Vikrant Shekhawat : Jun 18, 2021, 04:23 PM
Delhi: इंसान समेत कई जानवरों की एक जीभ होती है पर सांप की जीभ दो हिस्से में क्यों बंटी होती है। इस सवाल ने कई सदियों तक वैज्ञानिकों और जीव विज्ञानियों के लिए दिक्कत खड़ी की थी। सांप की जीभ के दो हिस्से जिन्हें वह हमेशा हवा में निकालकर अलग-अलग दिशा में घुमाता है, उसका क्या काम होता है? क्या इसका इंसानों के दो कान और नाक के दो छेद से कोई संबंध है? या फिर उसे खाने-पीने में ज्यादा स्वाद आए इसलिए ऐसा है? आइए जानते हैं कि सांप की जीभ के दो हिस्सों में बंटने की वजह क्या है?
यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टीकट में इकोलॉजी और इवोल्यूशनरी बायोलॉजी के प्रोफेसर कर्ट श्वेंक कहते हैं कि सांप (Snakes) की जीभ के दो हिस्सों में बंटने की कहानी शुरू होती है डायनासोर के जमाने से। ये बात है करीब 18 करोड़ साल पहले की। अपने बड़े और भयावह रिश्तेदारों के पैरों के नीचे न आए, इसलिए ये मिट्टी में गड्ढे या किसी बिल में छिपकर रहते थे। सांप का शरीर लंबा, पतला और सिलेंडर जैसा होता है। इनके पैर नहीं होते। बिना रोशनी के इनकी दृष्टि (Vision) धुंधली हो जाती है। सांप की जीभ उसके नाक का काम करती हैं। ये गंध लेने के लिए हवा में जीभ को निकालकर लहराता है। फ्रांस के प्रकृतिविद बर्नार्ड जर्मेन डे लेसेपेडे ने बताया था कि अरस्तु (Aristotle) का मानना था कि सांप की दो हिस्सों में बंटी हुई जीभ स्वाद का डबल मजा लेने के लिए होती है। 17वीं सदी के प्रकृतिविद और अंतरिक्ष विज्ञानी जियोवानी बैटिस्टा होडिर्ना का मानना था कि सांप अपनी दो जीभों से धूल को उठाते हैं। क्योंकि उन्हें लगातार जमीन पर रेंगना होता है। वहीं, अन्य वैज्ञानिकों का मानना था कि ये अपनी जीभ से कीट-पतंगों को पकड़ते हैं।एक मजेदार थ्योरी यह भी आई थी कि सांप अपनी जीभ से जहर का डंक मारता है। ऐसा माना जाता है कि ये गलत जानकारी प्रसिद्ध लेखक शेक्सपियर ने अपनी कहानियों के जरिए लोगों के बीच फैलाई थी। उनका कहना था कि सांप अपनी जीभ से छूकर अपने दुश्मनों को मार देता है। वहीं, फ्रांसीसी नेचुरलिस्ट जीन बैपटिस्टे लैमार्क ने थोड़ी सही परिभाषा दी थी। लैमार्क कहते थे कि सांप अपनी जीभ से कुछ वस्तुओं को महसूस करते हैं क्योंकि उनकी दृष्टि कम रोशनी में बाधित हो जाती है। लैमार्क की यह थ्योरी 19वीं सदी तक लगभग सच मानी जाती थी। सांप के दो हिस्सों में बंटी जीभ के असली काम का पता 1900 के बाद हुआ। सांप की इस जीभ को वोमेरोनेजल (Vomeronasal) अंग कहते थे। यह अंग कई ऐसे जीवों में पाया जाता है जो जमीन पर रेंग कर या लगभग रेंग कर चलते हैं। इनमें कई स्तनधारी भी आते हैं। सिर्फ बंदरों के पूर्वज और इंसानों में ऐसा नहीं मिलता। वोमेरोनेजल (Vomeronasal) अंग सांप की नाक के चेंबर के नीचे होता है। ये जीभ के दोनों हिस्सों पर गंध समझने वाले कणों को चिपकाकर हवा में बाहर लहराता है। इन कणों से गंध चिपकती है। इसके बाद सांप को यह पता चल जाता है कि आगे क्या है, या क्या हो सकता है। दो हिस्सों में बंटी जीभ पर वोमेरोनेजल (Vomeronasal) अंग से निकलने वाले कण स्वाद के लिए