प्राकृतिक अजूबा / 24 हजार साल से बर्फ में दफन 'जॉम्बी' बाहर आते ही बनाने लगा अपना क्लोन

दुनिया की सबसे ठंडी जगह आर्कटिक के पर्माफ्रॉस्ट से वैज्ञानिकों ने एक ऐसे छोटे जॉम्बी को निकाला है, जो 24 हजार साल पहले जिंदा था। लेकिन वैज्ञानिकों ने जैसे उसे जिंदा किया उसने अपने क्लोन बना डाला। ये वैज्ञानिक कारनामा रूस की एक प्रयोगशाला में देखा गया है। ये ऐसे सूक्ष्म जॉम्बी जीव हैं जो 5 करोड़ सालों से हमारी धरती के अलग-अलग जलीय इलाकों में पाए जा रहे हैं।

Vikrant Shekhawat : Jun 09, 2021, 04:32 PM
Delhi: दुनिया की सबसे ठंडी जगह आर्कटिक के पर्माफ्रॉस्ट से वैज्ञानिकों ने एक ऐसे छोटे जॉम्बी को निकाला है, जो 24 हजार साल पहले जिंदा था। लेकिन वैज्ञानिकों ने जैसे उसे जिंदा किया उसने अपने क्लोन बना डाला। ये वैज्ञानिक कारनामा रूस की एक प्रयोगशाला में देखा गया है। ये ऐसे सूक्ष्म जॉम्बी जीव हैं जो 5 करोड़ सालों से हमारी धरती के अलग-अलग जलीय इलाकों में पाए जा रहे हैं। लेकिन आर्कटिक के पर्माफ्रॉस्ट में दबे ये सूक्ष्म जॉम्बी निष्क्रिय थे। हजारों सालों से बर्फ में दफन इन जीवों के शरीर पर कोई असर नहीं हुआ।

इन मजबूत और सख्तजान जीवों को डेलॉयड रोटिफर्स (Bdelloid Rotifers) या व्हील एनीमल्स (Wheel Animals) भी कहते हैं। क्योंकि इन जीवों के मुंह के चारों तरफ गोलाकार बालों का गुच्छा होता है। रोटिफर्स बहुकोशकीय माइक्रोस्कोपिक जीव होते हैं, जो हमारी धरती पर साफ पानी में मिलते हैं। लेकिन हिमयुग के दौरान इन्होंने बर्फीले इलाकों में जाकर पर्माफ्रॉस्ट में जमना मंजूर किया। ये उनके सर्वाइव करने का तरीका था। 

रूस के वैज्ञानिकों ने पहले आधुनिक रोटिफर्स को खोजा था जो माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान बर्दाश्त कर लेते हैं। इन्हें 10 साल इसी स्थिति में रहने के बाद वापस जिंदा किया गया था। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने ऐसे रोटिफर्स को खोजा है जो प्राचीन साइबेरियन पर्माफ्रॉस्ट में दफन हुए थे। ये प्लेस्टोसीन एपो (Pleistocene epoh) काल के हैं। यानी 11,700 साल से लेकर 26 लाख साल पुराने। ये स्टडी 7 जून को जर्नल करेंट बायोलॉजी में प्रकाशित हुई है। 

जब इन डेलॉयड रोटिफर्स (Bdelloid Rotifers) को जीवित किया गया तो ये अलैंगिक (Asexually) अपने क्लोन बनाने लगे, जो जेनेटिक डुप्लीकेट थे। इस प्रक्रिया को पार्थेनोजेनेसिस (Parthenogenesis) कहते हैं। यह ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमें कोई जीव बिना विपरीत लिंग के साथ संभोग किए बगैर अपना वंश आगे बढ़ाता है। इसे सामान्य वैज्ञानिक भाषा अछूती वंशवृद्धि कहते हैं।

साइबेरियन पर्माफ्रॉस्ट वो जगह है जहां पर जमीन दो या उससे ज्यादा सालों से जमकर सॉलिड हो गई है। इसके अंदर सदियों तक कोई भी जीवित या मृत जीव सुरक्षित रह सकता है। उदाहरण के लिए पिछले साल इसी इलाके में एक पक्षी का शव मिला था, जो असल में 46 हजार साल पुराना था। लेकिन उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि वो अभी हाल ही में मारा गया है और यहां पर दफन हुआ है। इसके अलावा इस इलाके से 2020 में ही एक ममीफाइड भालू मिला था। जिसकी उम्र 39 हजार साल थी। उसके शरीर के कई अंग अब भी पूरी तरह से सुरक्षित हैं। 

रूस के वैज्ञानिकों का मानना है कि हजारों सालों तक बर्फ में दफन रहने के बाद बाहर आकर जीवित होना। उसके तुरंत बाद खुद का क्लोन बना लेना यह प्राकृतिक अजूबा है। लेकिन कुछ पौधे और जीव जब पर्माफ्रॉस्ट से बाहर निकाले जाते हैं तो वे खुद को फिर से सक्रिय कर लेते हैं। यह बेहद दुर्लभ नजारा होता है। क्योंकि बर्फ में हजारों सालों तक दफन होने के बाद अगर कोई जीव वापस जिंदा या सक्रिय हो जाए तो यह उसकी हैरान कर देने वाली खासियत होती है।

