Vikrant Shekhawat : Jun 16, 2022, 07:25 AM
Delhi: विपक्षी दल राष्ट्रपति चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। लेकिन इस बार नजारा बदला हुआ है। कभी हिन्दी भाषी राज्यों के क्षेत्रीय दलों की इसमें अहम भूमिका होती थी। अब यह कमान गैर हिन्दी भाषी राज्यों के नेताओं के हाथ में है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर राव की सक्रियता के बाद बुधवार को तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने विपक्ष को एकजुट करने की कमान संभाल ली। जानकारों की मानें तो हिन्दी क्षेत्र में भाजपा का मजबूत होना इसका सबसे बड़ा कारण है।
राष्ट्रपति चुनाव में विधायक एवं सांसद दोनों हिस्सा लेते हैं। इस लिहाज से सबसे ज्यादा मत आज भी कांग्रेस के पास हैं। लेकिन राष्ट्रीय पार्टी के रूप में क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने में कांग्रेस चूक रही है। इसके पीछे कई प्रादेशिक राजनीतिक समीकरण भी हैं क्योकि कई राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच ही मुकाबला होता है। यूपी, बिहार समेत कई राज्यों में एक से अधिक क्षेत्रीय दल हैं। उन्हें एक मंच पर लाने में भी कम मुश्किलें नहीं हैं।दरअसल, विपक्ष में क्षेत्रीय दलों के पास वरिष्ठ नेताओं की कम सक्रियता भी एक वजह है। सपा के मुलायम सिंह यादव, राजद के लालू प्रसाद और शरद यादव जैसे नेता ऐसे मौकों पर बेहद सक्रिय रहते थे लेकिन विभिन्न कारणों से अब वे कम सक्रिय हैं। यही कारण है कि इसी कमी को गैर हिन्दी भाषी राज्यों के नेता जैसे ममता बनर्जी, टीआरएस के केसीआर राव पूरी कर रहे हैं। वे कुछ सालों से राष्ट्रीय राजनीति के मुद्दों पर बेहद सक्रिय हैं। संसद में सबसे ज्यादा तृणमूल कांग्रेस सत्ता पक्ष से जूझती नजर आती है। मौजूदा समय में पुराने नेताओं में सिर्फ एनसीपी के शरद पवार सक्रिय हैं। वह यथासंभव भूमिका निभा रहे हैं।
क्षेत्रीय दल कमजोर नहीं: मेहताराजनीति के प्रोफेसर सुबोध कुमार मेहता कहते हैं कि हिन्दी क्षेत्रों में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि भाजपा ही ताकतवर है और क्षेत्रीय दल कमजोर पड़ रहे हैं। वास्तव में ऐसा है नहीं। यूपी में भाजपा जरूर ताकतवर है। इसके बावजूद सपा की उपस्थिति अच्छी है। बिहार मे राजद, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में कांग्रेस मजबूत है। इसी प्रकार हरियाणा, पंजाब तथा दिल्ली में भी विपक्ष मजबूत है। चूंकि इन चुनावों में विधायकों के मत की भी भूमिका है, इसलिए क्षेत्रीय दलों का महत्व बरकरार है। असल जरूरत सिर्फ उसे एकजुट करने की है।सरकार की पहल का निकल सकता है सकारात्मक नतीजाराष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा और केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई सभी दलों के नेताओं से बातचीत का सकारात्मक नतीजा सामने आ सकता है। सरकार व भाजपा की कोशिश किसी एक नाम पर सर्वानुमति बनाने की है। उसके नेताओं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा विभिन्न दलों के नेताओं से चर्चा कर उम्मीदवार को लेकर उनके सुझाव ले रहे हैं।राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया बुधवार से शुरू हो गई है और 29 जून आखिरी तारीख है। ऐसे में सरकार ने पहले दिन से ही बड़े स्तर पर संवाद शुरू कर एक दर्जन से ज्यादा प्रमुख दलों और उनके नेताओं से संवाद किया है। भाजपा नेताओं ने विपक्षी नेताओं से कहा कि वह अपने नाम बताएं जिन पर सरकार गंभीरता से विचार करेगी और एक राय बनाने की कोशिश करेगी। हालांकि, विपक्ष की तरफ से भी सरकार से उसके उम्मीदवार के नाम मांगे हैं।
