AajTak : May 06, 2020, 02:46 PM
दिल्ली: अगर नहीं सुधरे तो अगले 50 साल में भारत में मौजूद 1.20 बिलियन यानी 120 करोड़ लोग भयानक गर्मी का सामना करेंगे। ये गर्मी वैसी होगी जैसी सहारा रेगिस्तान में पड़ती है। ऐसा सिर्फ इसलिए होगा कि तब तक वैश्विक तापमान बढ़ जाएगा। कारण होगा प्रदूषण, पेड़ों की कटाई और इसकी वजह से हो रही ग्लोबल वार्मिंग। भारत, नाइजीरिया और पाकिस्तान समेत 10 देश इससे अछूते नहीं रहेंगे।
ब्रिटेन की एक्सटेर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता टिम लेंटन ने बताया कि जब मैंने ये आंकड़े देखे तो दंग रह गया। मैंने कई बार चेक किया लेकिन यही आकंड़े सामने निकल कर आ रहे थे। ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा खतरा इंसानों को ही है। यही सबसे ज्यादा मुश्किल में आएंगे। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेंज में प्रकाशित टिम लेंटन की रिपोर्ट के मुताबिक इंसान अब तक उन इलाकों में रहना पसंद करते हैं जहां का औसत न्यूनतम तापमान 6 डिग्री और औसत अधिकतम तापमान 28 डिग्री सेल्सियस तक जाए। इसके ऊपर या नीचे उन्हें दिक्कत होने लगती है।लेकिन अब दुनिया के कई देशों में जमीन समुद्र की तुलना में ज्यादा तेजी से गर्म हो रही है। यानी इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में जब औसत 3 डिग्री सेल्सयस का इजाफा होगा, तब इंसानों के अलग-अलग देशों और वहां मौसम के अनुसार 7।5 डिग्री ज्यादा तापमान तक का सामना करना पड़ेगा। यानी अगर आप भारत में रहते हैं और गर्मियों में तापमान अधिकतम 48 डिग्री सेल्सियस तक जाता है, तो इस सदी के अंत तक यह तापमान बढ़कर 55 या 56 डिग्री सेल्सियस हो सकता है। लेकिन यहां पर बात औसत तापमान की हो रही है, वो भी बढ़ रहा है। इस हिसाब से दुनिया की 30 फीसदी आबादी को बहुत ज्यादा तापमान में रहना पड़ सकता है।गर्मियों के मौसम में 55 या 56 डिग्री तापमान सहारा रेगिस्तान में आम बात है। जब इस सदी के अंत तक धरती का औसत तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा तब भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान समेत कई देशों के नागरिकों को होगी गर्मी से दिक्कत। टिम लेंटन ने बताया कि भारत के करीब 120 करोड़ लोग सहारा रेगिस्तान जैसी गर्मी में रहने को मजबूर हो जाएंगे। नाइजीरिया के 48.5 करोड़, पाकिस्तान के 18.5 करोड़, इंडोनेशिया के 14.6 करोड़, सूडान में 10.3 करोड़, नाइजर में 10 करोड़, फिलिपींस में 9.90 करोड़, बांग्लादेश में 9.80 करोड़, बुर्किना फासो में 6.40 करोड़ और थाईलैंड में 6.20 करोड़ लोग ऐसी ही गर्मी में रहेंगे। वेजनिंजेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्टेन शेफर ने बताया कि लोगों के लिए 29 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान वाली जगह पर ही रहना मुश्किल होता है। आगे भी होगा। लेकिन इंसानों को इसके अनुसार ढलना होगा। अब दिक्कत ये भी है कि इंसान कितना खुद को ढालेगा। खुद को ढालने की भी एक सीमा है। प्रो। मार्टेन शेफर ने कहा कि अगले 50 सालों में इंसानों को अपनी धरती और उसके वातावरण में इतने बदलाव देखने को मिलेंगे जितने पिछले 6000 सालों में नहीं दिखे। दुनिया भर के देशों को प्रदूषण कम करना होगा। नहीं तो इससे होने वाले नुकसान से सबसे ज्यादा इंसान प्रभावित होगा।
ब्रिटेन की एक्सटेर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता टिम लेंटन ने बताया कि जब मैंने ये आंकड़े देखे तो दंग रह गया। मैंने कई बार चेक किया लेकिन यही आकंड़े सामने निकल कर आ रहे थे। ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा खतरा इंसानों को ही है। यही सबसे ज्यादा मुश्किल में आएंगे। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेंज में प्रकाशित टिम लेंटन की रिपोर्ट के मुताबिक इंसान अब तक उन इलाकों में रहना पसंद करते हैं जहां का औसत न्यूनतम तापमान 6 डिग्री और औसत अधिकतम तापमान 28 डिग्री सेल्सियस तक जाए। इसके ऊपर या नीचे उन्हें दिक्कत होने लगती है।लेकिन अब दुनिया के कई देशों में जमीन समुद्र की तुलना में ज्यादा तेजी से गर्म हो रही है। यानी इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में जब औसत 3 डिग्री सेल्सयस का इजाफा होगा, तब इंसानों के अलग-अलग देशों और वहां मौसम के अनुसार 7।5 डिग्री ज्यादा तापमान तक का सामना करना पड़ेगा। यानी अगर आप भारत में रहते हैं और गर्मियों में तापमान अधिकतम 48 डिग्री सेल्सियस तक जाता है, तो इस सदी के अंत तक यह तापमान बढ़कर 55 या 56 डिग्री सेल्सियस हो सकता है। लेकिन यहां पर बात औसत तापमान की हो रही है, वो भी बढ़ रहा है। इस हिसाब से दुनिया की 30 फीसदी आबादी को बहुत ज्यादा तापमान में रहना पड़ सकता है।गर्मियों के मौसम में 55 या 56 डिग्री तापमान सहारा रेगिस्तान में आम बात है। जब इस सदी के अंत तक धरती का औसत तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा तब भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान समेत कई देशों के नागरिकों को होगी गर्मी से दिक्कत। टिम लेंटन ने बताया कि भारत के करीब 120 करोड़ लोग सहारा रेगिस्तान जैसी गर्मी में रहने को मजबूर हो जाएंगे। नाइजीरिया के 48.5 करोड़, पाकिस्तान के 18.5 करोड़, इंडोनेशिया के 14.6 करोड़, सूडान में 10.3 करोड़, नाइजर में 10 करोड़, फिलिपींस में 9.90 करोड़, बांग्लादेश में 9.80 करोड़, बुर्किना फासो में 6.40 करोड़ और थाईलैंड में 6.20 करोड़ लोग ऐसी ही गर्मी में रहेंगे। वेजनिंजेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मार्टेन शेफर ने बताया कि लोगों के लिए 29 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान वाली जगह पर ही रहना मुश्किल होता है। आगे भी होगा। लेकिन इंसानों को इसके अनुसार ढलना होगा। अब दिक्कत ये भी है कि इंसान कितना खुद को ढालेगा। खुद को ढालने की भी एक सीमा है। प्रो। मार्टेन शेफर ने कहा कि अगले 50 सालों में इंसानों को अपनी धरती और उसके वातावरण में इतने बदलाव देखने को मिलेंगे जितने पिछले 6000 सालों में नहीं दिखे। दुनिया भर के देशों को प्रदूषण कम करना होगा। नहीं तो इससे होने वाले नुकसान से सबसे ज्यादा इंसान प्रभावित होगा।