Ganesh Chaturthi 2020 / जानें किस दिन मनाई जाएगी गणेश चतुर्थी, शुभ मुहुर्त, महत्व और जन्म कथा

इस साल 22 अगस्त को गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाएगा। गणेश चतुर्थी के इस पावन पर्व को विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है और इस त्योहार को हिंदू धर्म में काफी धूमधाम से मनाया जाता है। बता दें, भगवान गणेश, माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं। गणेश चतुर्थी का त्योहार भगवान गणेश के जन्म का प्रतीक है और इस वजह से इस दिन को बेहद ही धूमधाम से मनाया जाता है।

NDTV : Aug 18, 2020, 07:55 AM
Ganesh Chaturthi 2020: इस साल 22 अगस्त को गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) का त्योहार मनाया जाएगा। गणेश चतुर्थी के इस पावन पर्व को विनायक चतुर्थी (Vinayaka Chaturthi 2020) के नाम से भी जाना जाता है और इस त्योहार को हिंदू धर्म में काफी धूमधाम से मनाया जाता है। बता दें, भगवान गणेश (Lord Ganesha), माता पार्वती (Goddess Parvati) और भगवान शिव (Lord Shiva) के पुत्र हैं। गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2020) का त्योहार भगवान गणेश के जन्म का प्रतीक है और इस वजह से इस दिन को बेहद ही धूमधाम से मनाया जाता है। 

कब मनाई जाती है गणेश चतुर्थी

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक भादो महीने की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह अगस्त या फिर सितंबर के महीने में मनाई जाती है। 

गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त

गणेश चतुर्थी शनिवार, अगस्त 22, 2020 को है।

पूजा का समय- मध्य रात्रि 11 बजकर 06 मिनट से लेकर दोपहर को 01 बजकर 42 मिनट तक

गणेश विसर्जन, मंगलवार 1 सितंबर 2020 को

चतुर्थी तिथि प्रारंभ- अगस्त 21 2020 को रात 11 बजकर 2 मिनट से

चतुर्थी तिथि समाप्त- अगस्त 22, 2020 को शाम 07 बजकर 57 मिनट पर

गणेश चतुर्थी का महत्व 

माना जाता है कि भगवान श्रीगणेश का जन्म भादो मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी के दिन हुआ था। इस वजह से इस दिन को उनके जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। बता दें, गणेश जी को सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय माना गया है। इस दिन गणपति बप्पा को अपने घर में लाकर विराजमान करने से वो भक्तों के सभी विघ्न, बाधाएं दूर कर देते हैं। इस वजह से गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन लोग अपने घरों में गणपति जी को लाते हैं और इसके 11वें दिन धमधाम से उन्हें विसर्जित कर दिया जाता है। 

भगवान गणेश की जन्म कथा

पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक बार नंदी से माता पार्वती की किसी आज्ञा का पालन करने में गलती हो गई थी। इसे बाद माता पार्वती ने कुछ ऐसा बनाने का सोचा, जो केवल उनके आज्ञा की पालन करें। इस वजह से उन्होंने अपने उबटन से एक बालक की आकृति बनाई और उसमें प्राण डाल दिए। माना जाता है कि जब माता पार्वती स्नान कर रही थीं तो वह बालक बाहर पहरा दे रहा था। माता पार्वती ने ही बालक को पहरा देने का आदेश दिया था और कहा था कि बिना उनकी आज्ञा के किसी को अंदर न आने दिया जाए।

इसके बाद जैसे ही भगवान शिव के गण आए तो बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। इसके बाद स्वंय भगवान शिव आए तो बालक ने उन्हें भी अंदर नहीं जाने दिया। इस बात पर भगवान शिव क्रोधित हो गए और बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसके बाद जैसी ही माता पार्वती बाहर आईं और उन्होंने देखा तो वह क्रोधित हो गईं। उन्होंने भगवान शिव से बालक को वापस जीवत करने के लिए कहा और तब भगवान शिव ने एक हाथी का सिर बालक के धड़ से जोड़ दिया।