Assembly Elections 2023 / MP में हनुमान तो छत्तीसगढ़ में श्रीराम, राजस्थान में कृष्ण सहारे कांग्रेस

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की न सिर्फ धुंधली सी तस्वीर साफ करेंगे. बल्कि उन प्रयोगों का भी आकलन करेंगे, जिसको रणनीति में तब्दील कर राजनीतिक दल आम चुनाव में इस्तेमाल करेंगे. इन तीन राज्यों से बहने वाली चुनावी हवा में हिंदुत्व की तेज महक आ रही है. सिर्फ भारतीय जनता पार्टी ने ही नहीं बल्कि कांग्रेस ने भी अब उसके और बीजेपी के हिंदुत्व में अंतर बताने वाले सॉफ्ट

Vikrant Shekhawat : Aug 11, 2023, 06:12 PM
Assembly Elections 2023: मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की न सिर्फ धुंधली सी तस्वीर साफ करेंगे. बल्कि उन प्रयोगों का भी आकलन करेंगे, जिसको रणनीति में तब्दील कर राजनीतिक दल आम चुनाव में इस्तेमाल करेंगे. इन तीन राज्यों से बहने वाली चुनावी हवा में हिंदुत्व की तेज महक आ रही है. सिर्फ भारतीय जनता पार्टी ने ही नहीं बल्कि कांग्रेस ने भी अब उसके और बीजेपी के हिंदुत्व में अंतर बताने वाले सॉफ्ट और हार्ड के सहयोगी शब्द हटा दिए हैं. कांग्रेस खुलकर हिंदुत्व के रंग में रंग गई है और बीजेपी को इसी हिंदुत्व की पिच पर टक्कर दे रही है.

मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने ‘हनुमान भक्त’ का खुद को दिया तमगा हिंदुत्व की चुनावी सुनहरी धूप में और चमका लिया है. छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल ने बीजेपी के रामलला की काट तलाशते हुए ‘भांजे राम’ की उंगलियां पकड़ ली हैं. हिंदुत्व की बिसात पर राजस्थान के अशोक गहलोत तो नए ककहरे गढ़ने की प्रक्रिया में जुट गए हैं. जिस भूमि पर कृष्ण भक्त मीरा का जन्म हुआ वहीं चुनावी समर में गहलोत अपने आराध्य गोविंद की शरण में हैं. एक-एक कर टटोलते हैं हिंदुत्व पर इन कांग्रेसी नेताओं के कड़े होते रुख और कांग्रेस की बदलती रणनीति की वजह.

हनुमान भक्त कमलनाथ

मध्य प्रदेश में सत्ता वापसी के लिए बेताब कमलनाथ भले ही कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री पद के आधिकारिक दावेदार नहीं हैं, लेकिन उन्होंने सूबे में ये साफ कर दिया है कि इस बार कांग्रेस हिंदुत्व की पिच पर ही बीजेपी का मुकाबला करेगी. पिछले चुनावों में हिंदुत्व का हल्का रंग औढ़ने वाली कांग्रेस सत्ता में तो आ गई, लेकिन लंबा टिक नहीं पाई. फिर से चुनाव आए तो कांग्रेस ने मन बना लिया कि इस बार धर्म पताका थाम कर ही चुनावी मझतार पार किया जाएगा.

बस इसी मुहिम को अमली जामा पहना कर कमलनाथ ने अपने गढ़ छिंदवाड़ा में भगवान हनुमान की विशाल प्रतिमा के पास तीन दिनों की भव्य राम कथा का आयोजन करवाया. इस राम कथा के वाचक थे बागेश्वर धाम वाले पंडित धीरेंद्र शास्त्री, जो कि हिंदुत्व के पोस्टर बॉय बनते जा रहे हैं और जिनका इस्तेमाल अब तक बीजेपी ही कर रही थी. हिंदू राष्ट्र का दंभ भरने वाले धीरेंद्र शास्त्री के इस एजेंडे के बारे में जब कमलनाथ से पूछा गया तो उनका जवाब सीधा-सपाट और साफ था.

