Vikrant Shekhawat : Dec 14, 2019, 12:37 PM
जयपुर | निर्भया केस में दोषियों का फांसी का समय नजदीक आ गया है (Nirbhaya gangrape accused hang date)। फांसी तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में होनी है तो वहां भी तैयारी जोर शोर से चल रही है। किसी भी वक़्त बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में शामिल मुकेश, विनय शर्मा, अक्षय कुमार सिंह और पवन गुप्ता को फांसी के तख्ते पर लटकाया जा सकता है। अब जबकि 7 साल पुराने मामले में फांसी का दिन करीब है। कुछ सवाल जैसे फांसी की प्रकिया क्या होती है? फांसी के फंदे तक पहुंचने से पहले दोषी के क्या अधिकार होते हैं? इन अधिकार के खत्म होने के बाद क्या होता है? फांसी देने से पहले जेल प्रशासन क्या तैयारियां करता है? हमारे सामने बने हुए हैं। तो आइये समझें इस बात को कि कैसे दी जाती है किसी मामले में फांसी और साथ में ये भी समझें कि इस पूरी प्रक्रिया में क्या होता है।मुकेश, पवन, अक्षय और विनय। ये वो चार गुनाहगार हैं जिन्हें निर्भया रेप केस में दोषी मानते हुए फांसी की सजा दी गई है। बात अगर इन चारों अपराधियों की हो तो मौत से बचने के तमाम कानूनी दरवाजे इनके लिए बंद हो गए हैं। वर्तमान में अगर कोई इनकी जान बचा सकता है तो वो देश के राष्ट्रपति हैं। आरोपियों की दया याचिका (mercy petition) देश के राष्ट्रपति के पास तो है मगर जैसा इनका अपराध है माना यही जा रहा है कि राष्ट्रपति के दर से भी इन चारों दरिंदों को बैरंग ही लौटना पड़ेगा। जैसे ही राष्ट्रपति भवन से इनकी दया याचिका खारिज होगी वैसे ही पटियाला हाउस कोर्ट से चारों के नाम का ब्लैक वारंट जारी कर दिया जाएगा।क्या है ब्लैक वारंट?आसान भाषा में कहें तो ब्लैक वारंट (Black warrant) का मतलब है मौत का आखिरी पैग़ाम यानी वो प्रक्रिया जिसके बाद निश्चित तौर पर फांसी होती है। सवाल अगर ब्लैक वारंट की वास्तविक परिभाषा का हो तो ये एक ऐसा नोटिस है जिसमें अदालत दोषी के फांसी के समय और फांसी की जगह का निर्धारण करती है। आपको बताते चलें कि निर्भया मामले में ब्लैक वारंट जारी होते साथ ही ये चारों दरिंदे आजाद भारत में फांसी पाने वाले 58वें। 59वें, 60वें और 61वें गुनहगार होंगे। ध्यान रहे कि इससे पहले देश की आखिरी या ये कहें कि 57 वीं फांसी 2015 में याकूब मेमन को दी गई थी।फांसी से पहले डेथ सेल में रखे जाते हैं मुजरिमऐसा बिलकुल नहीं है कि फांसी से पहले वो अपराधी सार्वजानिक घूमता है जिसे फांसी होती है। डेथ सेल (Death cell) में इन्हें अकेले रहना होता है। चूंकि निर्भया मामले में फांसी तिहाड़ जेल में होनी है तो बता दें कि फांसी से पहले अपराधियों को अन्य कैदियों की बैरेक से दूर डेथ सेल में रखा जाता है और तिहाड़ में जेल नंबर तीन में जिस जगह पर ये डेथ सेल या फांसी कोठी बनी है वो पूरी तरह से सुनसान है।जेल नंबर तीन में जिस बिल्डिंग में फांसी कोठी है उसी बिल्डिंग में कुल 16 डेथ सेल हैं। जिनमें सिर्फ उन्हीं कैदियों को रखा जाता है जिन्हें मौत की सज़ा मिली है। डेथ सेल में कैदी को अकेला रखा जाता है। 