छठा चरण / प्रयोगों की धरती पर दिग्गजों की परीक्षा, सभी दलों ने किए कई बदलाव

अब चुनाव उस दौर में है जहां की धरती ज्ञान-विज्ञान, राग-विराग, योग-वियोग, राजयोग, सियासत में साधु, धर्म में नए मर्म व दर्शन के लिए जानी जाती है। सगुण उपासकों की धरती पर निराकार ब्रह्म के साधक कबीर के निर्गुण काव्य से जीव, जगत और ईश के रिश्तों का नया दर्शन देती है।

Vikrant Shekhawat : Mar 03, 2022, 11:11 AM
अब चुनाव उस दौर में है जहां की धरती ज्ञान-विज्ञान, राग-विराग, योग-वियोग, राजयोग, सियासत में साधु, धर्म में नए मर्म व दर्शन के लिए जानी जाती है। सगुण उपासकों की धरती पर निराकार ब्रह्म के साधक कबीर के निर्गुण काव्य से जीव, जगत और ईश के रिश्तों का नया दर्शन देती है। यहां साहित्य में नए शब्दों व शैली, राजसत्ता पर धर्मसत्ता की श्रेष्ठता, समाज की समृद्धि की आकांक्षा में राज्यों की सुव्यवस्थता सुनिश्चित करने जैसे प्रयोगों व उनके परीक्षण के अनगिनत उदाहरण हैं।

बलरामपुर से बस्ती और बलिया तक विस्तार लेती छठवें चरण के चुनाव की धरती पर इस बार हुए प्रयोगों और उनके परिणामों पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। खासतौर से तब जब केंद्र और प्रदेश में भाजपा के

सत्तारूढ़ होने के बाद हुए परिवर्तनों और प्रयोगों को करने वाले पात्रों में शामिल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मैदान में खुद परीक्षा दे रहे हों। निगाहें टिकें भी क्यों नहीं, आखिर फिराक गोरखपुरी जैसे शायर ने इस जमीन को लेकर यूं ही ये थोड़े लिखा था...

बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं,

तुझे ऐ जिंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं।

इस धरती की अलग तासीर है। सनातन संस्कृति के केंद्र में रही भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या की धरती से पौराणिक और आध्यात्मिक रिश्ता रखने वाले तमाम योगियों, ऋषियों, मुनियों, दार्शनिकों, साहित्यकारों की जन्म व कर्मभूमि से काफी ऊर्जावान होती चली गई। प्रयोगों और परीक्षा से निकलने वाले परिणामों के आधार अध्यात्म एवं कर्मयोग के नए-नए सूत्र गढ़ने वाले इस इलाके के लोगों ने देशकाल और परिस्थिति के अनुसार प्रयोग व परीक्षण करने और परिणाम देने शुरू कर दिए। कभी किसी को सबक सिखाकर तो कभी किसी का साथ देकर। ऐसे में सबकी जुबान पर 2022 के नतीजों में इस इलाके की भूमिका का सवाल गूंजना स्वाभाविक है।

हर दल को मिला यहां का साथ

कभी कांग्रेस तो कभी बसपा, कभी समाजवादी तो कभी राष्ट्रवादी राजनीति को महत्व देने के प्रयोग इस धरती पर दिखाई देते रहे हैं। प्रयोग हों भी क्यों नहीं, आखिर इस जमीन का इतिहास और उसके सरोकार रहे ही ऐसे हैं। राजकुमार सिद्धार्थ को गौतमबुद्ध के रूप में गढ़कर उनके माध्यम से दर्शन व योग से बौद्ध धर्म नाम से एक नए आध्यात्मिक मार्ग का दर्शन दिखाकर, तो शैव और योग के समन्वय के दर्शन से नाथ संप्रदाय की स्थापना से सनातन संस्कृति की रक्षा को शास्त्र एवं शक्ति के योग के महत्व और उनके प्रयोग में संतुलन की कला सिखाकर ये धरती धर्म-दर्शन में कर्म और राजधर्म के महत्व को भी समय-समय पर समझाती रही है। इसीलिए जब अटल बिहारी वाजपेयी को लखनऊ और मथुरा ने नहीं पहचाना, तब बलरामपुर ने उनके भीतर छिपे भविष्य के सियासी महानायकत्व को पहचान कर, उन्हें अपना सांसद बनाकर लोकसभा भेजकर साबित कर दिया कि इस धरती की नजर बेहद पारखी है।