साल 2012 में वैज्ञानिकों ने यह बताया था कि कैसे 30 हजार साल साइबेरियन पर्माफ्रॉस्ट में जमे रहने के बाद एक अविकसित फल के ऊतक से नया पुराना पौधा विकसित हो गया था। उसके दो साल के बाद अंटार्कटिका में 1500 साल बर्फ में दफन रहने वाले मॉस (Moss) को वापस सक्रिय और विकसित होते देखा था। इसके अलावा सूक्ष्म जीव जिन्हें नीमेटोड्स (Nematodes) हते हैं ये भी साइबेरिया को दो हिस्सों में मिले। एक 32 हजार साल पुराना था, दूसरा 42 हजार साल पुराना। लेकिन दोनों ही साल 2018 में वापस जिंदा और सक्रिय हो गए। 

बर्फ में हजारों साल दफन रहने के बाद अगर कोई जीव अपने मेटाबॉलिक सिस्टम को फिर से सक्रिय कर लेता है तो उसे क्रिप्टोबायोसिस (Cryptobiosis) कहते हैं। ऐसा आमतौर पर ज्यादातर उन जीवों के साथ होता है जो बर्फ में दफन होते हैं। वैज्ञानिक इसी लिए इन जीवों को जॉम्बी कहते हैं क्योंकि ये मृत अवस्था से वापस जिंदा हो जाते हैं। 

रूस के पुशचिनो स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोकेमिकल एंड बायोलॉजिकल प्रॉब्लम्स इन सॉयल साइंस के रिसर्चर स्टास मलाविन ने कहा कि रोटिफर्स की आदत होती है कि वो क्रिप्टोबायोसिस की प्रक्रिया को पूरी करते हैं। अगर वो बर्फ में दब जाए, या सूख जाएं। जब भी उन्हें उनके अनुकूल माहौल मिलता है वो इसी वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत खुद को सक्रिय कर लेते हैं। साथ ही तत्काल अपना जेनेटिक क्लोन बनाना शुरु कर देते हैं, ताकि उनकी आबादी बढ़ती रहे। 

स्टास मलाविन ने कहा कि बर्फ में दबने के दौरान ये चैपरॉन प्रोटीन (Chaperone Proteins) जैसे रसायनिक पदार्थों को अपने शरीर में संरक्षित कर लेते हैं। जैसे ही स्थितियां सुधरती है ये इनके सहारे ही क्रिप्टोबायोसिस प्रक्रिया पूरी करके खुद को सक्रिय कर लेते हैं। इसके बाद क्लोन बनाने लगते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इनके पास ऐसा तरीका भी होता है जिससे ये अपना DNA रिपेयर कर सकते हैं। ताकि उनकी कोशिकाओं को प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन आधारित प्रजातियों से बचाव और सुरक्षा मिल सके। इन नई स्टडी के लिए रूसी वैज्ञानिकों ने साइबेरिया की जमी हुई नदी अलाजेया (Alazeya River) की तलहटी से 11।5 फीट नीचे ड्रिलिंग की। वहां पर्माफ्रॉस्ट का सैंपल लिया। जहां रेडियोकार्बन डेटिंग से पता चला कि वह करीब 24 हजार साल पुरानी मिट्टी है। जब सैंपल की जांच की गई तो इसमें डेलॉयड रोटिफर्स (Bdelloid Rotifers) देखने को मिले। ये क्रिप्टोबायोटिक अवस्था में थे।कों ने पहले इन्हें मिट्टी से अलग किया। फिर इस बात की जांच की कि कहीं पर्मफ्रॉस्ट की मिट्टी और ये जीव नए और आधुनिक सूक्ष्मजीवों से संक्रमित या बीमार तो नहीं है। इसके बाद इन जीवों समेत मिट्टी को पेट्री डिश में रखकर उन्हें अनुकूल माहौल दिया गया। यह देखने के लिए कि क्या ये सक्रिय होते हैं। या जीवित होते हैं। या फिर चलते-फिरते हैं। फिर अचानक जो हुआ उसे देखकर वैज्ञानिक हैरान रह गए थे। एक डेलॉयड रोटिफर्स (Bdelloid Rotifers) ने खुद का क्लोन बनाना शुरु कर दिया। वह भी बिना किसी अन्य रोटिफर से संबंध बनाए बगैर। 

इसके बाद वैज्ञानिकों के लिए मुसीबत ये हो गई कि वो ये नहीं पहचान पा रहे थे कि इनमें असली प्राचीन रोटिफर कौन सा है। क्योंकि क्लोन से बने रोटिफर भी एक जैसे ही थे। यहां तक कि उनका जेनेटिक सिक्वेंस भी एक ही था। आमतौर पर रोटिफर्स की जिंदगी 2 हफ्ते की ही होती है। लेकिन यहां ये रोटिफर्स 24 हजार साल से बर्फ में दफन था। बाहर आते ही इसने अपने क्लोन बनाए। ये एक अद्भुत और दुर्लभ नजारा था।