Vikrant Shekhawat : Jul 23, 2021, 04:03 PM
Delhi: साल 2019 में चीन से निकले पहले कोरोनावायरस की तुलना में डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित व्यक्तियों में 1000 गुना ज्यादा वायरल लोड है। यह इतनी ही तेजी से दुनिया भर में लोगों को संक्रमित भी कर रहा है। चीन में हुई एक स्टडी के मुताबिक अब इसके अल्ट्राफास्ट संक्रमण की वजह पता कर ली गई है। डेल्टा वैरिएंट को पहली बार पिछली साल अक्टूबर महीने में भारत में दर्ज किया गया था। इसके बाद इस खतरनाक वैरिएंट ने दुनिया भर में संक्रमित कोविड-19 मरीजों में 83% को अपनी गिरफ्त में ले लिया।
अब वैज्ञानिकों को यह बात पता चल चुकी है कि डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) संक्रमण फैलाने में इतना सफल क्यों रहा। यह भी पता चला है कि डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित लोग अन्य कोरोना मरीजों की तुलना में ज्यादा वायरस फैलाते हैं। इसलिए यह चीन से निकले पहले SARS-CoV-2 वैरिएंट से अधिक फैल रहा है। वर्तमान आंकड़ों के अनुसार डेल्टा वैरिएंट कोविड-19 के पहले स्ट्रेन से दोगुना ज्यादा संक्रामक है। चीन के गुआंगझोउ में स्थित गुआंगडोंग प्रोविशिंयल सेंटर फॉर डिजीस कंट्रोल के संक्रामक रोग विशेषज्ञ जिंग लू ने कहा कि उन्होंने 62 लोगों की जांच की। ये लोग चीन में डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित होने वाले पहले लोग थे। इन्हें संक्रमण हुआ तो सबसे पहले इन्हें क्वारनटीन कर दिया गया था। ताकि इनकी वजह से बाकी लोग संक्रमित न हों।जिंग लू और उनकी टीम ने इन सभी 62 लोगों के शरीर में डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) के वायरल लोड यानी शरीर में वायरस की मात्रा की जांच की। यह जांच सिर्फ एक बार नहीं हुई। बल्कि पूरे संक्रमण के दौरान हर दिन जांची गई। ताकि वायरल लोड में आ रही कमी और अधिकता की जांच की जा सके। इसके बाद वैज्ञानिकों ने साल 2020 में कोविड-19 के पहले वैरिएंट से संक्रमित 63 अन्य लोगों के वायरल लोड की रिपोर्ट्स देखीं। 12 जुलाई को एक प्री-प्रिंट स्टडी में कहा गया था कि डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) से संक्रमित लोगों में वायरस की पहचान चार दिन बाद हुई थी। जबकि, पहला स्ट्रेन छह दिन बाद दिखाई देता था। इसका मतलब ये है कि डेल्टा वैरिएंट ज्यादा तेजी से शरीर में फैल रहा है। पहले कोरोना वायरस से संक्रमित हुए लोगों को तुलना में डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित लोगों के शरीर में 1260 गुना ज्यादा वायरल लोड था। यूनिवर्सिटी ऑफ हॉन्गकॉन्ग के संक्रामक रोग विशेषज्ञ बेंजामिन कॉलिंग ने कहा कि शरीर में तेजी से बढ़े वायरल लोड और छोटे इन्क्यूबेशन पीरियड की वजह से डेल्टा वैरिएंट काफी तेजी से एक इंसान को संक्रमित करने के बाद दूसरे को संक्रमित कर रहा है। इस वजह से ये काफी तेजी से लोगों के बीच फैल रहा है। अगर डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित कोई व्यक्ति आपके आसपास है, तो उससे काफी दूरी बनाकर रखने में ही चतुराई है, क्योंकि उसके रेस्पिरेटरी सिस्टम में वायरल लोड ज्यादा होता है। उससे आपको संक्रमण होने का खतरा रहता है।बेंजामिन कॉलिंग ने कहा कि डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) का इन्क्यूबेशन पीरियड इतना छोटा है कि चीन जैसे देश में इसका कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग आसान नहीं है। यानी इस वैरिएंट से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में कितने लोग आए, इसका सही अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। क्योंकि अगर किसी व्यक्ति के संपर्क में पहले दिन कोई आया तो वह भी चार दिन में संक्रमित हो जाएगा। इतनी जल्दी उसे खोज पाना और इलाज के लिए क्वारनटीन करना आसान नहीं होगा। स्विट्जरलैंड में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ बर्न की जेनेटिक रिसर्चर एमा होडक्रॉफ्ट ने कहा कि डेल्टा वैरिएंट को लेकर जिंग लू की स्टडी सही है। एमा और बेंजामिन कॉलिंग को शक है कि डेल्टा वैरिएंट और पहले कोरोनावायरस स्ट्रेन के वायरल लोड में अंतर हो सकता है। जिसकी जांच और करनी होगी। लेकिन जिन तरीकों से जिंग लू और उनकी टीम ने यह स्टडी की है, वो तरीका सही है। इसलिए उम्मीद है कि इनके आंकड़े भी सही होंगे। हालांकि अब भी डेल्टा वैरिएंट को लेकर कई सवालों के जवाब मिलने बाकी है। अभी तक यह बात स्पष्ट नहीं है कि क्या ये पहले कोविड-19 स्ट्रेन से ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा कर रहा है। क्या ये पहले स्ट्रेन की तुलना में इम्यून सिस्टम को ज्यादा धोखा दे रहा है। इन सवालों के जवाब खोजना अब भी बाकी है। जिसकी स्टडी चल रही है।एमा होडक्रॉफ्ट ने कहा कि दुनियाभर के शोधकर्ता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि डेल्टा वैरिएंट से संबंधित सभी जानकारियां आपस में शेयर की जाएं। दुनिया भर से मिल रहे डेटा का एनालिसिस किया जाए। क्योंकि डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) कोरोनावायरस परिवार का इकलौता ऐसा स्ट्रेन है जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है।
