Vikrant Shekhawat : May 17, 2022, 07:42 AM
लखनऊ। वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद और उसके परिसर के सर्वे पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने नाराजगी जाहिर की है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से जारी की गई प्रेस नोट में कहा गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद और उसके परिसर के सर्वे का आदेश और अफवाहों के आधार पर वजूखाना बंद करने का निर्देश घोर अन्याय पर आधारित है और मुसलमान इसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर सकते।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफ़ुल्लाह रह़मानी ने अपने प्रेस नोट में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद बनारस, मस्जिद है और मस्जिद रहेगी। उसको मंदिर बनाने का कुप्रयास सांप्रदायिक घृणा पैदा करने की एक साजिश से ज़्यादा कुछ नहीं। यह ऐतिहासिक तथ्यों एवं कानून के विरुद्ध है। 1937 में दीन मुह़म्मद बनाम राज्य सचिव मामले में अदालत ने मौखिक गवाही और दस्तावेजों के आलोक में यह निर्धारित किया कि पूरा परिसर मुस्लिम वक्फ बोर्ड की मिल्कियत है और मुसलमानों को इसमें नमाज अदा करने का अधिकार है। अदालत ने यह भी तय किया कि विवादित भूमि में से कितना भाग मस्जिद है और कितना भाग मंदिर है, उसी समय वजूखाना को मस्जिद की मिल्कियत स्वीकार किया गया।सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश दुर्भाग्यपूर्णउन्होंने आगे कहा कि फिर 1991 में प्लेस ऑफ़ वरशिप एक्ट (Place of Worship Act 1991) संसद से पारित हुआ। जिसका सारांश यह है कि 1947 में जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में थे, उन्हें उसी स्थिति में बनाए रखा जाएगा। 2019 में बाबरी मस्जिद मुक़दमे के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब सभी इबादतगाहें इस कानून के अधीन होंगी और यह कानून संविधान की मूलभावना के अनुसार है। इस निर्णय में और कानून का तकाजा यह था कि मस्जिद के संदेह में मंदिर होने के दावे को अदालत तत्काल ख़ारिज कर देती, लेकिन अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कि बनारस के दीवानी अदालत ने उस स्थान के सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश जारी कर दिया, ताकि तथ्यों का पता लगाया जा सके। वक़्फ़ बोर्ड ने इस सम्बंध में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और हाईकोर्ट में यह मामला लम्बित है,वजूखाना बंद करना कानून का खुला उल्लंघनउन्होंने आगे कहा कि इसी प्रकार ज्ञानवापी मस्जिद प्रशासन ने भी दीवानी अदालत के इस निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है और सुप्रीम कोर्ट में यह मामला विचाराधीन है, लेकिन इन सभी बातों की अनदेखी करते हुए दीवानी अदालत ने पहले सर्वे का आदेश दिया और फिर अफवाहों के आधार पर वजूखाना बंद करने का आदेश दिया, यह कानून का खुला उल्लंघन है जिसकी एक अदालत से उम्मीद नहीं की जा सकती। अदालत की इस कार्रवाई ने न्याय की आवश्यकताओं का उल्लंघन किया है इसलिए सरकार इस निर्णय के कार्यान्वयन को तुरंत रोके। इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करे और 1991 के कानून के अनुसार सभी धार्मिक स्थलों की रक्षा करे। यदि इस प्रकार के काल्पनिक तर्कों के आधार पर धार्मिक स्थलों की स्थिति परिवर्तित की जाएगी तो पूरे देश में अराजकता फैल जाएगी क्योंकि कितने बड़े-बड़े मन्दिर, बौद्ध और जैन धर्म के धार्मिक स्थलों को परिवर्तित करके बनाए गए हैं और उनकी स्पष्ट निशानियां मौजूद हैं। मुसलमान इस उत्पीड़न को कदाचित बर्दाश्त नहीं कर सकते। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस अन्याय से हर स्तर पर लड़ेगा।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफ़ुल्लाह रह़मानी ने अपने प्रेस नोट में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद बनारस, मस्जिद है और मस्जिद रहेगी। उसको मंदिर बनाने का कुप्रयास सांप्रदायिक घृणा पैदा करने की एक साजिश से ज़्यादा कुछ नहीं। यह ऐतिहासिक तथ्यों एवं कानून के विरुद्ध है। 1937 में दीन मुह़म्मद बनाम राज्य सचिव मामले में अदालत ने मौखिक गवाही और दस्तावेजों के आलोक में यह निर्धारित किया कि पूरा परिसर मुस्लिम वक्फ बोर्ड की मिल्कियत है और मुसलमानों को इसमें नमाज अदा करने का अधिकार है। अदालत ने यह भी तय किया कि विवादित भूमि में से कितना भाग मस्जिद है और कितना भाग मंदिर है, उसी समय वजूखाना को मस्जिद की मिल्कियत स्वीकार किया गया।सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश दुर्भाग्यपूर्णउन्होंने आगे कहा कि फिर 1991 में प्लेस ऑफ़ वरशिप एक्ट (Place of Worship Act 1991) संसद से पारित हुआ। जिसका सारांश यह है कि 1947 में जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में थे, उन्हें उसी स्थिति में बनाए रखा जाएगा। 2019 में बाबरी मस्जिद मुक़दमे के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब सभी इबादतगाहें इस कानून के अधीन होंगी और यह कानून संविधान की मूलभावना के अनुसार है। इस निर्णय में और कानून का तकाजा यह था कि मस्जिद के संदेह में मंदिर होने के दावे को अदालत तत्काल ख़ारिज कर देती, लेकिन अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कि बनारस के दीवानी अदालत ने उस स्थान के सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश जारी कर दिया, ताकि तथ्यों का पता लगाया जा सके। वक़्फ़ बोर्ड ने इस सम्बंध में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और हाईकोर्ट में यह मामला लम्बित है,वजूखाना बंद करना कानून का खुला उल्लंघनउन्होंने आगे कहा कि इसी प्रकार ज्ञानवापी मस्जिद प्रशासन ने भी दीवानी अदालत के इस निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है और सुप्रीम कोर्ट में यह मामला विचाराधीन है, लेकिन इन सभी बातों की अनदेखी करते हुए दीवानी अदालत ने पहले सर्वे का आदेश दिया और फिर अफवाहों के आधार पर वजूखाना बंद करने का आदेश दिया, यह कानून का खुला उल्लंघन है जिसकी एक अदालत से उम्मीद नहीं की जा सकती। अदालत की इस कार्रवाई ने न्याय की आवश्यकताओं का उल्लंघन किया है इसलिए सरकार इस निर्णय के कार्यान्वयन को तुरंत रोके। इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करे और 1991 के कानून के अनुसार सभी धार्मिक स्थलों की रक्षा करे। यदि इस प्रकार के काल्पनिक तर्कों के आधार पर धार्मिक स्थलों की स्थिति परिवर्तित की जाएगी तो पूरे देश में अराजकता फैल जाएगी क्योंकि कितने बड़े-बड़े मन्दिर, बौद्ध और जैन धर्म के धार्मिक स्थलों को परिवर्तित करके बनाए गए हैं और उनकी स्पष्ट निशानियां मौजूद हैं। मुसलमान इस उत्पीड़न को कदाचित बर्दाश्त नहीं कर सकते। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस अन्याय से हर स्तर पर लड़ेगा।