24 घंटे में सिर्फ आधे घंटे के लिए उसे टहलने के उद्देश्य से बाहर निकाला जाता है।बात अगर इस सेल में रहने वाले कैदियों और इनकी पहरेदारी की हो तो आपको बता दें कि डेथ सेल की पहरेदारी तमिलनाडु स्पेशल पुलिस करती है। दो-दो घंटे की शिफ्ट में काम करने वाले तमिलनाडु स्पेशल पुलिस के जवान्नों का काम केवल और केवल मौत की सजा पाए कैदियों पर नजरें रखना होता है ताकि कोई कैदी खुदकुशी करने की कोशिश न करे।यहां कैदियों की सिक्योरिटी को कितनी प्राथमिकता दी जाती है इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि सेल में बंद अपराधियों को पायजामे का नाड़ा तक नहीं दिया जाता। ब्लैक वारंट पर दस्तखत होने के बाद फांसी की तारीख और वक्त जेल प्रशासन के सुझाव और तैयारी को देख कर अदालत तय करती है। इसके बाद सबसे पहला काम होता है फांसी के लिए जल्लाद ढूंढना और दूसरा काम फंदे की रस्सी का इंतजाम करना।क्या होती है फांसी की रस्सी की खासियतफांसी के फंदे (Hanging rope) के लिए किसी आम रस्सी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। बल्कि ये एक विशेष प्रकार की रस्सी होती है। जिसे मनीला रोप के नाम से भी जाना जाता है। इसको लचीला बनाने के लिए इस पर मोम या मक्खन का लेप किया जाता है। कुछ जल्लाद इसके लिए पके हुए केले को मसलकर रस्सी पर लगाते हैं।फांसी के फंदे के लिए इस्तेमाल किये जाने वाली इस रस्सी को देश में सिर्फ बिहार के बक्सर जेल में तैयार किया जाता है। रस्सी की कीमत तकरीबन 900 रुपए होती है। ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि फांसी के फंदे के लिए इस्तेमाल किये जाने वाली इस रस्सी को यूं ही रखा जाता है। इसके लिए बड़े एहतियात बरतने पड़ते हैं। रस्सी को उस स्थान से दूर रखा जाता है जहां सीलन हो। रस्सी जब आती है तो इसे घड़े या फिर बक्से में ही रखा जाता है। लम्बाई के लिहाज से फांसी की रस्सी 1।8 मीटर से 2।4 मीटर के बीच होती है।होता है फांसी का ट्रायलएक बार मनीला रोप (Manila rope) जेल पहुंचन जाने के बाद अब उसी रस्सी से ट्रायल होता है। ट्रायल यानी फांसी देने से पहले फांसी की प्रैक्टिस। इसके लिए बाकायदा फांसी पर चढ़ाए जाने वाले शख्स की लंबाई, वजन गर्दन की नाप। सब नापा जाता है। फिर ठीक उसी साइज और वजन के सैंड बैग को फंदे पर झुलाया जाता है। यही वजह है कि जिस शख्स को फांसी दी जानी होती है उसके वजन और लंबाई का रिकार्ड रोजाना अपडेट होता रहता है। फांसी के लिए रस्सी की लंबाई भी कैदियों के वजन के हिसाब से तय होती है।दरअसल जिस तख्ते पर फांसी दी जाती है उस तख्ते के नीचे कुएं की गहराई 15 फीट होती है। ताकि जमीन और झूलते पैर के बीच पूरा फासला हो। फांसी के फंदे पर झूलने वाले शख्स का वजन अगर 45 किलो या उससे कम है तो फिर तख्ते के नीचे कुएं में लटकने के लिए रस्सी की लंबाई ज्यादा रखी जाती है। जो करीब आठ फीट होती है।जबकि फांसी पर चढ़ाए जाने वाले शख्स का वजन अगर 90 किलो या उससे ज्यादा है तो कुएं में झूलने के लिए रस्सी की लंबाई कम रखी जाती है। करीब छह फीट। ऐसा इसलिए होता है कि वजन की वजह से रस्सी पर दबाव ज्यादा पड़ता है। रस्सी की लंबाई की नाप सिर से नहीं बल्कि बाएं कान के नीचे जबड़े से ली जाती है। क्योंकि फांसी के फंदे की गांठ वहीं से शुरू होती है।