- भारत,
- 25-Feb-2025 02:24 PM IST
Sajjan Kumar News: दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में दोषी कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है, क्योंकि इस मामले में इंसाफ के लिए पीड़ित परिवारों को चार दशक तक इंतजार करना पड़ा।
न्यायिक प्रक्रिया और सजा का निर्धारण
कोर्ट ने 12 फरवरी को सज्जन कुमार को दोषी करार दिया था और 21 फरवरी को सजा पर अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान पीड़ित पक्ष ने सज्जन कुमार के लिए मृत्युदंड की मांग की थी, लेकिन अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा दी। इस फैसले से न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत पर भी सवाल उठे हैं, क्योंकि 1984 के दंगों के पीड़ित लंबे समय से इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठे थे।
कोर्ट ने तिहाड़ जेल प्रशासन को निर्देश दिया था कि सज्जन कुमार का मानसिक और मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन किया जाए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड वाले मामलों में ऐसी रिपोर्ट आवश्यक बताई थी। भारतीय दंड संहिता के अनुसार, हत्या के लिए न्यूनतम सजा आजीवन कारावास है, जबकि अधिकतम सजा मृत्युदंड हो सकती है।
सरस्वती विहार हत्याकांड और सज्जन कुमार की संलिप्तता
यह मामला दिल्ली के सरस्वती विहार इलाके में हुए उन जघन्य अपराधों से जुड़ा है, जिसमें जसवंत सिंह और उनके बेटे तरुणदीप सिंह की हत्या कर दी गई थी। उस समय सज्जन कुमार बाहरी दिल्ली लोकसभा सीट से कांग्रेस के सांसद थे और उन पर आरोप था कि उन्होंने भीड़ को उकसाया और हिंसा में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल रहे।
फांसी की मांग क्यों की गई?
सज्जन कुमार पहले से ही दिल्ली कैंट इलाके में हुए दंगों के एक अन्य मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं। इस नए मामले में भी पीड़ित पक्ष और दिल्ली पुलिस ने इसे "रेयरेस्ट ऑफ रेयर" की श्रेणी में मानते हुए उनके लिए फांसी की सजा की मांग की थी। पुलिस का कहना था कि 1984 के सिख विरोधी दंगे केवल हत्या नहीं, बल्कि मानवता के खिलाफ अपराध थे।
पुलिस की दलील: "निर्भया केस से भी अधिक गंभीर मामला"
दिल्ली पुलिस ने कोर्ट में पेश की गई अपनी लिखित दलीलों में कहा कि यह मामला निर्भया केस से भी अधिक जघन्य है। पुलिस के अनुसार, "निर्भया केस में एक महिला को टारगेट किया गया था, जबकि 1984 के दंगों में पूरे सिख समुदाय को निशाना बनाया गया। यह केवल दंगा नहीं था, बल्कि एक संगठित नरसंहार था।"
1984 के सिख विरोधी दंगे: एक ऐतिहासिक त्रासदी
31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद देशभर में सिखों के खिलाफ हिंसा भड़क उठी थी। खासतौर पर दिल्ली में हजारों निर्दोष सिखों को मारा गया, उनके घर जलाए गए और महिलाओं के साथ अमानवीय अत्याचार किए गए। इस हिंसा में कई बड़े राजनीतिक नेता शामिल बताए गए, लेकिन दशकों तक न्याय नहीं मिल सका।
क्या यह फैसला न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है?
हालांकि सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा मिल चुकी है, लेकिन पीड़ितों को अभी भी न्याय अधूरा लगता है। वे अब भी सुप्रीम कोर्ट में जाकर उनकी फांसी की सजा की मांग कर सकते हैं।
इस फैसले ने भारतीय न्याय प्रणाली में विलंब की समस्या को भी उजागर किया है। 40 साल बाद आए इस निर्णय ने एक बड़ा संदेश दिया है कि किसी भी अपराधी को कानून से ऊपर नहीं माना जा सकता, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो।
निष्कर्ष
1984 के सिख विरोधी दंगे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक काला अध्याय हैं, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा मिलने से न्याय की प्रक्रिया आगे बढ़ी है, लेकिन पीड़ित परिवारों और सिख समुदाय की न्याय की लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। वे अब भी उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें पूर्ण न्याय मिलेगा और इस नरसंहार के अन्य दोषियों को भी उनके अपराधों की सजा मिलेगी।