Vikrant Shekhawat : Aug 07, 2020, 10:56 PM
- कोरोना महामारी के साथ भूख और अल्प-पोषण की समस्या अधिक तीव्र हो सकती है: उपराष्ट्रपति
- उन्होंने लॉकडाउन के दौरान चुनौतियों के बावजूद रिकॉर्ड अनाज उत्पादन के लिए किसानों की प्रशंसा की
- नायडू ने स्वदेशी समुदायों के पारंपरिक ज्ञान के साथ आधुनिक वैज्ञानिक जानकारी को एकजुट करने का आह्वान किया
- उप राष्ट्रपति ने कहा- हमारी प्रयोगशालाओं को हमारे खेतों और खलिहानों से मजबूती से जोड़ा जाना चाहिए
- उपराष्ट्रपति ने एम. एस. स्वामीनाथन फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) द्वारा ‘विविध भोजन, पोषण एवं आजीविका के विज्ञान’ पर आयोजित की जा रही वर्चुअल परामर्श का उद्घाटन किया
- उपराष्ट्रपति ने महिलाओं को भूमि अधिकार प्रदान करने के डॉ. स्वामीनाथन के सुझाव का समर्थन किया
उन्होंने कहा कि अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में निवेश करने के बजाय हमें खाद्य उत्पादों के पोषण मूल्य को बनाए रखने के लिए बेहतर भंडारण, प्रसंस्करण और संरक्षण में निवेश करना चाहिए।
उपराष्ट्रपति ने एक दूरदर्शी वैज्ञानिक और भारत की हरित क्रांति के सूत्रधार के रूप में प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन की प्रशंसा की और इस बात पर खुशी जताई कि एमएसएसआरएफ का उद्देश्य कृषि और ग्रामीण विकास के लिए आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग में तेजी लाना है।
उन्होंने एमएसएसआरएफ की विशेष रूप से गरीबोन्मुख, महिला समर्थक और प्रकृति संरक्षक दृष्टिकोण के लिए सराहना की और यह विश्वास प्रकट किया कि इस वर्चुअल परामर्श से खाद्य सुरक्षा और पोषण को बढ़ावा देने के लिए नई कार्यनीतियों और तरीकों को विकसित करने में मदद मिलेगी।प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसानों की मदद करने के लिए डॉ. स्वामीनाथन के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह डॉ. स्वामीनाथन के सुझावों का बारीकी से पालन करते हैं और संसद सहित जीवन के सभी स्तरों पर वे उनका पालन करते रहेंगे।उपराष्ट्रपति नायडू ने महिलाओं को भूमि अधिकार प्रदान करने के डॉ. स्वामीनाथन के सुझाव का भी समर्थन किया। उन्होंने कहा कि भूमि अधिकार, पट्टा, और अन्य सभी संपत्ति संयुक्त रूप से पुरुष और महिला के नाम पर होनी चाहिए।उपराष्ट्रपति ने एसडीजी लक्ष्यों के बारे में बात करते हुए कहा कि यह अब तक हुई प्रगति की समीक्षा करने का समय है। उन्होंने पूछा कि भूख से समाज को मुक्ति दिलाने (ज़ीरो हंगर) और अच्छे स्वास्थ्य एवं तंदुरूस्ती के लक्ष्यों को प्राप्त करने के संदर्भ में हमारी स्थिति क्या है।नायडू ने संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि 2019 में दुनिया भर के लगभग 750 मिलियन लोगों के सामने खाद्य असुरक्षा की गंभीर स्थिति थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में भूख से पीड़ित लोगों की संख्या हाल के वर्षों में धीरे-धीरे बढ़ रही है।उपराष्ट्रपति ने दुनिया में भूख से संबंधित इन चिंताजनक संकेतकों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए इससे बचने के उपायों को अलग तरीकों से और अधिक तेज़ी से करने की आवश्यकता पर जोर दिया।उन्होंने कहा कि हमें राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर तत्काल, केंद्रित और ठोस कार्रवाई की जरूरत है।नायडू ने कहा कि भारत ने भूख, कुपोषण और शिशु मृत्यु दर को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि भारत सरकार ने देश में स्वास्थ्य और पोषण संबंधी समस्याओं से निपटने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।