उतर प्रदेश / योगी सरकार के लिए मुख्तार अंसारी पर कठोर कार्रवाई के क्या हैं मायने? 5 प्वाइंट्स में जानिए

यूपी में बीजेपी की जीत के बाद योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने 2017 में सीएम बनते ही अपराधियों को यूपी छोड़ देने की नसीहत दी थी। उन्हीं की सरकार ने माफिया डॉन मुख्तार अंसारी (Mafia Don Mukhtar Ansari) को यूपी लाने के लिए एड़ी चोटी का जोर क्यों लगा दिया? आखिर क्यों पुलिस के बड़े-बड़े अफसरों से लेकर मंत्री तक इसे योगी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि गिना रहे हैं

Vikrant Shekhawat : Apr 06, 2021, 05:35 PM
लखनऊ। यूपी में बीजेपी की जीत के बाद योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने 2017 में सीएम बनते ही अपराधियों को यूपी छोड़ देने की नसीहत दी थी। उन्हीं की सरकार ने माफिया डॉन मुख्तार अंसारी (Mafia Don Mukhtar Ansari) को यूपी लाने के लिए एड़ी चोटी का जोर क्यों लगा दिया? आखिर क्यों पुलिस के बड़े-बड़े अफसरों से लेकर मंत्री तक इसे योगी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि गिना रहे हैं। सवाल तो ये भी उठता है कि क्या मुख्तार अंसारी पर कार्रवाई सिर्फ एक माफिया के खिलाफ की जा रही कार्रवाई है या इसके कुछ और भी मायने हैं? जानकारों का मानना है कि चुनावी साल से ऐन पहले योगी सरकार के ऐसे एक्शन के बड़े राजनीतिक मायने हैं। आइए जानते हैं वो कौन से पांच बड़े मायने हैं?

अपराधियों पर जीरो टॉलरेंस की नीति

2017 में सत्ता संभालने के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपराध पर जीरो टॉलरेंस का वायदा किया था। इस वायदे के साथ ही प्रदेश में ताबड़तोड़ एनकाउण्टर्स शुरू हो गये थे। सिलसिला अभी भी जारी है। बदमाशों के साथ प्रदेश के माननीय बन चुके बड़े-बड़े बाहुबलियों पर भी एक्शन शुरू हो गए। भदोही के गोपीगंज से विधायक विजय मिश्रा हों या फिर जौनपुर से सांसद रहे धनंजय सिंह, अतीक अहमद हों या फिर मुख्तार अंसारी, सभी बाहुबलियों की योगी सरकार ने आर्थिक कमर तो तोड़ी ही, उन्हें उनकी करतूत की मुकम्मल सजा भी देने की कोशिश की।

दूसरी सरकारों से अलग दिखने की कोशिश

अपराधियों पर नकेल कसने की कसमें तो सभी सरकारें खाती रही हैं लेकिन, एक्शन के मामले में रवैया दूसरा ही दिखता रहा है। योगी सरकार इस परिभाषा को बदल रही है। सपा और बसपा की सरकारों में भी अपराधियों पर एक्शन हुए लेकिन, बाहुबली माननीयों पर आंच नहीं आई। योगी सरकार ने पिछली सरकारों के उलट अपना रवैया दिखाया है और ये जताने की कोशिश की है कि सत्ता में पैठ बना लेने से बचने का रास्ता नहीं मिल जायेगा।

ब्राह्मण, ठाकुर या फिर मुस्लिम, बाहुबलियों पर एक साथ चाबुक

लखनऊ में हिन्दूवादी नेता कमलेश तिवारी की नृशंस हत्या हो, कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों को मारने वाले विकास दुबे का एनकाउण्टर हो या फिर विधायक विजय मिश्रा पर नकेल, इन सभी घटनाओं के बाद योगी सरकार को ब्राह्मण विरोधी बताकर बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया में अभियान चलाया गया था। ये चर्चा अब कहीं नहीं होती। बाहुबली धन्नंजय सिंह, अतीक अहमद और मुख्तार अंसरी पर चोट करके योगी सरकार ने इस मिथक को झूठा करार दे दिया है। उसने बता दिया है कि बाहुबलियों पर कार्रवाई जाति विशेष को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि चौतरफा की जायेगी।

चुनावी साल में जाने से पहले पुराने वायदे की पूर्ति

2022 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। चुनावी माहौल शुरु होने में अब 6 महीने से भी कम समय बचा है। ऐसे में योगी सरकार चुनावी समर में उतरने से पहले ये जता देना चाहती है कि उसने सत्ता संभालने के समय जो वायदा किया था, उसे पूरा कर दिया है। 2017 में सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपराधियों पर तगड़ी नकेल कसने की बात कही थी। अब जब वे 2022 के चुनावी रैलियों में उतरेंगे तो सीना ठोककर कह सकेंगे कि कितने बाहुबलियों को धूल चटाई।


पूर्वांचल से ऑर्गनाइज्ड क्राइम का खात्मा

सालों से पूर्वांचल ऑर्गनाइज्ड क्राइम का गढ़ रहा। कोयले और रेलवे ठेकों की लूट के लिए बड़े-बड़े माफिया पैदा हो गये। इन पर कार्रवाई तो बीच-बीच में होती रही लेकिन, राजनीतिक मतलब भी साधे जाते रहे। लिहाजा माफियाओं की जड़ें और गहरी होती गयीं। योगी सरकार ने इसी ऑर्गनाइज्ड क्राइम पर चोट की है। पिछले बीस सालों में जो न हो सका, उसे कर दिखाने का संदेश सरकार देना चाहती है।

हालांकि अदालतों में पुलिस को और मेहनत करनी होगी क्योंकि मुख्तार अंसारी के खिलाफ चल रहे केसों में उसे कोर्ट से गुनहगार सावित करवाना भी बड़ी चुनौती है। बड़े माफियाओं के खिलाफ गवाहों का टूटना कोई नयी बात नहीं है। मुख्तार के खिलाफ यूपी सहित दूसरे राज्यों में करीब 52 मुकदमे दर्ज हैं। फिलहाल 15 मुकदमे ट्रायल पर हैं।