अनुमान लगाना काफी मुश्किल : प्रख्यात समाजवादी डॉ. राममनोहर लोहिया की जन्मभूमि अंबेडकरनगर से लेकर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक मंगल पांडेय के पैतृक जिला बलिया तक फैले इस मैदान के कई इलाके अनिश्चितता से भरे और आश्चर्यचकित करने वाले सियासी प्रयोगों व परिणामों के लिए पहचाने जाते हैं। साल 2012 में सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर की 11 सीटों में सिर्फ  एक बांसी पर भी जीत हासिल करने वाली भाजपा 2017 में गठबंधन में शामिल अपना दल, भारतीय समाज पार्टी की एक-एक सीट सहित सभी 11 पर झंडा फहरा देती है। ऐसे कई उदाहरण हैं।

इसी धरती से राजनीति में साधु-संतों के प्रयोग की शुरुआत

धर्म और सियासत के साथ पर इसके घालमेल को लेकर बहस अयोध्या आंदोलन के दौरान भले ही 90 के दशक में तेज हुई हो, लेकिन सियासत ने इस धरती के एक साधु के जरिये चुनाव में भगवा रंग की ताकत का 1948 के तत्कालीन विधानसभा के चुनाव में प्रख्यात समाजवादी आचार्य नरेंद्र देव को पराजित करके आकलन कर लिया था। वह भी उसी अयोध्या की धरती पर जिसके कारण सियासत का रंग-ढंग आज पूरी तरह बदल गया है। हिंदुत्व से दूरी की जगह हिंदुत्व पर कौन बड़ा आस्थावान इसकी प्रतियोगिता दिखने लगी है।

संयोग देखें कि 50 के दशक में कांग्रेस ने कर्नाटक-महाराष्ट्र की सीमा पर बेलगांव के पच्छापुर गांव में जन्मे और देवरिया की धरती पर साधना करके पूर्वांचल के गांधी के नाम से मशहूर हुए बाबा राघवदास के जरिये आचार्य नरेंद्र देव जैसे राजनेता को सियासी तौर पर ठिकाने लगाने की चाल चली। नब्बे के दशक से भाजपा ने उसी प्रयोग से कांग्रेस का हाल बेहाल करना शुरू कर दिया। आचार्य नरेंद्र देव को पराजित करने के लिए कांग्रेस ने देवरिया के जिन बाबा राघवदास का प्रयोग किया था, उसी देवरिया के बगल के संन्यासी योगी आदित्यनाथ बतौर सत्ता प्रमुख कांग्रेस को अपने गृह प्रदेश तो समाजवादियों को अपने पूर्वजों की जड़ों से जुड़ी जमीन पर चुनौती दे रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ िहंदुत्व के सभी प्रतीकों का इस्तेमाल कर राजनीतिक समीकरण दुरुस्त करते रहे हैं। इसलिए यहां का चुनाव राजनीतिक दलों के आंकड़ों को सियासी ज्येष्ठता एवं श्रेष्ठता देने वाला बन गया है। जिनसे उन दलों के सरकार बनाने या विपक्ष में बैठने का परिणाम तय होना है।

बदली भूमिकाओं का क्या होगा असर

इस मैदान में उतरे कुछ प्रमुख महारथियों की भूमिकाएं 2022 में 2017 के मुकाबले बदल गई हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद भी मतदाताओं की कसौटी पर हैं। पिछली बार वह सिर्फ गोरखपुर के भाजपा सांसद और स्टार प्रचारक थे। इस बार वह चुनावी संग्राम में गोरखपुर सीट से प्रत्याशी होने के कारण महारथी भी हैं, तो मुख्यमंत्री के नाते भाजपा की चुनावी सेना के प्रमुख सेनापति भी।

