अहमदाबाद / आज उस वैज्ञानिक की जयंती है, जिसने देश को अंतरिक्ष तक पहुंचाया और अब्दुल कलाम दिया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के जनक और अब्दुल कलाम जैसी प्रतिभा को आगे बढ़ाने वाले वैज्ञानिक की जयंती पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी है। पद्म विभूषण से सम्मानित यह महान वैज्ञानिक मात्र 52 वर्ष की उम्र में दुनिया छोड़कर चले गए, लेकिन देश को बहुत कुछ दे गए, जो हमेशा प्रासांगिक रहेगा। आज उनकी 100वीं जयंती है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के जनक और अब्दुल कलाम जैसी प्रतिभा को आगे बढ़ाने वाले वैज्ञानिक की जयंती पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी है। पद्म विभूषण से सम्मानित यह महान वैज्ञानिक मात्र 52 वर्ष की उम्र में दुनिया छोड़कर चले गए, लेकिन देश को बहुत कुछ दे गए, जो हमेशा प्रासांगिक रहेगा। आज उनकी 100वीं जयंती है।

जी हां! विक्रम साराभाई ऐसी महान शख्सियत थे। देश आज अंतरिक्ष अनुसंधान के मामले में एक से बढ़कर एक नजीर पेश कर रहा है, लेकिन इसकी शुरूआत उन्होंने ही की थी। पहला सैटेलाइट लांच करने से लेकर अब्दुल कलाम जैसे युवा वैज्ञानिकों को आगे बढ़ाने वाले वही शख्सित थे। भारतीय वैज्ञानिक विक्रम अंबालाल साराभाई की आज 100वीं जंयती है। 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद में जन्में विक्रम साराभाई ने भारत को अंतरिक्ष तक पहुंचाया। उन्हें आज पूरा देश याद कर रहा है। उनको भारत के स्पेस प्रोग्राम का जनक माना जाता है। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना की थी। डॉ॰ विक्रम साराभाई के नाम को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग नहीं किया जा सकता। यह जगप्रसिद्ध है कि वह विक्रम साराभाई ही थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाया। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने अन्य क्षेत्रों जैसे वस्त्र, भेषज, आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रानिक्स और अन्य अनेक क्षेत्रों में भी बराबर का योगदान किया।

डॉ. साराभाई अपने दौर के उन गिने-चुने वैज्ञानिकों में से एक थे जो अपने साथ काम करने वाले वैज्ञानिकों और खासकर युवा वैज्ञानिकों को आगे बढ़ने में मदद करते थे। उन्होंने डॉ.अब्दुल कलाम के करियर के शुरुआती चरण में उनकी प्रतिभाओं को निखारने में अहम भूमिका निभाई। डॉ.कलाम ने खुद कहा था कि वह तो उस फील्ड में नवागंतुक थे। डॉ.साराभाई ने ही उनमें खूब दिलचस्पी ली और उनकी प्रतिभा को निखारा। कलाम खुद ने अपनी आत्मकथा अग्नि की उड़ान में यह लिखा है। भारत के परमाणु विज्ञान कार्यक्रम का जनक डॉ. होमी भाभा ने भारत में पहला रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन स्थापित करने में विक्रम साराभाई का समर्थन किया। पहली उड़ान 21 नवंबर, 1963 को सोडियम वाष्प पेलोड के साथ लॉन्च की गई थी।  डॉ॰ साराभाई एक स्वप्नद्रष्टा थे और उनमें कठोर परिश्रम की असाधारण क्षमता थी। फ्रांसीसी भौतिक वैज्ञानिक पीएरे क्यूरी (1859-1906) जिन्होंने अपनी पत्नी मैरी क्यूरी (1867-1934) के साथ मिलकर पोलोनियम और रेडियम का आविष्कार किया था, के अनुसार डॉ॰ साराभाई का उद्देश्य जीवन को स्वप्न बनाना और उस स्वप्न को वास्तविक रूप देना था। इसके अलावा डॉ॰ साराभाई ने अन्य अनेक लोगों को स्वप्न देखना और उस स्वप्न को वास्तविक बनाने के लिए काम करना सिखाया। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता इसका प्रमाण है।

