नॉलेज / अंतरिक्ष में गायब हो गया एक ग्रह, जानिए वैज्ञानिकों ने कैसे सुलझाई ये पहेली

अंतरिक्ष में वैज्ञानिकों को अपने लंबे और लगातार अवलोकन से अनोखे अनुभव देखने को मिलते रहते हैं। पिछले कुछ सालों में वैज्ञानिकों की अंतरिक्ष में गहराई तक झांकने की क्षमता भी बढ़ी है। हाल में उन्होंने यह पाया है कि जो बाह्यग्रह उन्हें पहले दिखाई देता था, अब अचानक दिखना बंद हो गया। खगोलविदों इस बात की पड़ताल करने में सालों लग गए हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है।

News18 : Apr 22, 2020, 05:34 PM
नई दिल्ली: अंतरिक्ष (Space) में वैज्ञानिकों को अपने लंबे और लगातार अवलोकन से अनोखे अनुभव देखने को मिलते रहते हैं। पिछले कुछ सालों में वैज्ञानिकों की अंतरिक्ष में गहराई तक झांकने की क्षमता भी बढ़ी है। हाल में उन्होंने यह पाया है कि जो बाह्यग्रह (Exoplanet) उन्हें पहले दिखाई देता था, अब अचानक दिखना बंद हो गया।

2004 से शुरू हुई थी यह कहानी

खगोलविदों इस बात की पड़ताल करने में सालों लग गए हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है। साल 2004 में इस बाह्यग्रह की तस्वीर लगी गई थी और तब इसे पूरा का पूरा एक ग्रह माना गया था। अब इसका दिखाई न देना एक नई पहेली को पैदा कर गया । इस घटना को लेकर तरह तरह के स्पष्टीकरण दिए गए, जिसमें एक ताजे शोध के दावे रोमांचक हैं।

शायद यह ग्रह ही न हो

शोध के अनुसार कहा जा रहा है कि हो सकता है कि यह ग्रह वास्तव में एक बहुत ही बड़ा धूल का बादल रहा हो। यह ग्रह अपने निकटतम तारे,फोमाल्हॉट का चक्कर लगा रहे दो बड़े पिण्डों के टकराने से बना हो। इस व्याख्या की पुष्टि आने वाले अवलोकनों से ही हो सकती है।

बहुत ही कम हालात में होती है यह घटना

टक्सन स्थित एरीजोना यूनिवर्सिटी  एंड्रास गासपार  का मानना है ,” यह टकराव बहुत ही कम होता है और यह बड़ी बात होगी कि हम इसे देख पाए हों। हमें लगता है कि हम सही समय पर सही जगह पर थे जिससे इस तरह की असाधारण घटना हम नासा के हबल टेलीस्कोप से देख सके।

बहुत कुछ बताएगा यह सिस्टम

यूनिवर्सिटी कीस्टीवर्ड वेधशाला के जॉर्ड रेकी ने कहा, “फोमाल्हॉट सिस्टम हमारी सभी बातों का सही परीक्षण होगा कि कैसे तारे और बाह्यग्रह का सिस्टम बनता है। इस तरह के टकरावों के प्रमाण हमें दूसरे सिस्टम में मिलते रहे हैं। यह ये बताता है कि कैसे ग्रह एक दूसरे को तबाह कर देते हैं।”

कैसे पता लगा था इस बाह्यग्रह के बारे में

फोमाल्हॉट बी (Fomalhaut b) नाम के इस पिण्ड की घोषणा साल 2008 में हुई थी जो साल 2004 से लेकर 2006 के आंकड़ों के आधार पर की गई थी। यह कई सालों तक हबल को एक भ्रमण करते हुए बिंदु की तरह दिखाई दिया था। तब तक बाह्यग्रहों के होने के प्रमाण अप्रत्यक्ष तरीकों से माने जाते थे। जैसे की ग्रह की तारे पर छाया, आदि।

फिर शुरू होने लगी गड़बड़

आम बाह्यग्रह, जिनकी अब तस्वीर भी ली जा सकती है, के विपरीत फोमाल्हॉट बी का मामला शुरू से जटिल था। यह रोशनी में बहुत चमकदार दिखता था, लेकिन इसका पकड़ में आने वाला कोई इन्फ्रारेड हीट सिग्नेचर नहीं मिलता था। खगोलविदों ने तब माना कि यह ज्यादा चमक  ग्रह के आसपास की धूल वाली रिंग के कारण है।  इसकी कक्षा भी बहुत ही असामान्य थी।

फिर से आंकड़ों के अध्ययन ने दिखाई कुछ और तस्वीर

गासपार ने पुराने हबल डेटा का फिर से अवलोकन किया। उनका मानना है कि उनके अध्ययन में पाया गया कि बहुत सी विशेषताएं इस बात का संकेत कर रही थीं कि पहली नजर में ग्रह जैसा कुछ वहां था ही नहीं।

धीरे धीरे गायब हुआ यह पिण्ड

उनके इस निष्कर्ष को बल तब मिला जबा हबल के 2014 के आंकड़ों में यह पिण्ड पूरी तरह से गायब दिखा। इसमें भी खास बात यह थी कि उससे पहले की तस्वीरें बता रहीं थी कि यह पिण्ड धीरे धीरे धुंधला होकर गायब होता रहा। फोमाल्हॉट बी का यह व्यवहार एक ग्रह की तरह बिलकुल नहीं था।

तो फिर हुआ क्या था

दरअसल फोमाल्हॉट बी दो पिण्ड के टकराने के बाद एक धूल भरे बादल का बढ़ता रूप था। गासपार और रेकी को लगता है 2004 में जो आंकड़े लिए गए यह घटना उस समय से ज्यादा पुरानी नहीं है। अब यह धूल का बादल इतना बिखर गया है कि हबल इसे पहचान नहीं सकता, यह धूल हमारी पृथ्वी की सूर्य के चारों वाली कक्षा से ज्यादा फैल गई है और अब धूमकेतू की तरह दिखती है।

और भी अध्ययन करना चाहते हैं शोधकर्ता

फोमाल्हॉट सिस्टम हम से करीब 25 प्रकाशवर्ष दूर है। और इस तरह की घटना वहां करीब दो लाख सालों में एक बार हो सकती है। गासपार और रेकी का इरादा इस फोमाल्हॉट सिस्टम का नासा क जेम्स वेब स्पेस टेली स्कोस से अध्ययन करने का भी है जो हबल से बहुत शक्तिशाली टेलीस्कोप है। यह टेली स्कोप अगले साल अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाएगा।