देश / CAA का फायदा लेने रोहिंग्या मुसलमान अपना रहे हैं ईसाई धर्म, सरकार सतर्क

नागरिकता संशोधन कानून से बचने के लिए भारत में रह रहे कई अफगानी और रोहिंग्या मुसलमानों ने ईसाई धर्म को अपना लिया है ताकि उनकी भारतीय नागरिक बनने की राह आसान हो जाए। केंद्रीय एजेंसियों ने सरकार को इस बारे में जानकारी दी है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों के अनुसार, एजेंसियों ने अपनी जांच में पाया है कम से कम 25 अफगानिस्तान के मुस्लिमों ने ईसाई धर्म अपना लिया है।

NavBharat Times : Jul 23, 2020, 04:17 PM
नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन कानून (CAA) से बचने के लिए भारत में रह रहे कई अफगानी और रोहिंग्या मुसलमानों ने ईसाई धर्म को अपना लिया है ताकि उनकी भारतीय नागरिक बनने की राह आसान हो जाए। केंद्रीय एजेंसियों ने सरकार को इस बारे में जानकारी दी है। मामले की जानकारी रखने वाले लोगों के अनुसार, एजेंसियों ने अपनी जांच में पाया है कम से कम 25 अफगानिस्तान के मुस्लिमों ने ईसाई धर्म अपना लिया है।CAA में 3 देशों के प्रवासियों के लिए नियम बनाए गए हैं आसान

पिछले साल संसद में पास नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है। पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है यानी इन तीनों देशों के ऊपर उल्लिखित छह धर्मों के बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी। अभी केंद्रीय गृह मंत्रालय को CAA 2019 के नियम को नोटिफाई करना है।


'कई मुसलमान अपनाना चाह रहे हैं ईसाई धर्म'

दक्षिण दिल्ली के अफगान चर्च में जाने वाले आबिद अहमद मैक्सवेल ने ईटी को बताया, 'CAA कानून बनने के बाद अफगानिस्तान के कई मुस्लिम ईसाई धर्म अपनाना चाह रहे हैं।' 34 साल के मैक्सवेल जब 21 साल के थे तब भारत आए थे। उनके माता-पिता सुन्नी इस्लाम को मानते थे और अफगानिस्तान में काबुल के नजदीक रहते थे। उन्होंने बताया कि ज्यादातर अफगानिस्तानियों ने संयुक्त राष्ट्र हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी (UNHCR) से शरण के लिए आवेदन दिया।


करीब 1.60 लाख अफगानी रहते हैं भारत में

आधिकारिक डेटा के अनुसार, करीब 1.50 लाख से 1.60 लाख अफगानी मुसलमान दिल्ली के ईस्ट कैलाश, लाजपत नगर, अशोक नगर और आश्रम में रहते हैं। इसी समुदाय ने हाल में अफगान सिख निदान सिंह सचदेव को पक्तिका प्रांत में तालिबान आतंकियों के चुंगल से छुड़ाने में मदद की थी।


कई रोहिंग्या खुद को बताते हैं बांग्लादेशी

इसके अलावा, अधिकारियों का मानना है कि करीब 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान पूरे भारत में रहते हैं। जम्मू-कश्मीर में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है। बड़े पैमाने पर रोहिंग्या मुसलमान 2012 से देश में रह रहे हैं और अब खुद को बांग्लादेशी बताते हैं और ईसाई धर्म को भी अपना रहे हैं।


6 साल में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के करीब 4 हजार लोगों को भारतीय नागरिकता

पिछले 6 साल में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के करीब 4,000 हजार लोगों को भारतीय नागरिकता दी गई है। गृह मंत्रालय के अनुसार, 2014 के समझौते सीमा समझौते के तहत भारत ने बांग्लादेश के 50 इनक्लेव को अपने हिस्से में मिलाया था और करीब 14,864 बांग्लादेशी नागरिकों को भारत की नागरिकता दी गई थी।

एक सरकारी अधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया कि CAA में छेड़छाड़ की कोशिश वे कर सकते हैं जिनके शरण की अर्जी UNHCR खारिज कर सकता है या फिर वे रिफ्यूजी रोहिंग्या जो कट-ऑफ डेट से पहले भारत आ गए थे। अफगानी पादरी CAA का समर्थन तो करते हैं लेकिन यह भी चाहते हैं कि इस्लाम से ईसाई धर्म अपनाने वालों को सरकार कुछ सेफगार्ड मुहैया कराए।


अवैध प्रवासियों के लिए क्या है प्रावधान?

अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है। लेकिन केंद्र सरकार ने साल 2015 और 2016 में उपरोक्त 1946 और 1920 के कानूनों में संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन को छूट दे दी है। इसका मतलब यह हुआ कि इन धर्मों से संबंध रखने वाले लोग अगर भारत में वैध दस्तावेजों के बगैर भी रहते हैं तो उनको न तो जेल में डाला जा सकता है और न उनको निर्वासित किया जा सकता है। यह छूट उपरोक्त धार्मिक समूह के उनलोगों को प्राप्त है जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत पहुंचे हैं। इन्हीं धार्मिक समूहों से संबंध रखने वाले लोगों को भारत की नागरिकता का पात्र बनाने के लिए नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 संसद में पेश किया गया था।