Vikrant Shekhawat : Jun 13, 2023, 06:04 PM
Indian Cricket Team: अंग्रेजी का एक शब्द है- ट्रांजिशन, हिंदी में इसे आप संक्रमण कहते हैं. आसान शब्दों में समझना हो तो बदलाव भी कह सकते हैं. इस शब्द का इस्तेमाल क्रिकेट के खेल में भी होता है. खासतौर पर तब जबकि किसी टीम में एक साथ बड़े बदलाव हो रहे हों. एक साथ कई दिग्गज खिलाड़ी मैदान को अलविदा कह रहे हों. ये दौर दुनिया की हर टीम ने देखा है. लेकिन पिछले 20 साल में जिन दो टीमों के ‘ट्रांजिशन’ की चर्चा सबसे ज्यादा रही, वो हैं- भारत और ऑस्ट्रेलिया. 2006-2009 के बीच ऑस्ट्रेलिया ने बदलाव का दौर देखा. 2012-2014 के बीच टीम इंडिया ने बदलाव का दौर देखा.इन बदलावों पर हम विस्तार से बात करेंगे लेकिन उससे पहले वो सवाल जो इस समय भारतीय क्रिकेट के सामने खड़ा हो गया है. 2023 वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप में ऑस्ट्रेलिया के हाथों करारी हार के बाद ये सवाल बड़ा है कि क्या टीम इंडिया एक बार फिर ‘ट्रांजिशन’ के दौर से गुजरने वाली है. क्या ये रोहित, विराट, पुजारा से आगे देखने का सही वक्त है?2012 से 2014 तक का समय याद कीजिएक्या आपको आज से करीब 10 साल पहले की भारतीय टेस्ट टीम की तस्वीर याद है? क्या आपको वो खिलाड़ी याद हैं जो उस वक्त टीम इंडिया के लिए मैदान में उतरते थे? इस सवाल पर 90 फीसदी से ज्यादा लोगों का जवाब ‘हां’ में होगा. ये वो दौर था जब भारतीय टीम की तरफ से सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, जहीर खान जैसे दिग्गज खिलाड़ी खेला करते थे. अब एक और सवाल का जवाब दीजिए, क्या आपको याद है कि इन दिग्गज खिलाड़ियों ने रिटायरमेंट किस साल लिया था या अपना आखिरी टेस्ट मैच कब खेला था?अब दिमाग ज्यादा दौड़ाना पड़ेगा. चलिए हम आपकी मदद करते हैं और आपको इस सवाल का जवाब देते हैं. ये दौर 2012 से 2014 का है. 2012 में राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण ने संन्यास लिया था. 2013 में वीरेंद्र सहवाग ने आखिरी टेस्ट खेला था. 2013 में ही सचिन तेंडुलकर ने संन्यास लिया था. 2014 में जहीर खान ने आखिरी टेस्ट मैच खेला था. इसे ही भारतीय क्रिकेट का ‘ट्रांजिशन फेस’ या संक्रमण काल कहा गया.2 साल के अंतराल में हुआ था दिग्गजों का रिटायरमेंटये वो दौर था जब क्रिकेट फैंस के मन में कई आशंकाएं थीं. उनको लगता था कि सचिन नहीं होंगे तो भारतीय क्रिकेट का चेहरा कौन होगा? सहवाग नहीं होंगे तो बेखौफ क्रिकेट का ब्रांड एम्बेसडर कौन होगा? द्रविड़ या लक्ष्मण के जाने के बाद भारतीय टीम के मिडिल ऑर्डर की कमान कौन संभालेगा? कौन भारतीय बल्लेबाजी की रीढ़ बनेगा? या जहीर खान के चले जाने के बाद गेंदबाजी की यूनिट को कौन संभालेगा? लेकिन इन सारी आशंकाओं का जवाब मिला. ये सूरज के निकलने से ऐन पहले का सबसे घना अंधेरा लगता था. लेकिन सूरज उगा. भारतीय क्रिकेट की चमक फीकी नहीं पड़ी.रोहित शर्मा, विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा जैसे खिलाड़ियों ने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी पूरा किया. बड़े बड़े दिग्गज खिलाड़ियों के दौर में ही इन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रख दिया था. जब दिग्गज गए तो इन खिलाड़ियों ने अपने पैर और मजबूती से जमाए. काफी हद तक ये कहना सही होगा कि ऐसा लगा ही नहीं कि भारतीय क्रिकेट के महानतम खिलाड़ियों में शुमार दिग्गजों के जाने का कोई बहुत बड़ा फर्क पड़ा हो.