Vikrant Shekhawat : Jun 09, 2021, 04:26 PM
Delhi: आज से तीन दशक पहले तक लोगों के पास इंटरनेट नहीं था, ऐसे में पॉर्न कल्चर भी ना के बराबर था। हालांकि जैसे जैसे दुनिया तकनीकी तौर पर बेहतर हुई है, उसी स्तर पर पॉर्न की दुनिया भी विकसित हुई है। अब एक प्रमुख कानूनी विशेषज्ञ का दावा है कि डीपफेक पॉर्नोग्राफी आने वाले समय में यौन शोषण की महामारी साबित हो सकता है। कुछ सालों पहले तक किसी शख्स के चेहरे को बदलकर उसकी इमेज को मोडिफाई करने की खबरें आती रही हैं लेकिन डीपफेक तकनीक के चलते यही प्रक्रिया अब वीडियो में भी दोहराई जाने लगी है जो आने वाले दौर में कई लोगों खासकर महिलाओं के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है।
डीपफेक एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जिसमें कंप्यूटर तकनीक का इस्तेमाल कर किसी भी इंसान के शरीर पर कोई भी चेहरा रखा जा सकता है और ये तकनीक इतनी कारगर है कि इसमें कहीं से भी ऐसा प्रतीत नहीं होता कि किसी व्यक्ति की बॉडी पर किसी दूसरे शख्स का चेहरा इस्तेमाल किया गया है। डीपफेक तकनीक कुछ समय पहले जब मार्केट में वायरल हुई थी तब कई लोगों को लगा था कि इससे फेक न्यूज के मामले काफी बढ़ सकते हैं क्योंकि किसी भी राजनेता की फेक इमेज को इस्तेमाल कर उससे कोई भी बयान दिलवाकर उसे वायरल किया जा सकता है। हालांकि इससे पहले ही इस तकनीक के ज्यादा खतरनाक पहलू सामने आने लग गए। डीपफेक्स के विशेषज्ञ हेनरी एजडर इस टेक्नोलॉजी के डेवलेपमेंट को काफी बारीकी से फॉलो कर रहे हैं। उन्होंने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा कि डीपफेक का क्रेज 2017 के आसपास शुरु हुआ था। एक शख्स ने एक ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर शेयर करने के साथ ही इस तकनीक को आमलोगों के लिए थोड़ा आसान बना दिया था।उन्होंने आगे कहा कि पहले जहां डीपफेक के लिए जटिल विजुएल इफेक्ट्स और प्रोग्रामिंग की जरूरत होती थी, वहीं अब कुछ हद तक ज्यादातर लोग इसे कर सकते हैं लेकिन नतीजे किसी भी इंसान के कंप्यूटर स्किल्स पर निर्भर करते हैं। उन्होंने कहा कि इसका काफी गलत इस्तेमाल हो सकता है और इसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। शेफील्ड में रहने वाली हेलेन मोर्ट एक राइटर हैं। उन्होंने दो साल पहले एक पॉर्न वेबसाइट पर अपनी डीपफेक तस्वीरें देखी थीं। ये तस्वीरें साल 2017 से ही इंटरनेट पर थीं। बीबीसी के साथ बातचीत में हेलेन ने कहा कि वे इन तस्वीरों को देखकर सदमे में चली गई थीं।हेलेन ने कहा कि मैंने जैसे ही इन तस्वीरों को देखा था, मेरे दिमाग में ख्याल आया था कि आखिर मैंने ऐसा क्या किया जो मुझे ये दिन देखना पड़ रहा है? मेरी कोई गलती ना होने के बावजूद मुझे अपने आप को लेकर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। हेलेन इस बात की शुक्रगुजार थी कि किसी ने उनके चेहरे का इस्तेमाल कर डीपफेक वीडियो नहीं बनाया था। वे इन तस्वीरों को तो हटवा चुकी हैं लेकिन इंग्लैंड में तस्वीरों के साथ मैनिपुलेशन करना अब तक क्राइम नहीं माना जाता है। ऐसे में हेलेन को अब तक नहीं पता चला है कि किसने उनकी फोटो के साथ छेड़खानी की थी। डरहम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मेक्ग्लायन ने इस मामले में कहा कि यूं तो डीपफेक का शिकार हुए लोगों की संख्या फिलहाल काफी कम है लेकिन अगर हम इसे लेकर पूरी तरह से लापरवाह रहे तो भविष्य में ये बड़ी समस्या बन सकती है। उन्होंने आगे कहा कि अगर हमने इस तकनीक पर काबू नहीं पाया और चीजों को बदलने की कोशिश नहीं की तो ये एक महामारी का रूप धारण कर सकता है और इसे शोषण की महामारी कहना गलत नहीं होगा।