नहीं बल्कि गंध को पहचानने की क्षमता रखते हैं। ये कण गंध को महसूस करने के बाद जब सांप के मुंह में जाते हैं, तो उसके दिमाग में यह संदेश जाता है कि आगे क्या है या क्या हो सकता है। आगे खतरा है या खाने लायक कोई जीव। सांप जब हवा में अपनी जीभ लहराते हैं तब वो इसके दोनों हिस्सों को काफी दूर तक अलग करते हैं, ताकि ज्यादा बड़े इलाके और दिशा से गंध को समझ सकें। जीभ के दोनों हिस्से अलग-अलग गंध भी महसूस कर सकते हैं। ये गंध को चिपकाने वाले कणों को वोमेरोनेजल (Vomeronasal) अंग के अलग-अलग हिस्सों में भेजते हैं। ये ठीक उसी तरह से काम करता है जैसे हमारे कान। कान अलग-अलग दिशा से आती हुई आवाज को समझ लेते हैं। उनकी दिशा भी पता कर सकते हैं। इसलिए सांप इस जीभ का उपयोग करके खतरे से बचता है। खाना खोजता है और प्रजनन के लिए मादा की गंध सूंघता है। छिपकलियों की तरह सांप की जीभ काम नहीं करती। ये हवा में ऊपर और नीचे की तरफ तेजी से जीभ के दोनों हिस्सों को लहराते हैं। कई बार तो एक हिस्सा ऊपर तो दूसरा नीचे जाता है। जब ये हवा में लहराते हैं तब इनमें से हवा में दो अलग-अलग वॉर्टिसेस (Vortices) बनते हैं। यानी दो छोटे-छोटे पंखे। ये इसी गंध को अपनी ओर खींचते हैं। जीभ से गंध चिपकते ही इसका संदेश दिमाग तक चला जाता है।जीभ के दोनों हिस्सों से अलग-अलग तरह की गंध जमा करने से फायदा ये होता है कि सांप यह पता कर पाते हैं कि किस दिशा में उन्हें फायदा होगा और किधर खतरा। जब बात सर्वाइव करने और इवॉल्व होने की होती है तो आमतौर पर कई जीवों के अंग निष्क्रिय हो जाते हैं। लेकिन सांपों के मामले में ये दो हिस्सों में बंटी हुई जीभ एक प्राकृतिक अजूबा से कम नहीं है। कर्ट कहते हैं कि ये बात तो पक्का हो गई है कि सांपों की जीभ स्वाद के लिए नहीं गंध लेने के लिए होती है। जो इस जीव के सर्वाइवल के लिए बेहद जरूरी अंग है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टीकट में इकोलॉजी और इवोल्यूशनरी बायोलॉजी के प्रोफेसर कर्ट श्वेंक कहते हैं कि सांप (Snakes) की जीभ के दो हिस्सों में बंटने की कहानी शुरू होती है डायनासोर के जमाने से। ये बात है करीब 18 करोड़ साल पहले की। अपने बड़े और भयावह रिश्तेदारों के पैरों के नीचे न आए, इसलिए ये मिट्टी में गड्ढे या किसी बिल में छिपकर रहते थे। सांप का शरीर लंबा, पतला और सिलेंडर जैसा होता है। इनके पैर नहीं होते। बिना रोशनी के इनकी दृष्टि (Vision) धुंधली हो जाती है। सांप की जीभ उसके नाक का काम करती हैं। ये गंध लेने के लिए हवा में जीभ को निकालकर लहराता है। फ्रांस के प्रकृतिविद बर्नार्ड जर्मेन डे लेसेपेडे ने बताया था कि अरस्तु (Aristotle) का मानना था कि सांप की दो हिस्सों में बंटी हुई जीभ स्वाद का डबल मजा लेने के लिए होती है। 17वीं सदी के प्रकृतिविद और अंतरिक्ष विज्ञानी जियोवानी बैटिस्टा होडिर्ना का मानना था कि सांप अपनी दो जीभों से धूल को उठाते हैं। क्योंकि उन्हें लगातार जमीन पर रेंगना होता है। वहीं, अन्य वैज्ञानिकों का मानना था कि ये अपनी जीभ से कीट-पतंगों को पकड़ते हैं।