उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता / धामी ने भाजपा के सपने को साकार करने की ठानी, पर आसान नहीं है राह

भारतीय जनता पार्टी देश में समान नागरिक संहिता की जो कवायद लंबे समय से चला रही है, उसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पूरा करने चले हैं। हालांकि राह आसान नहीं है क्योंकि गोवा को छोड़कर देश के किसी भी राज्य या केंद्र के स्तर से समान नागरिक संहिता अभी तक लागू नहीं हो पाई है। गोवा का भी भारत में विलय होने से पहले से ही वहां पुर्तगाल सिविल कोड 1867 लागू है।

Vikrant Shekhawat : Mar 25, 2022, 10:23 AM
भारतीय जनता पार्टी देश में समान नागरिक संहिता की जो कवायद लंबे समय से चला रही है, उसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पूरा करने चले हैं। हालांकि राह आसान नहीं है क्योंकि गोवा को छोड़कर देश के किसी भी राज्य या केंद्र के स्तर से समान नागरिक संहिता अभी तक लागू नहीं हो पाई है। गोवा का भी भारत में विलय होने से पहले से ही वहां पुर्तगाल सिविल कोड 1867 लागू है। आईए जानते हैं क्या है समान नागरिक संहिता, क्या होगा इसका असर, कैसे होगा लागू, कानूनविदों की क्या है राय।

क्या है समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड सभी धर्मों के लिए एक ही कानून है। अभी तक हर धर्म का अपना अलग कानून है, जिसके हिसाब से व्यक्तिगत मामले जैसे शादी, तलाक आदि पर निर्णय होते हैं। हिंदू धर्म के लिए अलग, मुस्लिमों का अलग और ईसाई समुदाय का अलग कानून है। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून होगा। 

1989 के आम चुनाव में पहली बार भाजपा ने उठाया मुद्दा

समान नागरिक संहिता एक ऐसा मुद्दा है, जो हमेशा से भाजपा के एजेंडे में रहा है। 1989 के आम चुनाव में पहली बार भाजपा ने अपने घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता का मुद्दा शामिल किया था। इसके बाद 2014 के आम चुनाव और फिर 2019 के चुनाव में भी भाजपा ने इस मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में जगह दी। भाजपा का मानना है कि जब तक यूनिफॉर्म सिविल कोड को अपनाया नहीं जाता, तब तक लैंगिक समानता नहीं आ सकती।

सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट भी कर चुके टिप्पणी

समान नागरिक संहिता पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर दिल्ली हाईकोर्ट तक सरकार से सवाल कर चुकी है। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए कोई कोशिश नहीं की गई। वहीं, पिछले साल जुलाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से कहा था कि समान नागरिक संहिता जरूरी है।

अभी यह हैं प्रावधान

वर्तमान समय में हर धर्म के लोगों से जुड़े मामलों को पर्सनल लॉ के माध्यम से सुलझाया जाता है। हालांकि पर्सनल लॉ मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का है जबकि जैन, बौद्ध, सिख और हिंदू, हिंदू सिविल लॉ के तहत आते हैं।

दुनिया के इन देशों में लागू है समान नागरिक संहिता

तुर्की, सूडान, इंडोनेशिया, मलेशिया, बांग्लादेश, इजिप्ट और पाकिस्तान।

क्या कहते हैं कानूनविद

वरिष्ठ कानूनविद आरएस राघव का कहना है कि निश्चित तौर पर अनुच्छेद-44 के तहत राज्य सरकार अपने राज्य के नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बना सकती है लेकिन इसे लागू कराने के लिए केंद्र को भेजना होगा। इसके बाद राष्ट्रपति से मुहर लगने पर ही यह लागू हो सकती है। वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी का कहना है कि संविधान की संयुक्त सूची में अनुच्छेद-44 के तहत राज्य को समान नागरिक संहिता बनाने का पूर्ण अधिकार है। इसके बाद अगर केंद्र सरकार कोई यूनिफॉर्म सिविल कोड लेकर आती है तो राज्य की संहिता उसमें समाहित हो जाएगी। 

21वें विधि आयोग को सौंपा था मसला

समान नागरिक संहिता का मसला विधि आयोग के पास है। कानून मंत्री किरन रिजिजू ने इसी साल 31 जनवरी को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को एक पत्र लिखकर बताया था कि समान नागरिक संहिता का मामला 21वें विधि आयोग को सौंपा गया था, लेकिन इसका कार्यकाल 31 अगस्त 2018 को खत्म हो गया था। अब इस मामले को 22वें विधि आयोग के पास भेजा सकता है।