Baba Ka Dhaba / एक सप्ताह में बदली 'बाबा का ढाबा' की रुपरेखा, जानिए क्या हुआ बदलाव

सोशल मीडिया से 'बाबा का ढाबा' को नयी पहचान मिली है। दिल्ली (Delhi) के मालवीय नगर (Malviya Nagar) में 'बाबा का ढाबा' (Baba Ka Dhaba) को चलाने वाले कांता प्रसाद (Kanta Prasad) के यहां कोई खाना खाने नहीं आ रहा था। वायरल वीडियो (Viral Video) में वो कहानी सुनाते-सुनाते रो पड़े। उनके रोते चेहरे को देख लोग मदद के लिए आगे आए। अगले ही दिन लोग उनकी दुकान पर जमा हो गए और खाने के लिए टूट पड़े।

Vikrant Shekhawat : Oct 12, 2020, 12:00 PM
Baba Ka Dhaba: सोशल मीडिया से 'बाबा का ढाबा' को नयी पहचान मिली है। दिल्ली (Delhi) के मालवीय नगर (Malviya Nagar) में 'बाबा का ढाबा' (Baba Ka Dhaba) को चलाने वाले कांता प्रसाद (Kanta Prasad) के यहां कोई खाना खाने नहीं आ रहा था। वायरल वीडियो (Viral Video) में वो कहानी सुनाते-सुनाते रो पड़े। उनके रोते चेहरे को देख लोग मदद के लिए आगे आए। अगले ही दिन लोग उनकी दुकान पर जमा हो गए और खाने के लिए टूट पड़े। यही नहीं, उनके ढाबे पर विज्ञापन भी लग गए हैं। बाबा का ढाबा जोमैटो में भी लिस्टिड कर दिया गया है। एक हफ्ते में बाबा का ढाबा चमचमाता नजर आ रहा है। इस पर आईएएस ऑफिसर अवनीष शरण (IAS Officer Awanish Sharan) ने रिएक्ट किया है।

आईएएस ऑफिसर अवनीष शरण ने तस्वीर शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा, 'बदला हुआ ‘बाबा का ढाबा', सब दिख रहे बस ‘बाबा' नहीं दिख रहे!!' पहले इस ढाबे की तस्वीर कुछ अलग ही थी। यहां आस पास कोई विज्ञापन नहीं लगा था। अब कई कंपनियों ने विज्ञापन लगा दिए हैं। उनकी ढाबे के पास ही कईयों ने अपनी दुकान खोल ली है। 

अवनीष शरण के अलावा कई लोगों ने भी नए बाबा का ढाबा की तस्वीर शेयर करते हुए रिएक्शन दिया है। जोमैटो ने भी ट्वीट के जरिए जानकारी दी है कि उन्होंने बाबा का ढाबा को लिस्टिड कर लिया है।

क्या है ढाबा खोलने की वजह

कांता प्रसाद और बादामी देवी कई सालों से मालवीय नगर में अपनी छोटी सी दुकान लगाते हैं। दोनों की उम्र 80 वर्ष से ज्यादा है। कांता प्रसाद बताते हैं कि उनके दो बेटे और एक बेटी है। लेकिन तीनों में से कोई उनकी मदद नहीं करता है। वो सारा काम खुद ही करते हैं और ढाबा भी अकेले ही चलाते हैं।

कांता प्रसाद पत्नी की मदद से सारा काम करते हैं। वो सुबह 6 बजे आते हैं और 9 बजे तक पूरा खाना तैयार कर देते हैं। रात तक वो दुकान पर ही रहते हैं। लॉकडाउन के पहले लोग यहां खाना खाने आया करते थे। लेकिन लॉकडाउन के बाद उनकी दुकान पर कोई नहीं आता है। इतना कहकर वो रोने लगते हैं।