अब वैज्ञानिकों को यह बात पता चल चुकी है कि डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) संक्रमण फैलाने में इतना सफल क्यों रहा। यह भी पता चला है कि डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित लोग अन्य कोरोना मरीजों की तुलना में ज्यादा वायरस फैलाते हैं। इसलिए यह चीन से निकले पहले SARS-CoV-2 वैरिएंट से अधिक फैल रहा है। वर्तमान आंकड़ों के अनुसार डेल्टा वैरिएंट कोविड-19 के पहले स्ट्रेन से दोगुना ज्यादा संक्रामक है। चीन के गुआंगझोउ में स्थित गुआंगडोंग प्रोविशिंयल सेंटर फॉर डिजीस कंट्रोल के संक्रामक रोग विशेषज्ञ जिंग लू ने कहा कि उन्होंने 62 लोगों की जांच की। ये लोग चीन में डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित होने वाले पहले लोग थे। इन्हें संक्रमण हुआ तो सबसे पहले इन्हें क्वारनटीन कर दिया गया था। ताकि इनकी वजह से बाकी लोग संक्रमित न हों।जिंग लू और उनकी टीम ने इन सभी 62 लोगों के शरीर में डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) के वायरल लोड यानी शरीर में वायरस की मात्रा की जांच की। यह जांच सिर्फ एक बार नहीं हुई। बल्कि पूरे संक्रमण के दौरान हर दिन जांची गई। ताकि वायरल लोड में आ रही कमी और अधिकता की जांच की जा सके। इसके बाद वैज्ञानिकों ने साल 2020 में कोविड-19 के पहले वैरिएंट से संक्रमित 63 अन्य लोगों के वायरल लोड की रिपोर्ट्स देखीं। 12 जुलाई को एक प्री-प्रिंट स्टडी में कहा गया था कि डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) से संक्रमित लोगों में वायरस की पहचान चार दिन बाद हुई थी। जबकि, पहला स्ट्रेन छह दिन बाद दिखाई देता था। इसका मतलब ये है कि डेल्टा वैरिएंट ज्यादा तेजी से शरीर में फैल रहा है। पहले कोरोना वायरस से संक्रमित हुए लोगों को तुलना में डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित लोगों के शरीर में 1260 गुना ज्यादा वायरल लोड था। यूनिवर्सिटी ऑफ हॉन्गकॉन्ग के संक्रामक रोग विशेषज्ञ बेंजामिन कॉलिंग ने कहा कि शरीर में तेजी से बढ़े वायरल लोड और छोटे इन्क्यूबेशन पीरियड की वजह से डेल्टा वैरिएंट काफी तेजी से एक इंसान को संक्रमित करने के बाद दूसरे को संक्रमित कर रहा है। इस वजह से ये काफी तेजी से लोगों के बीच फैल रहा है। अगर डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित कोई व्यक्ति आपके आसपास है, तो उससे काफी दूरी बनाकर रखने में ही चतुराई है, क्योंकि उसके रेस्पिरेटरी सिस्टम में वायरल लोड ज्यादा होता है। उससे आपको संक्रमण होने का खतरा रहता है।बेंजामिन कॉलिंग ने कहा कि डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) का इन्क्यूबेशन पीरियड इतना छोटा है कि चीन जैसे देश में इसका कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग आसान नहीं है। यानी इस वैरिएंट से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में कितने लोग आए, इसका सही अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। क्योंकि अगर किसी व्यक्ति के संपर्क में पहले दिन कोई आया तो वह भी चार दिन में संक्रमित हो जाएगा। इतनी जल्दी उसे खोज पाना और इलाज के लिए क्वारनटीन करना आसान नहीं होगा। स्विट्जरलैंड में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ बर्न की जेनेटिक रिसर्चर एमा होडक्रॉफ्ट ने कहा कि डेल्टा वैरिएंट को लेकर जिंग लू की स्टडी सही है। एमा और बेंजामिन कॉलिंग को शक है कि डेल्टा वैरिएंट और पहले कोरोनावायरस स्ट्रेन के वायरल लोड में अंतर हो सकता है। जिसकी जांच और करनी होगी। लेकिन जिन तरीकों से जिंग लू और उनकी टीम ने यह स्टडी की है, वो तरीका सही है। इसलिए उम्मीद है कि इनके आंकड़े भी सही होंगे। हालांकि अब भी डेल्टा वैरिएंट को लेकर कई सवालों के जवाब मिलने बाकी है। अभी तक यह बात स्पष्ट नहीं है कि क्या ये पहले कोविड-19 स्ट्रेन से ज्यादा गंभीर बीमारियां पैदा कर रहा है। क्या ये पहले स्ट्रेन की तुलना में इम्यून सिस्टम को ज्यादा धोखा दे रहा है। इन सवालों के जवाब खोजना अब भी बाकी है। जिसकी स्टडी चल रही है।एमा होडक्रॉफ्ट ने कहा कि दुनियाभर के शोधकर्ता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि डेल्टा वैरिएंट से संबंधित सभी जानकारियां आपस में शेयर की जाएं। दुनिया भर से मिल रहे डेटा का एनालिसिस किया जाए। क्योंकि डेल्टा वैरिएंट (Delta Variant) कोरोनावायरस परिवार का इकलौता ऐसा स्ट्रेन है जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है।