डॉ॰ साराभाई में एक प्रवर्तक वैज्ञानिक, भविष्य द्रष्टा, औद्योगिक प्रबंधक और देश के आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक उत्थान के लिए संस्थाओं के परिकाल्पनिक निर्माता का अद्भुत संयोजन था। उनमें अर्थशास्त्र और प्रबंध कौशल की अद्वितीय सूझ थी। उन्होंने किसी समस्या को कभी कम कर के नहीं आंका। उनका अधिक समय उनकी अनुसंधान गतिविधियों में गुजरा और उन्होंने अपनी असामयिक मृत्युपर्यन्त अनुसंधान का निरीक्षण करना जारी रखा। उनके निरीक्षण में 19 लोगों ने अपनी डाक्ट्रेट का कार्य सम्पन्न किया। डॉ॰ साराभाई ने स्वतंत्र रूप से और अपने सहयोगियों के साथ मिलकर राष्ट्रीय पत्रिकाओं में 86 अनुसंधान लेख लिखे।

कोई भी व्यक्ति बिना किसी डर या हीन भावना के डॉ॰ साराभाई से मिल सकता था, फिर चाहे संगठन में उसका कोई भी पद क्यों न रहा हो। साराभाई उसे सदा बैठने के लिए कहते। वह बराबरी के स्तर पर उनसे बातचीत कर सकता था। वे व्यक्तिविशेष को सम्मान देने में विश्वास करते थे और इस मर्यादा को उन्होंने सदा बनाये रखने का प्रयास किया। वे सदा चीजों को बेहतर और कुशल तरीके से करने के बारे में सोचते रहते थे। उन्होंने जो भी किया उसे सृजनात्मक रूप में किया। युवाओं के प्रति उनकी उद्विग्नता देखते ही बनती थी। डॉ॰ साराभाई को युवा वर्ग की क्षमताओं में अत्यधिक विश्वास था। यही कारण था कि वे उन्हें अवसर और स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए सदा तैयार रहते थे।

देश कर रहा याद, गूगल ने खास डूडल बनाया

डॉ विक्रम साराभाई को याद करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट किया, 'डॉ. विक्रम साराभाई की जन्म शती पर उन्हें सादर नमन। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक और भारतीय विज्ञान के पुरोधा डॉ. साराभाई ने विविध क्षेत्रों में संस्थाओं का निर्माण किया और वैज्ञानिकों की कई पीढ़ियों का मार्गदर्शन किया। देश उनकी सेवाओं को हमेशा याद रखेगा।'

पीआरएल की स्थापना

इन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट हासिल करने से पहले गुजरात कॉलेज में पढ़ाई की। इसके बाद अहमदाबाद में ही उन्होंने फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (पीआरएल)  की स्थापना की। इस समय उनकी उम्र महज 28 साल थी। 

आजादी की लड़ाई में भी भरपूर योगदान 

पीआरएल की सफल स्थापना के बाद की डॉ साराभाई ने कई संस्थानों की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। तकनीकी समाधानों के अलावा इनका और इनके परिवार ने आजादी की लड़ाई में भी भरपूर योगदान दिया।

