Vikrant Shekhawat : Feb 06, 2021, 10:20 AM
म्यांमार में तख्तापलट की घटना के बाद पूर्वोत्तर से सटे सीमावर्ती इलाकों में सक्रिय उग्रवादी गुटों के चीन की मदद से सिर उठाने की आशंका जताई जा रही है। म्यांमार में चीन की भूमिका पर कई देशों की निगाह बनी हुई है, लेकिन भारतीय एजेंसियों की चिंता पूर्वोत्तर को लेकर है। म्यांमार से सटे पूर्वोत्तर की सीमाओं पर कई उग्रवादी गुट ऐसे हैं, जिनका संपर्क चीन से भी बताया जाता है। खुफिया एजेंसियों ने इन गुटों पर निगाह रखने के मकसद से सतर्क रहने को कहा है।एजेंसियों को आशंका है कि पर्दे के पीछे से चीन पूर्वोत्तर में एक नया मोर्चा खोलने का प्रयास कर रहा है। म्यांमार में सशस्त्र समूह यूनाइटेड स्टेट आर्मी और अराकान आर्मी शामिल हैं, जिन्हें आतंकवादी संगठन नामित किया गया था। इन्हें चीनी सेना द्वारा मदद पहुंचाने की बात पहले भी सामने आई है। भारत-म्यांमार सीमा से सटे क्षेत्र में अलग मातृभूमि के लिए लड़ने वाले तीन जातीय नगा विद्रोहियों समूह से जुड़े लोगों के सेवानिवृत्त और वर्तमान चीनी सैन्य अधिकारियों के साथ मुलाकात की खबरें भी पिछले दिनों सामने आईं थीं।केंद्र सरकार पूर्वोत्तर में विद्रोही गुटों के साथ बातचीत को लेकर लगातार संपर्क में हैं, लेकिन म्यांमार सीमा पर सक्रिय कुछ गुट चीनी प्रभाव में बताए जाते हैं। सुरक्षा एजेंसियां लद्दाख में चीनी सेना की हरकत के बाद से पूर्वोत्तर में भी निगाह जमाए हुए हैं, जिससे उग्रवादी गुट यहां अपनी सक्रियता न बढ़ा पाएं। म्यांमार की ताजा घटना के बाद से भारत की सतर्क निगाह बनी हुई है। दुर्दांत चरमपंथी निकी सुमी के नेतृत्व वाले इस संगठन ने 2001 में केंद्र के साथ संघर्ष विराम समझौता किया था, लेकिन 2015 में वह उससे अलग हट गया था। संगठन ने जिस समय समझौते से अलग हटने का फैसला किया था उस समय उसके प्रमुख एसएस खापलांग थे।भारतीय मूल के नागा नेताओं की अगुआई वाला यह आखिरी संगठन है, जो समय- समय पर परेशानी का सबब बनता रहा है। इस संगठन के कई नेता म्यांमार में रहकर कार्य कर रहे हैं। दुर्दांत चरमपंथी सुमी 2015 में मणिपुर में सेना के 18 जवानों के हत्या मामले का मुख्य आरोपी है। सूत्रों ने कहा चीन उग्रवादी गुटों को किसी तरह की मदद से इनकार करता रहा है, लेकिन खुफिया एजेंसियों के पास उग्रवादी गुटों के चीनी कनेक्शन को लेकर पुख्ता जानकारियां हैं। गौरतलब है कि म्यांमार से भारत के अच्छे रिश्तों की वजह से उग्रवादी गुटों पर दोनो देशों की साझा निगाह भी रहती है। भारत को उम्मीद है कि ताजा घटनाक्रम के बाद भी उग्रवादी गुटों को लेकर ये सहयोग बना रहेगा।