इसके लिए उन्होंने विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के बारे में बताते हुए हाल ही में घोषित नई शिक्षा नीति में स्कूली बच्चों को पौष्टिक नाश्ता प्रदान करने के प्रावधान पर प्रसन्नता व्यक्त की।नायडू ने जीवन और आजीविका पर कोविड महामारी के प्रभाव के बारे में बताते हुए कहा कि कोरोना की वजह से आई वैश्विक आर्थिक मंदी के साथ भूख और अल्प-पोषण की समस्या अधिक तीव्र हो सकती है।नायडू ने लॉकडाउन की अवधि के दौरान इतनी चुनौतियों और बाधाओं के बावजूद रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन के लिए भारतीय किसानों की सराहना की। उन्होंने कहा कि अपनी प्रतिबद्धता, कड़ी मेहनत और मूल ज्ञान के कारण किसान ऐसा कर सके।उपराष्ट्रपति ने यह बताते हुए कि स्वस्थ, सामाजिक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए और हर तरह से तैयार लोग आपदाओं से निपटने में सक्षम हैं, कहा कि लचीला समुदायों के निर्माण में निवेश करने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि नीति निर्माताओं और राजनेताओं को जनसंख्या नियोजन पर भी ध्यान देना चाहिए।नायडू ने मानव कल्याण और भूखमरी में कमी लाने के लिए वैज्ञानिक ज्ञान में प्रगति का उपयोग करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने वैज्ञानिक ज्ञान को स्वदेशी समुदायों के पारंपरिक ज्ञान के साथ एकजुट करने का आह्वान किया।उपराष्ट्रपति ने इस क्षेत्र में प्रगति में तेजी लाने और स्थायी सफलता प्राप्त करने के लिए जनता, नागरिक समाज, पंचायती राज संस्थाओं और सरकारों द्वारा ठोस कार्रवाई का आह्वान किया।नायडू ने सभी के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि को अधिक लचीला और लाभदायक बनाने का आह्वान किया। उन्होंने फसल पकने से पहले और फसल कटने के बाद के नुकसान को कम करने और बाजार के बुनियादी ढांचे में सुधार करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि किसानों को अपनी उपज पर खेत से बाज़ार तक की उचित लागत मिलनी चाहिए।उन्होंने कहा कि नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे सिंचाई के बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ावा दें और पौष्टिक खाद्य पदार्थों की उपज बढ़ाने के लिए अनुसंधान और विकास पर ध्यान दें और उस तरह किसानों की इन उपजों पर लागत को कम करने में मदद करें।पूर्वानुमानित शोध के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि अग्रिम चेतावनी ने टिड्डियों के हाल के हमलों के दौरान किसानों को लाभान्वित किया। उन्होंने बाढ़ जैसे प्राकृतिक खतरों से बचने के लिए ऐसी ही पूर्वानुमानित चेतावनियों के निर्माण का आह्वान किया।नायडू ने सहज प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और किसान शिक्षा का आह्वान करते हुए कहा कि हमारी प्रयोगशालाओं को हमारे खेतों और खलिहानों से मजबूती से जोड़ा जाना चाहिए।नायडू ने यह इच्छा जाहिर की कि वैज्ञानिक किसानों से जुड़े रहने के लिए आईसीटी का अधिकतम उपयोग करें और उन्हें समय पर सलाह और फसलों की अच्छी पैदावार के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करें।उन्होंने कहा कि भारत कृषि में पारंपरिक ज्ञान का भंडार है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीक के साथ-साथ इन तकनीकों का सही तालमेल बिठाने के लिए हरसंभव प्रयास करने का आह्वान किया।किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सरकार द्वारा की गई कई पहलों की चर्चा करते हुए उपराष्ट्रपति ने यह उम्मीद जताई कि यह सम्मेलन नीति कार्यान्वयन की प्रक्रिया को आवश्यक गति प्रदान करके राष्ट्रीय नीतियों को और अधिक मजबूत बनाने में मदद करेगा।इस ऑनलाइन परामर्श में डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन, प्रो. के. विजयराघवन और देश-विदेश के वैज्ञानिक और शोधकर्ता शामिल हुए।