Zee News : Sep 24, 2020, 04:08 PM
चेन्नई : तमिलनाडु (Tamil Nadu)और देश के कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों के सांसदों ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद (President Ram Nath Kovind) को चिठ्ठी लिखकर हजारों साल पुरानी भारतीय संस्कृति का अध्ययन करने के लिए गठित विशेषज्ञ समिति के मामले में दखल देने की अपील की है।
सांसदों का कहना है कि समिति में उत्तर भारतीयों की संख्या ज्यादा है, उन्होंने प्रस्तावित अध्ययन के उद्देश्य पर संदेह जताते हुए आरोप लगाया है कि समिति में ऐसे लोगों की भरमार है जो संस्कृति, इतिहास और धरोहर के मुद्दे पर पूर्वाग्रह से प्रेरित हो सकते हैं। आबादी के बड़े हिस्से की उपेक्षा का आरोपसांसदों ने अपने खत में राष्ट्रपति से शिकायत करते हुए ये भी कहा कि समिति में देश के एक बड़े हिस्से की आबादी का प्रतिनिधित्व करने वालों को जगह नहीं दी गई है। ऐसे में सरकार का प्रमुख उद्देश्य कैसे पूरा होगा।
दक्षिण और उत्तर पूर्व से कोई प्रतिनिधि क्यों नहीं?अपनी चिठ्ठी में सांसदों ने ये आरोप भी लगाया कि इस समिति के पास ऐसा एक भी कन्नडिगा या दक्षिण भारतीय नहीं है जो द्रविड़ संस्कृति को जानता हो। वहीं इसमें उत्तर पूर्व भारतीयों की उपेक्षा का आरोप लगाया गया है।समिति में अल्पसंख्यक, दलित और महिलाओं की अनुपस्थिति को लेकर गहरी नाराजगी जताई गई है। पत्र में 32 सांसदों के हस्ताक्षर हैं। जिनका मानना है कि समिति भारतीय समाज की कुछ प्रमुख जातियों का ही प्रतिनिधित्व करती है।
पत्र में भाषाई मौलिकता का दिया गया हवालासांसदों ने अपने पत्र में ये सवाल भी उठाया है कि क्या इस देश में संस्कृत के अलावा कोई प्राचीन भाषा नहीं है। सांस्कृतिक समिति के गठन से नाराज सांसदों ने ये सवाल भी पूछा है कि क्या विंध्याचल की पहाड़ियों के नीचे का स्थान देश का हिस्सा नहीं है ?
तमिलनाडु सीएम ने पीएम को लिखा था खतबुधवार को इसी मामले को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई के पलानी स्वामी (Edappadi K Paaniswami) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minster Narendra Modi) को एक पत्र लिखकर मामले में दखल की मांग करते हुए कमेटी में विशेषज्ञों के चयन के दौरान समुचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की मांग की थी। पलानीस्वामी ने कहा कि समिति की संरचना 'गहरी चिंता' का विषय है।उन्होंने कहा, 'तमिलनाडु का गौरवशाली अतीत है और भारत की दक्षिण में सबसे पुरानी सभ्यताओं में द्रविड़ सभ्यता, एक संपन्न संस्कृति है।' उन्होने तमिलनाडु के विशेषज्ञों की अनदेखी का सवाल उठाते हुए संस्कृति मंत्रालय को दक्षिण के विद्वानों को शामिल करते हुए विशेषज्ञ समिति के पुनर्गठन की अपील की थी।
सांसदों का कहना है कि समिति में उत्तर भारतीयों की संख्या ज्यादा है, उन्होंने प्रस्तावित अध्ययन के उद्देश्य पर संदेह जताते हुए आरोप लगाया है कि समिति में ऐसे लोगों की भरमार है जो संस्कृति, इतिहास और धरोहर के मुद्दे पर पूर्वाग्रह से प्रेरित हो सकते हैं। आबादी के बड़े हिस्से की उपेक्षा का आरोपसांसदों ने अपने खत में राष्ट्रपति से शिकायत करते हुए ये भी कहा कि समिति में देश के एक बड़े हिस्से की आबादी का प्रतिनिधित्व करने वालों को जगह नहीं दी गई है। ऐसे में सरकार का प्रमुख उद्देश्य कैसे पूरा होगा।
दक्षिण और उत्तर पूर्व से कोई प्रतिनिधि क्यों नहीं?अपनी चिठ्ठी में सांसदों ने ये आरोप भी लगाया कि इस समिति के पास ऐसा एक भी कन्नडिगा या दक्षिण भारतीय नहीं है जो द्रविड़ संस्कृति को जानता हो। वहीं इसमें उत्तर पूर्व भारतीयों की उपेक्षा का आरोप लगाया गया है।समिति में अल्पसंख्यक, दलित और महिलाओं की अनुपस्थिति को लेकर गहरी नाराजगी जताई गई है। पत्र में 32 सांसदों के हस्ताक्षर हैं। जिनका मानना है कि समिति भारतीय समाज की कुछ प्रमुख जातियों का ही प्रतिनिधित्व करती है।
पत्र में भाषाई मौलिकता का दिया गया हवालासांसदों ने अपने पत्र में ये सवाल भी उठाया है कि क्या इस देश में संस्कृत के अलावा कोई प्राचीन भाषा नहीं है। सांस्कृतिक समिति के गठन से नाराज सांसदों ने ये सवाल भी पूछा है कि क्या विंध्याचल की पहाड़ियों के नीचे का स्थान देश का हिस्सा नहीं है ?
तमिलनाडु सीएम ने पीएम को लिखा था खतबुधवार को इसी मामले को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई के पलानी स्वामी (Edappadi K Paaniswami) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minster Narendra Modi) को एक पत्र लिखकर मामले में दखल की मांग करते हुए कमेटी में विशेषज्ञों के चयन के दौरान समुचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की मांग की थी। पलानीस्वामी ने कहा कि समिति की संरचना 'गहरी चिंता' का विषय है।उन्होंने कहा, 'तमिलनाडु का गौरवशाली अतीत है और भारत की दक्षिण में सबसे पुरानी सभ्यताओं में द्रविड़ सभ्यता, एक संपन्न संस्कृति है।' उन्होने तमिलनाडु के विशेषज्ञों की अनदेखी का सवाल उठाते हुए संस्कृति मंत्रालय को दक्षिण के विद्वानों को शामिल करते हुए विशेषज्ञ समिति के पुनर्गठन की अपील की थी।