क्या निर्भया के गुनहगारों को एकसाथ फांसी दी जा सकती है?होने को तो ये फांसी दो-दो करके भी दी जा सकती है, मगर बात क्योंकि तिहाड़ जेल की है तो बता दें कि तिहाड़ में जो फांसी कोठी है उसके तख्ते की लंबाई करीब दस फीट है। यानी ये इतनी जगह है जितने में 4 लोगों को खड़ा करके फांसी दी जा सकती है। बस इसके लिए तख्ते के ऊपर लोहे के रॉड पर चार फांसी के फंदे कसने होंगे।तख्ते के नीचे भी लोहे का रॉड होता है। जिससे तख्ता खुलता और बंद होता है। इस रॉड का कनेक्शन तख्ते के साइड में लगे लिवर से होता है। लिवर खींचते ही नीचे का रॉड हट जाता है और तख्त के दोनों सिरे नीचे की तरफ खुल जाते हैं।जिससे तख्त पर खडे शख्स के पैर नीचे कुएं में झूल जाते हैं।वसीयत और मुलाकातफांसी से पहले अगर मरने वाला कोई वसीयत करना चाहता है तो बाकायदा डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को जेल बुलवाकर उनके सामने उसकी वसीयत लिखी जाती है। इसी तरह आखिरी बार जिस रिश्तेदार से भी वो मिलना चाहे उससे भी उसे मिलवाया जाता है।क्या होता है फांसी के वक़्तजिस सुबह फांसी दी जानी है उस सुबह करीब चार बजे ही फांसी पर चढ़ने वाले को उठा दिया जाता है। उससे नहाने और नए कपड़े पहनने को कहा जाता है। मौत की सुबह कैदी को सिर्फ चाय के लिए पूछा जाता है। इसके बाद ब्लैक वारंट पर लिखे वक्त के हिसाब से कैदी को उसके सेल से बाहर निकाला जाता है।जिस समय ये सब हो रहा होता है उस वक़्त कैदी का चेहरा ढक दिया जाता है। ताकि उसे ये न पता चले कि उसके आसपास क्या हो रहा है। फांसी के फंदे तक ले जाते हुए कैदी के इर्द-गिर्द 12 हथियारबंद गार्ड होते हैं। कई बार तो कैदी को कंधे से उठा कर ले जाया जाता है क्योंकि मौत के डर की वजह से उसके पैर तक कांप रहे होंते हैं।कौन कौन रहता है फांसी के दौरानफांसी घर में कितने लोग रहेंगे इसके लिए भी जेल मैन्यूअल में साफ लिखा है। जो लोग वहां मौजूद होते हैं उनमें एक डाक्टर होता है, जो डेथ सर्टिफिकेट पर दस्तखत करता है। इसके अलावा एक डिविजनल मजिस्ट्रेट भी मौके पर मौजूद रहता है और उसी की निगरानी में फांसी की पूरी प्रक्रिया होती है। साथ ही वहां जेलर और डिप्टी सुप्रीटेंडेंट जेलर के अलावा 10 कांस्टेबल और दो हेड कांस्टेबल या फिर इतने ही हथियारबंद गार्ड उपस्थित रहते हैं।फांसी के वक़्त क्या कहते हैं नियमफांसी कोठी पहुंचने के बाद आम तौर पर कोई भी जेल स्टाफ या जल्लाद आपस में बात नहीं करते हैं। सब खामोश रहते हैं। इसके आगे की सारी कार्रवाई इशारों में होती है। जेलर ब्लैक वारंट के हिसाब से तय वक्त होते ही रूमाल नीचे की तरफ जैस ही गिराने कर इशारा करता है लिवर पकड़े जल्लाद या पुलिसवाला लिवर खींच देता है। लीवर खींचने के आधे घंटे बाद पहली बार डाक्टर मरने वाले की धड़कनें और नब्ज टटोलता है। अगर ध़ड़कन रुक गई और नब्ज थम गई तब डाक्टर के इशारे पर फांसी के फंदे से लाश नीचे उतार ली जाती है।