तब ऑस्ट्रेलिया से बेहतर स्थिति में माने गए थेअब ऑस्ट्रेलिया की बात करते हैं. दरअसल, 2012 से 2014 का जो दौर भारतीय क्रिकेट ने देखा उसकी तुलना ऑस्ट्रेलिया के 2006-2008 के दौर से की जाती थी. ऐसा इसलिए क्योंकि जिन खिलाड़ियों के दम पर ऑस्ट्रेलिया ने विश्व क्रिकेट पर राज किया था वो 2006-2009 के बीच रिटायर हुए थे. आपको याद दिला दें कि 2006 में जेसन गिलेस्पी और डेमियन मार्टिन ने आखिरी मैच खेला था. अगले साल 2007 में ग्लेन मैग्रा और शेन वॉर्न ने आखिरी मैच खेला. 2008 में एडम गिलक्रिस्ट और 2009 में मैथ्यू हेडन चले गए.तारीखों के लिहाज से ‘रिटायरमेंट’ आगे पीछे भले ही ‘एनाउंस’ हुआ हो लेकिन इन दिग्गजों के आखिरी मैच 2006 से 2009 के बीच ही रहे. क्रिकेट समीक्षक ऐसा मानते हैं कि ऑस्ट्रेलिया की टीम को इस स्थिति से निपटने में थोड़ा समय लगा था. रिकी पॉन्टिंग की अगुवाई में टीम बिखरी नहीं थी लेकिन उसे संभलने में थोड़ा वक्त लगा था. 2012 से 2014 के दौरान जब भारतीय टीम ऐसे दौर में आई तो उसकी स्थिति बेहतर मानी जाती है.अब मौजूदा समय में लौट आइएओवल में भारतीय टीम को वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप में 200 से ज्यादा रन से हार का सामना करना पड़ा. ना रोहित शर्मा चले, ना विराट कोहली, ना ही चेतेश्वर पुजारा और मोहम्मद शमी . इन खिलाड़ियों की फॉर्म, फिटनेस और उम्र तीनों की बात कर लेते हैं. रोहित शर्मा 36 साल के हैं. उनकी फिटनेस की समस्या हर किसी को पता है. विराट 35 साल के हैं. विराट फिट हैं अब रन भी बना रहे हैं लेकिन अब आप उनको मैच विनर नहीं कह सकते हैं. उदाहरण के तौर पर 2023 का आईपीएल ले लीजिए, जहां उन्होंने 639 रन बनाए. 2 शतक और 6 अर्धशतक लगाए. लेकिन उनकी टीम प्लेऑफ तक भी नहीं पहुंच पाई. क्योंकि टी-20 फॉर्मेट के लिहाज से उनकी स्ट्राइक रेट पर सवाल उठते रहे. विराट का स्ट्राइक रेट करीब 140 का था.पुजारा भी करीब 36 साल के हैं. 2019 के बाद से उनके बल्ले से सिर्फ एक शतक निकला है, वो भी बांग्लादेश के खिलाफ. वो भारत के टेस्ट स्पेशलिस्ट बल्लेबाज हैं. वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के काफी पहले से इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट खेल रहे थे. पहली पारी में उन्होंने 14 रन बनाए और दूसरी में 27. बुमराह की गैरमौजूदगी में शमी तेज गेंदबाजी की जान हैं. उनकी उम्र 33 साल है. लेकिन उनकी फिटनेस भी परेशान करती रहती है. उम्र का तकाजा यही कहता है कि ये सभी खिलाड़ी थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर ही क्रिकेट को अलविदा कहेंगे. वो समय अब बहुत ज्यादा दूर नहीं है.वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का अगला फाइनल 2025 में है2025 के फाइनल में करीब दो साल का वक्त बाकी है. अव्वल तो पहली लड़ाई 2025 के फाइनल में जगह बनाने की है. मान लिया कि फाइनल में पहुंच भी गए तो क्या इन्हीं चेहरों के दम पर आप लड़ाई लड़ेंगे? भूलिएगा नहीं अभिमन्यु ईश्वरन, यशस्वी जायसवाल, ऋतुराज गायकवाड़, रिंकू सिंह जैसे करीब आधा दर्जन खिलाड़ी तैयार हैं. यानी पुराने रिकॉर्ड्स और अनुभव की दुहाई से आगे बढ़ने का वक्त है. इस बार के ‘ट्रांजिशन’ को भी अगर 2012 की तरह ‘स्मूथ’ रखना है तो वक्त की नजाकत को भांपना होगा. विराट, रोहित, पुजारा से आगे देखना होगा. इस बात को स्वीकार करना होगा कि विराट कोहली, रोहित शर्मा, चेतेश्वर पुजारा में भले ही क्रिकेट बची हो लेकिन अब ये बेस्ट ऑफ द बेस्ट नहीं रह गए हैं, हां बेस्ट ऑफ रेस्ट जरूर हो सकते हैं. हो सकता है अभी आपको ये जल्दबाजी में कही गई बात लग रही हो लेकिन यकीन मानिए बाद में इस जल्दबाजी को आप भी दूरदर्शिता कहेंगे.