Vikrant Shekhawat : May 26, 2023, 09:36 AM
Pakistan News: बदलाव प्रकृति का स्वभाव होता है. कभी ये अच्छा होता है और कभी बुरा. वक्त की तासीर ही ऐसी होती है जनाब. ये किसी के लिए अपने गुजरते की फितरत नहीं रोकता. पाकिस्तान को ही देख लीजिए. धर्म के नाम पर अलग हुए इस मुल्क में सेना ही सबकुछ होती है. कहने को लोकतांत्रिक प्रक्रिया है. चुनाव होते हैं, सत्ता का चुनाव भी होता है. मगर शासन सेना का होता है. इसके सैकड़ों उदाहरण हैं. जनरल जिया उल हक का शासन काल तो याद ही होगा. पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को रातों-रात फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया गया. परिवार वालों को कब्र पर दो मुट्ठी मिट्टी भी नहीं डालने दी गई. लेकिन वक्त बदलता हुआ नजर आ रहा है. पहली बार ऐसा हो रहा है कि जब आवाम खुद अपनी सेना के खिलाफ हो रही है. कोई भी ताकतवर बंदूकों, सेना से मजबूत नहीं होता. मुल्क मजबूत बनता है वहां की जनता से.इमरान खान पर शिकंजाइमरान खान को सत्ता तक पहुंचाने के पीछे सेना ही थी. लेकिन इमरान ने सेना की बात सुननी बंद कर दी. यहां से दोनों के बीच एक लकीर खिंची और ये लकीर इतनी बढ़ी की बाजवा और इमरान दोनों को अपनी गद्दी गंवानी पड़ी. अभी भी पाकिस्तान राजनीतिक द्वंद में फंसा हुआ है. इमरान के पीछे सरकार, सेना, आईएसआई सब पड़े हुए हैं. कादरी ट्रस्ट मामले में उनकी गिरफ्तारी तो हुई लेकिन इसके अलावा आर्मी एक्ट, देशद्रोह, ईशनिंदा के तहत मामले दर्ज हुए हैं. 9 मई के बाद पाकिस्तान में जो कुछ हुआ क्या वो सिर्फ एक हिंसक प्रदर्शन था या बदलाव की बयान. वही बयार जो कि 1971 बांग्लादेश मुक्ति, सैन्य तख्तापलट, बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद भी नहीं चली. पाक सेना का जुल्म बढ़ता चला गया. लेकिन जनता कभी भी इसके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं की.पहली बार बदलाव की बयारपहली बार ऐसा हुआ था जब कोई सरकार (इमरान खान सरकार) सेना के खिलाफ हुई हो. और अब एक बदलाव की फुहार नजर आ रही है. आवाम सेना का साथ छोड़ रही है. पाकिस्तान की आवाम दशकों के रिवाज को बदलने का मूड बनाती हुई दिख रही है. लेकिन अचानक ऐसा क्यों? ये सवाल जायज नहीं है, क्योंकि ऐसे बदलाव एक दिन, एक महीना या एक साल में नहीं होते. ये चिंगारी दशकों जलती है और फिर एक दिन ये चिंगारी आग में तब्दील हो जाती है. पांच कारण ये बताते हैं कि आखिर क्यों जनता का सेना से मोहभंग हुआ है.पाकिस्तान में आर्थिक संकटएक साल पहले पाकिस्तान में विनाशकारी बाढ़ आई. इसमें एक तिहाई पाकिस्तान डूब गया था. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में बताया गया कि उस बाढ़ में तीन करोड़ 30 लाख लोगों को बेघर होना पड़ा था. इसके अलावा 90 लाख लोगों की जीविका का साधन भी नहीं रहा. संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान की मदद की. लेकिन ये देश उबर नहीं पाया. यहां की लचर राजनीति और खराब आर्थिक नीति के कारण हालात ये हुए कि देश कंगाली की कगार पर खड़ा हो गया. वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडा 85.75 करोड़ डॉलर के करीब बचा है, जबकि देश पर 270 अरब डॉलर का कर्ज है. पाकिस्तान जिन वस्तुओं का आयात करता है वो चीजें पोर्ट में खड़ी हुई हैं मगर पाकिस्तान के पास पैसा नहीं है कि उसको छुड़ा ले. जनता त्रस्त है. उसके जीना मुश्किल हो रहा है. दूसरी तरफ वो पाती है कि सरकारी नुमाइंदों को किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं है. इसने भी जनता के दिल में गहरा आघात पहुंचाया है.राजनीतिक अस्थिरता1947 में आजाद हुआ देश में आज तक कोई भी सरकार पांच साल पूरे नहीं कर पाई. इमरान खान से उम्मीदें थीं कि शायद इमरान इस रिवाज को तोड़ देंगे मगर ऐसा नहीं हुआ उनकी भी सरकार गिरा दी गई. वो भी सत्ता में सरकार गिरा कर ही आसीन हुए थे. इसके पीछे भी कई कारण हैं मगर सेना के प्रति लोगों के गुस्से के बड़ा कारण यहां की राजनीतिक अस्थिरता भी बहुत बड़ा कारण हैं. लोगों को समझ आने लगा कि यहां पर सेना का कितना बडा दखल है. इसी कारण सरकारें अपना काम नहीं कर पाती और उसको सत्ता छोड़नी पड़ती है.