The print : May 16, 2020, 01:50 PM
नई दिल्ली: सरकार की ओर आरटीआई के जवाब में दी गई जानकारी मुताबिक लॉकडाउन के ऐलान के पहले 15 जनवरी से 23 मार्च के बीच विदेश से भारत पहुंचने वाले महज 19 फीसदी यात्रियों की ही स्क्रीनिंग की गई। जनवरी में केवल चीन और हांगकांग से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग की गई, फरवरी में स्क्रीनिंग का दायरा बढ़ाया गया जिसमें थाइलैंड और सिंगापुर से आने वाले यात्रियों को शामिल किया गया।आरटीआई एक्टिविस्ट साकेत गोखले को 11 मई को दिए गए जवाब में कहा गया है कि इटली को इस दायरे में 26 फरवरी को शामिल किया गया था जबकि यहां 322 लोगों में संक्रमण के मामले सामने आ चुके थे। तब भी अन्य यूरोपीय देशों को शामिल नहीं किया गया था।
यूनिवर्सल स्क्रीनिंग केवल 4 मार्च से शुरू हुई, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने घोषणा की कि चीन के बाहर 14,000 मामलों के साथ वैश्विक संक्रमण 93,000 को पार कर गया है। भारत ने अपने यहां 30 जनवरी को कोविड-19 के पहले मामले की पुष्टि के लगभग 2 महीने बाद, सभी हवाई यात्रा 23 मार्च को बंद की, 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन किया।कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने दिप्रिंट से मामलों में वृद्धि के लिए हवाई यात्रा को दोषी ठहराते हुए कहा कि स्क्रीनिंग के दायरे को पहले ही बढ़ा कर भारत में कोविड -19 संकट को टाला जा सकता था। पिछले महीने ऑफ द कफ के कार्यक्रम में दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता के साथ एक बातचीत में, डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने बताया कि फरवरी के अंत और मार्च की शुरुआत में देश में बहुत सारे संक्रमण के मामले सामने आए, यहां तक कि उन्होंने सरकार के इस संकट के हल करने के प्रयासों की सराहना भी की। अन्य विशेषज्ञों ने भी आजीविका को ध्यान में रखने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।15 मार्च को एक ट्वीट में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘हमने जनवरी के मध्य से ही भारत में प्रवेश करने वालों की स्र्क्रीनिंग शुरू कर दी थी, जबकि धीरे-धीरे यात्रा पर प्रतिबंध भी बढ़ रहे थे। कदम दर कदम प्रयासों से पैनिक होने से बचने में मदद मिली।’दिप्रिंट फोन कॉल और व्हाट्सएप मैसेज के माध्यम से नागरिक उड्डयन मंत्रालय तक पहुंचा लेकिन उसने इस रिपोर्ट पर टिप्पणी से इंकार कर दिया। हालांकि, मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि यह केवल स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के निर्देशों का पालन कर रहा था।यूरोप से आने वाले यात्रियों को शुरू में स्क्रीनिंग से छूट दी गईस्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के आरटीआई को जवाब में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, 15 लाख से अधिक यात्रियों- 15,24,266 यात्रियों की- 15 जनवरी से 23 मार्च के बीच स्क्रीनिंग की गई। इस अवधि के दौरान, भारत में 78।4 लाख से अधिक यात्री पहुंचे।17 जनवरी को, केवल चीन और हांगकांग से आने वाले यात्रियों को तीन भारतीय हवाई अड्डों- मुंबई, नई दिल्ली और कोलकाता पर स्क्रीनिंग की गई। चार दिन बाद, इसमें चार अन्य हवाई अड्डों- चेन्नई, हैदराबाद, कोच्चि और बेंगलुरु को शामिल किया गया था, लेकिन अन्य देशों के यात्रियों को इसमें शामिल नहीं किया गया था।इस समय तक, चीन के बाहर चार मामलों के साथ 282 कोविड-19 केस की पुष्टि डब्ल्यूएचओ ने कर दी थी।