राष्ट्रपति चुनाव में विधायक एवं सांसद दोनों हिस्सा लेते हैं। इस लिहाज से सबसे ज्यादा मत आज भी कांग्रेस के पास हैं। लेकिन राष्ट्रीय पार्टी के रूप में क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने में कांग्रेस चूक रही है। इसके पीछे कई प्रादेशिक राजनीतिक समीकरण भी हैं क्योकि कई राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच ही मुकाबला होता है। यूपी, बिहार समेत कई राज्यों में एक से अधिक क्षेत्रीय दल हैं। उन्हें एक मंच पर लाने में भी कम मुश्किलें नहीं हैं।दरअसल, विपक्ष में क्षेत्रीय दलों के पास वरिष्ठ नेताओं की कम सक्रियता भी एक वजह है। सपा के मुलायम सिंह यादव, राजद के लालू प्रसाद और शरद यादव जैसे नेता ऐसे मौकों पर बेहद सक्रिय रहते थे लेकिन विभिन्न कारणों से अब वे कम सक्रिय हैं। यही कारण है कि इसी कमी को गैर हिन्दी भाषी राज्यों के नेता जैसे ममता बनर्जी, टीआरएस के केसीआर राव पूरी कर रहे हैं। वे कुछ सालों से राष्ट्रीय राजनीति के मुद्दों पर बेहद सक्रिय हैं। संसद में सबसे ज्यादा तृणमूल कांग्रेस सत्ता पक्ष से जूझती नजर आती है। मौजूदा समय में पुराने नेताओं में सिर्फ एनसीपी के शरद पवार सक्रिय हैं। वह यथासंभव भूमिका निभा रहे हैं।
क्षेत्रीय दल कमजोर नहीं: मेहताराजनीति के प्रोफेसर सुबोध कुमार मेहता कहते हैं कि हिन्दी क्षेत्रों में ऐसा माहौल बना दिया गया है कि भाजपा ही ताकतवर है और क्षेत्रीय दल कमजोर पड़ रहे हैं। वास्तव में ऐसा है नहीं। यूपी में भाजपा जरूर ताकतवर है। इसके बावजूद सपा की उपस्थिति अच्छी है। बिहार मे राजद, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में कांग्रेस मजबूत है। इसी प्रकार हरियाणा, पंजाब तथा दिल्ली में भी विपक्ष मजबूत है। चूंकि इन चुनावों में विधायकों के मत की भी भूमिका है, इसलिए क्षेत्रीय दलों का महत्व बरकरार है। असल जरूरत सिर्फ उसे एकजुट करने की है।सरकार की पहल का निकल सकता है सकारात्मक नतीजाराष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा और केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई सभी दलों के नेताओं से बातचीत का सकारात्मक नतीजा सामने आ सकता है। सरकार व भाजपा की कोशिश किसी एक नाम पर सर्वानुमति बनाने की है। उसके नेताओं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा विभिन्न दलों के नेताओं से चर्चा कर उम्मीदवार को लेकर उनके सुझाव ले रहे हैं।राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया बुधवार से शुरू हो गई है और 29 जून आखिरी तारीख है। ऐसे में सरकार ने पहले दिन से ही बड़े स्तर पर संवाद शुरू कर एक दर्जन से ज्यादा प्रमुख दलों और उनके नेताओं से संवाद किया है। भाजपा नेताओं ने विपक्षी नेताओं से कहा कि वह अपने नाम बताएं जिन पर सरकार गंभीरता से विचार करेगी और एक राय बनाने की कोशिश करेगी। हालांकि, विपक्ष की तरफ से भी सरकार से उसके उम्मीदवार के नाम मांगे हैं।