अफगानिस्तान में अमानवीय स्थितियांजब अमेरिकी सैनिकों ने अफगानिस्तान छोड़ा उसी वक्त तालिबान ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया. अमेरिका सैनिक अफगानियों को बेहिल्ले छोड़कर चले गए. पाकिस्तान बहुत खुश था. इमरान खान की सत्ता थी. तालिबानियों की खूब मदद की गई. इमरान खान की सत्ता ने अपनी विदेश नीति के शीर्ष में तालिबान को ही बसा लिया. उनको लगा कि पाकिस्तान की सबसे ज्यादा मदद तालिबान ही करेगा मगर ऐसा नहीं हुआ. आज अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को बिल्कुल साइड पर कर दिया. पाकिस्तान पर जब तहरीक ए तालिबान के हमले शुरू हो गए तो पाकिस्तान से इसका ठीकरा अफगानिस्तान पर फोड़ दिया. अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को लताड़ लगाई. इससे वहां की स्थितियों ने आवाम के दिल ओ दिमाग पर गहरा असर छोड़ा है.पाकिस्तान में आतंकवादआम लोग सुख और शांति से अपना जीवन जीना चाहते हैं. चाहे वो हिंदुस्तान हो पाकिस्तान हो या फिर और कोई मुल्क. लेकिन यहां के राजनीतिक, सामाजिक कारणों की वजह से अस्थिरता पैदा होती है. पाकिस्तान ने हमेशा से ही आतंकवाद का समर्थन किया. देखते ही देखते हुए ये देश आतंक की फैक्ट्री बन गया. लश्कर, अलकायदा से लेकर कई समूहों को पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का संरक्षण मिल गया. भारत के खिलाफ वो इसका इस्तेमाल करने लगे. पाकिस्तान की आम जनतो को इससे कोई लेना देना नहीं है लेकिन इसके प्रतिकार का दंश उनको झेलना पड़ता है. वो मुल्क आज भी पिछड़ा है. यहां की जनता इससे बोर हो चुकी है. तहरीक ए तालिबान के आतंकियों ने पाकिस्तान सेना, चौकियों पर 850 से ज्यादा हमले किए. मस्जिद में भी धमाके हुए. लोगों की जानें गईं. आम जनता पर इसका गहरा असर हुआ है. इस साल केपीके (खैबर पख्तूनख्वा), बलूचिस्तान और बड़े शहरों में हर दिन औसतन तीन हमले हुए. सैकड़ों पुलिसकर्मी, अर्धसैनिक बल के जवान और सेना के वरिष्ठ अधिकारी मारे गए. सेना का ऑपरेशन जारी है लेकिन राहत के कोई आसार नहीं है. टीटीपी बलूचिस्तान और पंजाब में अपने पैर पसार चुका है.ग्लोबल स्तर पर पाक की थू-थूग्लोबल स्तर पर पाकिस्तान की थू-थू हो चुकी है. यूनाइडेट नेशन तक के मंच में पाकिस्तान को आतंकवाद की फैक्ट्री बोला जा चुका है. इसी कारण विदेशी मुल्क पाकिस्तान से रिश्ता रखमें में खास दिलचस्पी नहीं दिखाते. पाकिस्तान की कूटनीति सिर्फ चीन तक ही सीमित. चीन पाकिस्तान का इसलिए खास बना हुआ है क्योंकि उसकी राह का रोड़ा भारत है. चीन भारत को टारगेट करने के लिए पाकिस्तान को बढ़ावा देता है. अमेरिका पाकिस्तान को कई बार दो टूक चेतावनी दे चुका है. भारत ने ग्लोबल स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने का माहौल बनाया. सभी देश आतंकवाद से जूझे हैं और वो इसका दर्द जानते हैं. लादेन जैसा आतंकी जब पाकिस्तान में पनाह लेता है और अमेरिका घुसकर मारता तो आप समझ सकते हैं कि वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान की क्या स्थिति होगी?पाकिस्तान में अस्थिरतानौ और 10 मई को पाकिस्तान में जिस तरह के हिंसक प्रदर्शन हुए. उससे ये लगता है कि अब वो वक्त आ गया है कि जब पाकिस्तान की आवाम सेना का विरोध कर रही है. क्योंकि आप देखिए जनता से ज्यादातर सेना पर ही हमले किए. सैन्य चौंकियों को निशाना बनाया गया. रावलपिंडी में आर्मी हेडक्वार्टर पर हमला किया गया. सुरक्षाबलों को निशाना बनाया गया. संसद को निशाना बनाया गया. कहने को तो ये पीटीआई समर्थकों ने किया मगर हकीकत इससे कुछ अलग है. इस भीड़ का हिस्सा वो भी था जो सेना की मौजूदगी से गुस्से में था. हर मुल्क की जनता अपना हित चाहती है. वो सुख से रहना चाहती है. मगर पाकिस्तान में सेना और सरकार के बीच द्वंद ऐसा होने नहीं देता.