Vikrant Shekhawat : Mar 27, 2021, 05:32 PM
नई दिल्ली। इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वैज्ञानिक का दावा तेजी से वायरल हो रहा है। न्यूयॉर्क के माउंट सिनाई हॉस्पिटल में प्रफेसर डॉ शन्ना स्वान ने अपनी रिसर्च में कहा है कि पॉल्यूशन के कारण पुरुषों का प्राइवेट पार्ट छोटा हो रहा है। स्वान ने अपनी रिसर्च के आधार पर एक किताब लिखी है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि मानवता के आगे बांझपन का संकट पैदा हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्लास्टिक बनाने में इस्तेमाल होने वाला एक केमिकल 'फैथेलेट्स' एंडोक्राइन सिस्टम पर असर करता है।
स्काई न्यूज के मुताबिक, डॉ। स्वान ने अपनी किताब में लिखा है कि प्रदूषण की वजह से पिछले कुछ सालों में जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उनके लिंग का आकार छोटा हो रहा है। किताब में आधुनिक दुनिया में पुरुषों के घटते स्पर्म, महिलाओं और पुरुषों के जननांगों में आ रहे विकास संबंधी बदलाव और इंसानी नस्ल के खत्म होने की बात कही गई है।कैसे पहुंच रहा है इंसानों के शरीर में।।।अध्ययन के दौरान आज कल के बच्चों में एनोजेनाइटल डिस्टेंस कम हो रहा है। यह लिंग के वॉल्यूम से संबंधित समस्या है। फैथेलेट्स रसायन का उपयोग प्लास्टिक बनाने के काम आता है। ये रसायन इसके बाद खिलौनों और खाने के जरिए इंसानों के शरीर में पहुंच रहा है।चूहों के लिंग में दिखा था अंतररिपोर्ट के मुताबिक, डॉ स्वान ने फैथेलेट्स सिंड्रोम की जांच उस वक्त शुरू की जब उन्हें नर चूहों के लिंग में अंतर दिखाई दिया। स्टडी के दौरान डॉ। स्वान ने पाया कि सिर्फ नर चूहे के लिंग ही नहीं, बल्कि मादा चूहों के भ्रूण पर भी इसका असर पड़ रहा है। उनके प्रजनन अंग छोटे होते जा रहे हैं। तब उन्होंने फैसला किया कि वो इंसानों पर अध्ययन करेंगी।चूहों के बाद डॉ। स्वान ने इंसानों पर रिसर्च की और उन्होंने चौंकाने वाले खुलासे किए। रिपोर्ट में यह बात भी कही है कि फैथेलेट्स शरीर के अंदर एस्ट्रोजेन हॉर्मोन की नकल करता है। इससे शारीरिक विकास संबंधी हॉर्मोन्स की दर प्रभावित होती है और मनुष्य के शरीर के अंग बिगड़ने लगते हैं।2017 में भी सामने आ चुकी है ऐसी स्टडीहालांकि पुरुषों के प्राइवेट पार्ट के छोटे होने की इस तरह की ये कोई पहली रिसर्च नहीं है। इससे पहले 2017 में एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पश्चिमी देशों के पुरुषों का स्पर्म काउंट पिछले चार दशकों में 50% से भी ज्यादा तक कम हो गया है। डॉ स्वान का मानना है कि जिस तरह से फर्टिलिटी रेट कम हो रहा है, उससे अधिकतर पुरुष 2045 तक ऐसे स्पर्म बना पाने में नाकाम हो जाएंगे जिससे भ्रूण बन सके।
स्काई न्यूज के मुताबिक, डॉ। स्वान ने अपनी किताब में लिखा है कि प्रदूषण की वजह से पिछले कुछ सालों में जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, उनके लिंग का आकार छोटा हो रहा है। किताब में आधुनिक दुनिया में पुरुषों के घटते स्पर्म, महिलाओं और पुरुषों के जननांगों में आ रहे विकास संबंधी बदलाव और इंसानी नस्ल के खत्म होने की बात कही गई है।कैसे पहुंच रहा है इंसानों के शरीर में।।।अध्ययन के दौरान आज कल के बच्चों में एनोजेनाइटल डिस्टेंस कम हो रहा है। यह लिंग के वॉल्यूम से संबंधित समस्या है। फैथेलेट्स रसायन का उपयोग प्लास्टिक बनाने के काम आता है। ये रसायन इसके बाद खिलौनों और खाने के जरिए इंसानों के शरीर में पहुंच रहा है।चूहों के लिंग में दिखा था अंतररिपोर्ट के मुताबिक, डॉ स्वान ने फैथेलेट्स सिंड्रोम की जांच उस वक्त शुरू की जब उन्हें नर चूहों के लिंग में अंतर दिखाई दिया। स्टडी के दौरान डॉ। स्वान ने पाया कि सिर्फ नर चूहे के लिंग ही नहीं, बल्कि मादा चूहों के भ्रूण पर भी इसका असर पड़ रहा है। उनके प्रजनन अंग छोटे होते जा रहे हैं। तब उन्होंने फैसला किया कि वो इंसानों पर अध्ययन करेंगी।चूहों के बाद डॉ। स्वान ने इंसानों पर रिसर्च की और उन्होंने चौंकाने वाले खुलासे किए। रिपोर्ट में यह बात भी कही है कि फैथेलेट्स शरीर के अंदर एस्ट्रोजेन हॉर्मोन की नकल करता है। इससे शारीरिक विकास संबंधी हॉर्मोन्स की दर प्रभावित होती है और मनुष्य के शरीर के अंग बिगड़ने लगते हैं।2017 में भी सामने आ चुकी है ऐसी स्टडीहालांकि पुरुषों के प्राइवेट पार्ट के छोटे होने की इस तरह की ये कोई पहली रिसर्च नहीं है। इससे पहले 2017 में एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पश्चिमी देशों के पुरुषों का स्पर्म काउंट पिछले चार दशकों में 50% से भी ज्यादा तक कम हो गया है। डॉ स्वान का मानना है कि जिस तरह से फर्टिलिटी रेट कम हो रहा है, उससे अधिकतर पुरुष 2045 तक ऐसे स्पर्म बना पाने में नाकाम हो जाएंगे जिससे भ्रूण बन सके।