2 फरवरी को, थाईलैंड और सिंगापुर से आने वाले यात्रियों को भी स्क्रीनिंग प्रक्रिया के तहत लाया गया था। इस समय तक, चीन के बाहर 146 मामलों के साथ वैश्विक संक्रमण 14,557 तक पहुंच गया था।12 फरवरी को, 21 भारतीय हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग बढ़ाई गई और जापान और दक्षिण कोरिया के यात्रियों की भी स्क्रीनिंग की जाने लगी। तब तक वैश्विक संक्रमण 24 देशों में 45,171 पर पहुंच चुका था।26 फरवरी से इटली से आने वाले यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू की गई, लेकिन अन्य यूरोपीय देशों के यात्रियों को छूट दी गई थी। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक, संक्रमण पहले से ही 37 देशों में फैल गया था और 26 फरवरी तक अकेले यूरोप में 400 मामले थे।भारत ने सार्वभौमिक तौर पर 4 मार्च को सभी अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए सभी हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग शुरू की। इस समय तक, देश में 44 कोविड-19 मामलों की पुष्टि हो चुकी थी, जबकि वैश्विक संक्रमण 76 देशों में 1 लाख के करीब था।आरटीआई जवाब में यह भी कहा गया है कि 15 जनवरी से 23 मार्च के बीच, बाहर जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों और घरेलू यात्रियों की स्क्रीनिंग नहीं की गई।‘यूरोप से संक्रमण की लहरें’जैसा कि भारत में मौजूदा संक्रमणों की संख्या 1 लाख के करीब है, कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने दिप्रिंट को बताया कि अगर शुरुआत में ज्यादा लोगों की स्क्रीनिंग की गई होती तो इस आपात स्थिति से बचा जा सकता था।‘भारत को पहला मामला सामने आते ही कम से कम छह महीने के लिए अंतर्राष्ट्रीय यात्रा पूरी तरह से रोक देनी चाहिए थी। सभी यात्रा को छूट देने से मामले तेजी से बढ़े’, डॉ। एस। साधुखान, महामारी विज्ञान के प्रोफेसर, ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ, कोलकाता ने कहा।25 अप्रैल को, डब्ल्यूएचओ ने भारत की महामारी की प्रतिक्रिया में कदमों की सराहना करते हुए कहा कि सरकार की कार्रवाइयां संक्रमण की तेजी से फैलने से रोकने में कामयाब रहीं। लेकिन यह रेखांकित किया कि फरवरी के अंत तक यूरोप से बहुत सारे मामले आए।डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने ऑफ द कफ में कहा था, ‘फरवरी-मार्च के अंत में यूरोप से आने वाले बहुत से लोग संक्रमण की लहरें लाए और फिर बहुत सारे लोगों के संपर्क में पहुंचे।’हालांकि, कुछ अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि स्क्रीनिंग महत्व समझा जा सकता है, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति में जीवन और आजीविका जैसे अन्य कारकों पर भी विचार करना होगा।‘हमारा सबसे मजबूत उपकरण हमेशा व्यापक स्क्रीनिंग है। इस दृष्टि से, हम कह सकते हैं कि हमें यूरोप के यात्रियों की स्क्रीनिंग करनी चाहिए थी क्योंकि कई मामले वहां से आ रहे थे लेकिन दक्षिण कोरिया और ताइवान के अलावा किसी अन्य देश ने बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग शुरू नहीं की थी। भारत ने डब्ल्यूएचओ के निर्देशों और दिशा-निर्देशों का व्यापक रूप से पालन किया।’ डॉ। प्रीति कुमार, उपाध्यक्ष, स्वास्थ्य प्रणाली सहायता, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, नई दिल्ली।I'd filed an RTI asking how many incoming intl' passengers were screened at airports between 15 Jan-18 Mar.
— Saket Gokhale (@SaketGokhale) May 14, 2020
Modi govt says 15,24,266 passengers were screened.
DGCA stats say total intl' passenger traffic Jan-Mar is 78.4 lacs
INDIA SCREENED ONLY 19% OF ARRIVING PASSENGERS. pic.twitter.com/Nb5oy71Vlz