IIM Ahmdabad की स्थापना कराई 

परमाणु उर्जा आयोग के चेयरमैन रहने के साथ-साथ उन्होंने अहमदाबाद के उद्योगपतियों की मदद से आइआइएम अहमदाबाद(IIM Ahmdabad) की भी स्थापना की। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। सेटेलाईट इंस्ट्रक्शनल टेलीवीजन एक्सपेरिमेंट (SITE)  के लांच में भी साराभाई ने अहम भूमिका निभाई जब इन्होंने 1966 में नासा से इसेक लिए बातचीत की।डॉ॰ साराभाई एक महान संस्थान निर्माता थे। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में संस्थान स्थापित करने में अपना सहयोग दिया। साराभाई ने सबसे पहले अहमदाबाद वस्त्र उद्योग की अनुसंधान एसोसिएशन (एटीआईआरए) के गठन में अपना सहयोग प्रदान किया। यह कार्य उन्होंने कैम्ब्रिज से कॉस्मिक रे भौतिकी में डाक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त कर लौटने के तत्काल बाद हाथ में लिया। उन्होंने वस्त्र प्रौद्योगिकी में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया था। एटीआईआरए का गठन भारत में वस्त्र उद्योग के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। उस समय कपड़े की अधिकांश मिलों में गुणवत्ता नियंत्रण की कोई तकनीक नहीं थी। डॉ॰ साराभाई ने विभिन्न समूहों और विभिन्न प्रक्रियाओं के बीच परस्पर विचार-विमर्श के अवसर उपलब्ध कराए।

डॉ॰ साराभाई द्वारा स्थापित कुछ सर्वाधिक जानी-मानी संस्थाओं के नाम इस प्रकार हैं-

  • भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल), अहमदाबाद
  • भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद
  • सामुदायिक विज्ञान केन्द्र; अहमदाबाद
  • दर्पण अकादमी फॉर परफार्मिंग आट्र्स, अहमदाबाद
  • विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र, तिरूवनंतपुरम
  • स्पेस एप्लीकेशन्स सेंटर, अहमदाबाद
  • फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर) कलपक्कम
  • वैरीएबल एनर्जी साईक्लोट्रोन प्रोजक्ट, कोलकाता
  • भारतीय इलेक्ट्रानिक निगम लिमिटेड (ईसीआईएल) हैदराबाद
  • भारतीय यूरेनियम निगम लिमिटेड (यूसीआईएल) जादुगुडा, बिहार।
देश के पहले सेटेलाईट लांच में अहम भूमिका

वह देश-विदेश की अनेक विज्ञान और शोध सम्बन्धी संस्थाओं के अध्यक्ष और सदस्य थे। देश के पहले सेटेलाईट आर्यभट्ट को भी लांच करने में इनकी अहम भूमिका रही। ‘नेहरू विकास संस्थान’ के माध्यम से उन्होंने गुजरात की उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह देश-विदेश की अनेक विज्ञान और शोध सम्बन्धी संस्थाओं के अध्यक्ष और सदस्य थे। 

कई पुरस्कार से नवाजे गए

विक्रम साराभाई को 1962 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार मिला। उन्हें 1966 में पद्म भूषण और 1972 में पद्म विभूषण (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया था। 1971 में महज 52 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। डॉ॰ साराभाई सांस्कृतिक गतिविधियों में भी गहरी रूचि रखते थे। वे संगीत, फोटोग्राफी, पुरातत्व, ललित कलाओं और अन्य अनेक क्षेत्रों से जुड़े रहे। अपनी पत्नी मृणालिनी के साथ मिलकर उन्होंने मंचन कलाओं की संस्था दर्पण का गठन किया। उनकी बेटी मल्लिका साराभाई बड़ी होकर भारतनाट्यम और कुचीपुड्डी की सुप्रसिध्द नृत्यांग्ना बनीं। डॉ॰ साराभाई का कोवलम, तिरूवनंतपुरम (केरल) में 30 दिसम्बर 1971 को देहांत हो गया। इस महान वैज्ञानिक के सम्मान में तिरूवनंतपुरम में स्थापित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लाँचिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) और सम्बध्द अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदल कर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र रख दिया गया। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के रूप में उभरा है। 1974 में सिडनी स्थित अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ ने निर्णय लिया कि 'सी ऑफ सेरेनिटी' पर स्थित बेसल नामक मून क्रेटर अब साराभाई क्रेटर के नाम से जाना जाएगा।