सैल्यूट इन्हें...! / गजब का जज्बा...! तनाव समस्या का हल नहीं है, वर्क फ्रॉम हॉस्पिटल का नया उदाहरण पेश कर कोरोना से लड़ रहे पत्रकार देणोक

कोरोना पॉजीटिव आना लोगों में बड़े तनाव की वजह बन रही है। लोग क्वारंटाइन के वक्त आसपास के माहौल से तनावग्रस्त हो जाते हैं, लेकिन राजस्थान के एक पत्रकार बड़ी मिसाल पेश कर रहे हैं। जीवन को जज्बे के साथ जीना और संघर्षों में सकारात्मकता के साथ अनूठे प्रयास इनकी खासियत है। वे कोरोना पॉजीटिव पाए जाने के बाद अब पाली के जिला अस्पताल बांगड़ चिकित्सालय में आइसोलेटेड हैं और वर्क फ्रॉम हॉस्पिटल कर रहे हैं।

Vikrant Shekhawat : Jul 06, 2020, 06:36 PM

जयपुर | कोरोना पॉजीटिव आना लोगों में बड़े तनाव की वजह बन रही है। लोग क्वारंटाइन के वक्त आसपास के माहौल से तनावग्रस्त हो जाते हैं, लेकिन राजस्थान के एक पत्रकार बड़ी मिसाल पेश कर रहे हैं। जीवन को जज्बे के साथ जीना और संघर्षों में सकारात्मकता के साथ अनूठे प्रयास इनकी खासियत है। वे कोरोना पॉजीटिव पाए जाने के बाद अब पाली के जिला अस्पताल बांगड़ चिकित्सालय में आइसोलेटेड हैं और वर्क फ्रॉम हॉस्पिटल कर रहे हैं। देणोक फरवरी माह से ही कोरोना पर अपडेट और लोगों को जागरूक करने वाली खबरें लगातार कवर कर रहे हैं। अब वे इस काम को अस्पताल से कर रहे हैं, वह भी तब जबकि खुद  कोरोना पॉजीटिव पाए गए हैं।

पाली जिले में प्रशासन की ओर से सभी पत्रकारों की रेंडम जांच करवाई गई थी, जांच में पांच पत्रकार कोरोना पॉजीटिव पाए गए हैं। उसके बाद इन्हें आइसोलेशन में रखा गया है। राजस्थान पत्रिका के पाली  ब्यूरो प्रभार संभाल रहे वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्रसिंह देणोक भी उनमें शामिल है। हालांकि वे लम्बे समय से वर्क फ्रॉम होम के तहत ही काम कर रहे थे, लेकिन कोरोना पॉजीटिव पाए जाने के बाद उन्होंने लैपटॉप से अपना काम अस्पताल आइसोलेशन वार्ड से भी प्रारंभ कर दिया है। देणोक बताते हैं कि लैपटॉप के माध्यम से सारा काम आनलाइन करते हैं। साथियों से संवाद और संकलन पहले घर से कर रहे थे और अब अस्पताल ये यह काम कर रहे हैं। 

सकारात्मक प्रभाव डालता है व्यस्त रहना

बांगड़ अस्पताल का हड्डी वार्ड ​इन दिनों पत्रकार देणोक की कर्मस्थली बना हुआ है। देणोक बताते हैं कि जब पीएम मोदी, प्रदेश की सरकार और विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ ही हमारे पाठकगण मीडियाकर्मियों को कोरोना वारियर्स के रूप में नवाज रहे हैं तो हमारी जवाबदारी और बढ़ जाती है। यह समस्या किसी को भी हो सकती है। आजकल पूरा सिस्टम आनलाइन है, जो काम हम घर से कर रहे थे। वह अस्पताल से हो जाता है। काम चलता रहता तो न तो अन्यथा विचार आते हैं और समय कब बीत जाता है। पता ही नहीं चलता। वे बताते हैं कि यह तरीका उनमें एक सकारात्मक मनावै​ज्ञानिक प्रभाव खड़ा कर रहा है कि वे जल्द ही ठीक हो जाएंगे।

हमें कोरोना के साथ जीना सीखना होगा

देणोक कहते हैं अभी तक कोरोना का टीका विकसित नहीं हुआ है, न ही उपचार मिला है। ऐसे में हम अपने सारे काम निपटाते हुए इस महामारी के साथ जीने के तरीके खोज रहे हैं। मुझे लगा कि व्यस्त रहकर काम करते रहेंगे तो यह काफी प्रभावी रहेगा। बीते दो दिन से मैं लगातार यह कर रहा हूं तो मुझे किसी भी तरह का तनाव या समस्या नहीं है। वे कहते हैं कि हमें कोरोना के साथ किस तरह से जीना है, यह तय करना होगा। देणोक बताते हैं कि पाली अस्पताल में व्यवस्थाएं खासी अच्छी हैं और अस्पताल प्रशासन के लोग भी उनके प्रयास को सपोर्ट भी कर रहे हैं।

कोई समस्या बड़ी नहीं

वे कहते हैं कि इतने महीनों में सीखा ​है कि हम अपने इम्यून सिस्टम को मजबूत रखें और तनाव नहीं लें। बहुत से लोग तनाव के चलते समस्याओं से हार जाते हैं। अपने ब्लड ग्रुप बी—पॉजीटिव को अपना तकिया कलाम कहने वाले देणोक कहते हैं कोई भी समस्या व्यक्ति से बड़ी नहीं होती। बस उसकी प्रतिक्रिया में हम अपने आपको तनावग्रस्त करके उस समस्या से छोटा कर लेते हैं और मनोवैज्ञानिक रूप से व्यक्ति हार जाता है। जज्बे से हम किसी भी समस्या को मात दे सकते हैं, कोरोना भी कुछ नहीं है।