किसी भी सरकार के काम और निर्णय वहां के चुनाव की कसौटी पर कसे जाते हैं, लेकिन इस छठे चरण के संग्राम में योगी के खुद मैदान में होने से हिंदुत्व की विरासत से लेकर विकास तक के कामों पर सीधी परीक्षा होने से यह चरण ज्यादा ही खास बन गया है। कभी भाजपा के रथ पर सवार रहे स्वामी प्रसाद मौर्य इस बार विरोध में मैदान में हैं। हरिशंकर तिवारी का परिवार इस बार बसपा के बजाय साइकिल पर सवार होकर कमल का रास्ता रोककर विधानसभा पहुंचने का मार्ग तलाश रहा है। पूरे पांच साल सुर्खियों में रहने वाले भाजपा के बलिया के बैरिया से विधायक सुरेंद्र सिंह टिकट कटने के बाद बागी होकर भाजपा का रथ रोकने में जुटे हैं। बसपा के गढ़ में हाथी की चाल को ठीक रखने में अहम भूमिका निभाने वाले लालजी वर्मा और रामअचल राजभर इस बार साइकिल पर सवार हैं, तो राकेश पांडेय भी हाथी से उतरकर साइकिल पर सवार होकर चुनावी मैदान में आ डटे हैं। ऐसे में सभी की उत्सुकता यह है कि नेताओं की बदली भूमिकाएं क्या इस इलाके की नई सियासी कहानी भी लिखेगी या नहीं।

तस्वीर का बदलाव क्या बदलेगा समीकरण

पांच सालों में बहुत कुछ बदला है। एम्स एवं हर जिले में बन चुके या बन रहे मेडिकल कॉलेजों ने इस इलाके के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता कराई है। आयुर्वेदिक विश्वविद्यालयों की स्थापना ने प्रदेश में योग एवं आयुर्वेद के क्षेत्र में क्रांति की उम्मीद दिखाई है। गोरखपुर के खाद कारखाने सहित पूर्वांचल के लोगों की बेरोजगारी दूर करने के लिए उद्योग से लेकर पर्यटन तक मुद्दों पर तमाम काम आगे बढ़ रहे हैं। नए शैक्षणिक संस्थानों की शुरुआत से घर के नजदीक उच्च शिक्षा हासिल करने की सुविधा देने को कई काम हुए हैं।

पूर्वांचल एक्सप्रेसवे सहित अन्य तमाम सड़कों व पुलों के निर्माण से राप्ती, सरयू, घाघरा, गंडक और गंगा नदी के बीच की इस इस जमीन की तस्वीर बदलती दिख रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने

अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे कुशीनगर का लोकार्पण कराकर भगवान बुद्ध की निर्वाण स्थली को देश के विभिन्न हिस्सों के साथ दुनिया से भी जोड़ने के साथ दुनिया को नेपाल की सीमा से लगे इस इलाके की तस्वीर बदलने का संदेश दिया है। साथ ही 2014 में बतौर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार केंद्र और राज्य में सरकार बनने पर पूर्वांचल की बदहाली दूर करने के वादे को पूरा करने के कामों पर आगे बढ़ते हुए लोगों को भाजपा पर भरोसा बढ़ाने की कोशिश की है। बस्ती से बलिया तक फैले पूर्वांचल के एक हिस्से में बदलाव के इन्हीं कामों और लोगों की अपेक्षाओं पर भाजपा सरकार का इम्तिहान होने जा रहा है। नतीजा बताएगा कि इस इलाके की बदलती तस्वीर ने यहां की सियासी तासीर भी बदली है या नहीं। लोग विरासत से विकास तक के कामों के प्रयोग को स्वीकार करते हैं या दुष्यंत कुमार के शब्दों में...

एक आदत सी बन गई है तू,

और आदत कभी नहीं जाती। का परिचय देते हुए कोई नया प्रयोग सामने लाते हैं।

भाजपा को मिलेगी भारी सफलता

भाजपा के प्रदेश महामंत्री और गोरखपुर क्षेत्र के प्रभारी अनूप गुप्ता कहते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर क्षेत्र सहित पूर्वांचल में केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर आगे बढ़े थे। 2022 में मोदी के साथ गोरक्षपीठाधीश्वर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी चेहरा हैं। पांच वर्ष में योगी सरकार ने पूर्वांचल की दशा और दिशा बदली है। पूरा पूर्वांचल सीएम योगी के साथ खड़ा है। पूर्वांचल से योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री होने के कारण इस क्षेत्र में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिलेगी।

सपा को मिलेंगी ज्यादा सीटें

सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि प्रदेश की जनता सपा की ओर देख रही है। अन्य चरणों की तरह ही छठवें चरण में भी सपा को ज्यादातर सीटें मिलनी तय हैं। यही वजह है कि भाजपा बौखला गई है। बौखलाहट में कहीं मारपीट कर रही है, तो कहीं तोड़-फोड़। फर्जी लेटरपैड पर अनर्गल बातें प्रचारित की जा रही हैं। जनता भाजपा की हर चाल को समझती है। वह उसके हर षड्यंत्र का जवाब वोट से देगी।