए लाए गए प्रस्ताव को और समर्थन मिलेगा।
अर्ली डे मोशन यानी ईडीएम ब्रिटिश सांसद अपनी राय को आधिकारिक तौर पर रखने या किसी अहम मुद्दे पर सदन का ध्यान खींचने के लिए लाते हैं। अगर किसी प्रस्ताव को ज्यादा सांसदों का समर्थन मिलता है तो उस पर संसद में बहस हो सकती है। हालांकि, ऐसे ईडीएम काफी कम ही होते हैं, जिन पर सदन में बहस होती है।ब्रिटिश सांसद बॉब ब्लैकमैन कश्मीर को लेकर काफी मुखर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद भी बॉब ब्लैकमैन ने भारत का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था, 'पूरा जम्मू-कश्मीर संप्रभु भारत का हिस्सा है। ऐसे लोग, जो वहां संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को लागू करने की बात करते हैं, वे उस प्रस्ताव को भूल जाते हैं, जिसके मुताबिक राज्य के एकीकरण के लिए पाकिस्तानी सेना को कश्मीर छोड़ देना चाहिए।'
हाउस ऑफ कॉमंस में लाए गए 'अर्ली डे मोशन' (ईडीएम) में 1989-90 में इस्लामिक जिहाद का शिकार बने कश्मीरी पंडितों के परिवारों के प्रति सहानुभूति जताई गई है।इस ईडीएम में कश्मीरी पंडितों के सामूहिक पलायन को 'नरसंहार' की श्रेणी में रखने की मांग की गई है और भारत सरकार से अपील की गई है कि संयुक्त राष्ट्र में नरसंहार अपराध रोकने के लिए हुए समझौते का हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते वह अपना अंतरराष्ट्रीय दायित्व निभाए और नरसंहार को लेकर अलग से कानून बनाए।ब्रिटिश सांसद बॉब ब्लैकमैन ने इंडिया टुडे से कहा, 30 साल पहले अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए कश्मीरी पंडितों के परिवारों को आज भी न्याय का इंतजार है। मैं कश्मीर में हिंदुओं के साथ हुए अत्याचार को लेकर करीब तीन दशकों से आवाज उठाता रहा हूं और उनके अधिकारों के लिए कैंपेन भी चलाया। भारत में नरसंहार अपराध से जुड़ा कानून नहीं है इसलिए न्याय में देरी हुई और दोषियों को आज तक सजा नहीं मिल पाई है। ब्रिटेन में नरसंहार अपराधों की सजा तय करने के लिए अलग से कानून है क्योंकि उसने अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। मुझे उम्मीद है कि भारत सरकार भी अपने नागरिकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करेगी।अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत, नरसंहार से जुड़े अपराधों को रोकना और इसके दोषियों को सजा देना हर देश की जिम्मेदारी है। जेनोसाइड कन्वेंशन, 1948 के तहत युद्ध के दौरान भी ऐसे अपराध दंडनीय हैं, चाहे उन्हें कोई शीर्ष अधिकारी ही क्यों ना अंजाम दे। 1959 में भारत ने भी इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन भारत ने इसे लेकर अलग से कानून नहीं बनाया है। कुछ लोगों का कहना है कि नरसंहार को लेकर अलग से कानून की जरूरत नहीं है क्योंकि भारत में ऐसे अपराधों से निपटने के लिए पहले से ही कानूनी दायरा मौजूद हैबॉब ब्लैकमैन ने भारत सरकार से नरसंहार कानून को लेकर अपना रुख बदलने की अपील की। ब्लैकमैन ने कहा कि ब्रिटेन में मौजूद भारतीय समुदाय को भी अपने स्थानीय सांसदों के जरिए कश्मीरी पंडितों के न्याय के लिए आवाज उठानी चाहिए। इससे कश्मीरी पंडितों के लिए लाए गए प्रस्ताव को और समर्थन मिलेगा।
अर्ली डे मोशन यानी ईडीएम ब्रिटिश सांसद अपनी राय को आधिकारिक तौर पर रखने या किसी अहम मुद्दे पर सदन का ध्यान खींचने के लिए लाते हैं। अगर किसी प्रस्ताव को ज्यादा सांसदों का समर्थन मिलता है तो उस पर संसद में बहस हो सकती है। हालांकि, ऐसे ईडीएम काफी कम ही होते हैं, जिन पर सदन में बहस होती है।ब्रिटिश सांसद बॉब ब्लैकमैन कश्मीर को लेकर काफी मुखर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद भी बॉब ब्लैकमैन ने भारत का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था, 'पूरा जम्मू-कश्मीर संप्रभु भारत का हिस्सा है। ऐसे लोग, जो वहां संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को लागू करने की बात करते हैं, वे उस प्रस्ताव को भूल जाते हैं, जिसके मुताबिक राज्य के एकीकरण के लिए पाकिस्तानी सेना को कश्मीर छोड़ देना चाहिए।'