डीपफेक एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जिसमें कंप्यूटर तकनीक का इस्तेमाल कर किसी भी इंसान के शरीर पर कोई भी चेहरा रखा जा सकता है और ये तकनीक इतनी कारगर है कि इसमें कहीं से भी ऐसा प्रतीत नहीं होता कि किसी व्यक्ति की बॉडी पर किसी दूसरे शख्स का चेहरा इस्तेमाल किया गया है। डीपफेक तकनीक कुछ समय पहले जब मार्केट में वायरल हुई थी तब कई लोगों को लगा था कि इससे फेक न्यूज के मामले काफी बढ़ सकते हैं क्योंकि किसी भी राजनेता की फेक इमेज को इस्तेमाल कर उससे कोई भी बयान दिलवाकर उसे वायरल किया जा सकता है। हालांकि इससे पहले ही इस तकनीक के ज्यादा खतरनाक पहलू सामने आने लग गए। डीपफेक्स के विशेषज्ञ हेनरी एजडर इस टेक्नोलॉजी के डेवलेपमेंट को काफी बारीकी से फॉलो कर रहे हैं। उन्होंने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा कि डीपफेक का क्रेज 2017 के आसपास शुरु हुआ था। एक शख्स ने एक ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर शेयर करने के साथ ही इस तकनीक को आमलोगों के लिए थोड़ा आसान बना दिया था।उन्होंने आगे कहा कि पहले जहां डीपफेक के लिए जटिल विजुएल इफेक्ट्स और प्रोग्रामिंग की जरूरत होती थी, वहीं अब कुछ हद तक ज्यादातर लोग इसे कर सकते हैं लेकिन नतीजे किसी भी इंसान के कंप्यूटर स्किल्स पर निर्भर करते हैं। उन्होंने कहा कि इसका काफी गलत इस्तेमाल हो सकता है और इसे गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है। शेफील्ड में रहने वाली हेलेन मोर्ट एक राइटर हैं। उन्होंने दो साल पहले एक पॉर्न वेबसाइट पर अपनी डीपफेक तस्वीरें देखी थीं। ये तस्वीरें साल 2017 से ही इंटरनेट पर थीं। बीबीसी के साथ बातचीत में हेलेन ने कहा कि वे इन तस्वीरों को देखकर सदमे में चली गई थीं।हेलेन ने कहा कि मैंने जैसे ही इन तस्वीरों को देखा था, मेरे दिमाग में ख्याल आया था कि आखिर मैंने ऐसा क्या किया जो मुझे ये दिन देखना पड़ रहा है? मेरी कोई गलती ना होने के बावजूद मुझे अपने आप को लेकर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। हेलेन इस बात की शुक्रगुजार थी कि किसी ने उनके चेहरे का इस्तेमाल कर डीपफेक वीडियो नहीं बनाया था। वे इन तस्वीरों को तो हटवा चुकी हैं लेकिन इंग्लैंड में तस्वीरों के साथ मैनिपुलेशन करना अब तक क्राइम नहीं माना जाता है। ऐसे में हेलेन को अब तक नहीं पता चला है कि किसने उनकी फोटो के साथ छेड़खानी की थी। डरहम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मेक्ग्लायन ने इस मामले में कहा कि यूं तो डीपफेक का शिकार हुए लोगों की संख्या फिलहाल काफी कम है लेकिन अगर हम इसे लेकर पूरी तरह से लापरवाह रहे तो भविष्य में ये बड़ी समस्या बन सकती है। उन्होंने आगे कहा कि अगर हमने इस तकनीक पर काबू नहीं पाया और चीजों को बदलने की कोशिश नहीं की तो ये एक महामारी का रूप धारण कर सकता है और इसे शोषण की महामारी कहना गलत नहीं होगा।