एक मजेदार थ्योरी यह भी आई थी कि सांप अपनी जीभ से जहर का डंक मारता है। ऐसा माना जाता है कि ये गलत जानकारी प्रसिद्ध लेखक शेक्सपियर ने अपनी कहानियों के जरिए लोगों के बीच फैलाई थी। उनका कहना था कि सांप अपनी जीभ से छूकर अपने दुश्मनों को मार देता है। वहीं, फ्रांसीसी नेचुरलिस्ट जीन बैपटिस्टे लैमार्क ने थोड़ी सही परिभाषा दी थी। लैमार्क कहते थे कि सांप अपनी जीभ से कुछ वस्तुओं को महसूस करते हैं क्योंकि उनकी दृष्टि कम रोशनी में बाधित हो जाती है। लैमार्क की यह थ्योरी 19वीं सदी तक लगभग सच मानी जाती थी। सांप के दो हिस्सों में बंटी जीभ के असली काम का पता 1900 के बाद हुआ। सांप की इस जीभ को वोमेरोनेजल (Vomeronasal) अंग कहते थे। यह अंग कई ऐसे जीवों में पाया जाता है जो जमीन पर रेंग कर या लगभग रेंग कर चलते हैं। इनमें कई स्तनधारी भी आते हैं। सिर्फ बंदरों के पूर्वज और इंसानों में ऐसा नहीं मिलता। वोमेरोनेजल (Vomeronasal) अंग सांप की नाक के चेंबर के नीचे होता है। ये जीभ के दोनों हिस्सों पर गंध समझने वाले कणों को चिपकाकर हवा में बाहर लहराता है। इन कणों से गंध चिपकती है। इसके बाद सांप को यह पता चल जाता है कि आगे क्या है, या क्या हो सकता है। दो हिस्सों में बंटी जीभ पर वोमेरोनेजल (Vomeronasal) अंग से निकलने वाले कण स्वाद के लिए नहीं बल्कि गंध को पहचानने की क्षमता रखते हैं। ये कण गंध को महसूस करने के बाद जब सांप के मुंह में जाते हैं, तो उसके दिमाग में यह संदेश जाता है कि आगे क्या है या क्या हो सकता है। आगे खतरा है या खाने लायक कोई जीव। सांप जब हवा में अपनी जीभ लहराते हैं तब वो इसके दोनों हिस्सों को काफी दूर तक अलग करते हैं, ताकि ज्यादा बड़े इलाके और दिशा से गंध को समझ सकें। जीभ के दोनों हिस्से अलग-अलग गंध भी महसूस कर सकते हैं। ये गंध को चिपकाने वाले कणों को वोमेरोनेजल (Vomeronasal) अंग के अलग-अलग हिस्सों में भेजते हैं। ये ठीक उसी तरह से काम करता है जैसे हमारे कान। कान अलग-अलग दिशा से आती हुई आवाज को समझ लेते हैं। उनकी दिशा भी पता कर सकते हैं। इसलिए सांप इस जीभ का उपयोग करके खतरे से बचता है। खाना खोजता है और प्रजनन के लिए मादा की गंध सूंघता है। छिपकलियों की तरह सांप की जीभ काम नहीं करती। ये हवा में ऊपर और नीचे की तरफ तेजी से जीभ के दोनों हिस्सों को लहराते हैं। कई बार तो एक हिस्सा ऊपर तो दूसरा नीचे जाता है। जब ये हवा में लहराते हैं तब इनमें से हवा में दो अलग-अलग वॉर्टिसेस (Vortices) बनते हैं। यानी दो छोटे-छोटे पंखे। ये इसी गंध को अपनी ओर खींचते हैं। जीभ से गंध चिपकते ही इसका संदेश दिमाग तक चला जाता है।जीभ के दोनों हिस्सों से अलग-अलग तरह की गंध जमा करने से फायदा ये होता है कि सांप यह पता कर पाते हैं कि किस दिशा में उन्हें फायदा होगा और किधर खतरा। जब बात सर्वाइव करने और इवॉल्व होने की होती है तो आमतौर पर कई जीवों के अंग निष्क्रिय हो जाते हैं। लेकिन सांपों के मामले में ये दो हिस्सों में बंटी हुई जीभ एक प्राकृतिक अजूबा से कम नहीं है। कर्ट कहते हैं कि ये बात तो पक्का हो गई है कि सांपों की जीभ स्वाद के लिए नहीं गंध लेने के लिए होती है। जो इस जीव के सर्वाइवल के लिए बेहद जरूरी अंग है।