उन्होंने कहा कि इस देश में 82 फीसदी हिंदू हैं तो फिर ये कौन सा देश कहलाएगा. उनका इशारा साफ था कि 82 फीसदी हिंदू आबादी वाला ये देश हिंदू राष्ट्र ही तो है. इससे पहले वो सूबे में चुनावी आगाज के लिए प्रियंका गांधी के हाथों नर्मदा की आरती और महाकाल के सहारे बीजेपी पर हमला तो करवा ही चुके हैं. मंदिरों के दौरे हों या कांवड़ यात्रा, कमलनाथ की कांग्रेस हिंदू वोटर्स को अपने पाले में खींचने का एक मौका नहीं छोड़ रही.

बघेल के भांजे भगवान राम

मध्य प्रदेश के पड़ोस में छत्तीसगढ़ है. इस साल के आखिर में वहां भी राजनीतिक दल चुनावी नूरा-कुश्ती में उलझने वाले हैं. फिलहाल सत्ता में कांग्रेस है और मुख्यमंत्री हैं भूपेश बघेल. बघेल ने ही कांग्रेस को, राम को राम से जीतने की रणनीति सुझाई है. बीजेपी के रामलला को टक्कर देने के लिए बघेल ने भगवान राम को अपना भांजा बता दिया. संबंध की नींव में हैं माता कौशल्या, जो कि छत्तीसगढ़ से ही थीं. बीजेपी अपने हिंदुत्व को धार देने के लिए अयोध्या में भव्य राम मंदिर बना रही है तो बघेल जवाब में राम वन गमन पथ तैयार कर रहे हैं.

कौशल्या उत्सव हो या रामायण उत्सव, राम वन गमन पथ हो या राम से जुड़े मंदिरों का जीर्णोद्धार, खुद को भगवान राम से जोड़ने के लिए बघेल की सरकार करोड़ों खर्च करने से हाथ पीछे नहीं खींच रही. राज्य भर में भगवान राम की 7 विशाल प्रतिमाएं स्थापित की जा रही हैं. इनमें से एक की ऊंचाई 51 फीट तक है. राम को छत्तीसगढ़ का भांचा (भांजा) बनाया सो बनाया, सरकार माता कौशल्या का भव्य मंदिर भी बना रही है.

आदिपुरुष फिल्म में हिंदुओं की भावना आहत होने का मसला आया तो फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग छत्तीसगढ़ से भी उठी. वो भी खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की ओर से. मौजूदा सियासी समीकरण में ऐसी किसी मांग की उम्मीद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से रहती है न कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं से, लेकिन बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में अब बघेल भी अपने-अपने राम का राग गुनगुना रहे हैं और आगामी चुनाव में बीजेपी की रणनीति को उन्हीं पर इस्तेमाल करने की जुगत में हैं.

गहलोत के प्रभु गिरधर

कांग्रेस के इस हिंदुत्व में राम बघेल के, तो हनुमान कमलनाथ के हिस्से आए. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाथ आए कृष्ण. भक्तिकाल की मीरा बाई इसी राजस्थान की धरा पर जन्मीं थीं और उनकी कृष्ण भक्ति तो संसार भर में फैली. राजस्थान की सत्ता में काबिज अशोक गहलोत के आराध्य भी भगवान गोविंद ही हैं. ऐसे में वो हर वो काम कर रहे हैं, जिसका नाता धर्म या कहें हिंदू धर्म से जुड़ा रहा है. गहलोत ने श्रीकृष्ण बोर्ड का गठन करने से पहले अपनी गोविंद भक्ति की इच्छा जनता के सामने जाहिर की.

गहलोत ने कहा कि वो चाहते हैं कि काशी के विश्वनाथ और उज्जैन के महाकाल लोक की तरह जयपुर में गोविंद देव जी का भव्य मंदिर निर्माण हो. उन्होंने इस सपने को अमली जामा पहनाने के लिए प्रशासनिक कदम भी आगे बढ़ा दिए हैं. इसके अलावा गहलोत हिंदू संस्कृति को जगाने-बढ़ाने के लिए संस्कृति महाविद्यालय और वेद विद्यालय का गठन कर रहे हैं.

सरकार ने पुजारियों का पारिश्रमिक 3 से बढ़ाकर 5 हजार रुपए महीना कर दिया है. देवस्थान विभाग के तहत गहलोत सरकार 593 मंदिरों का जीर्णोद्धार करवा रही है. मंदिरों में हनुमान चालीसा के पाठ, रामनवमी पर अलग-अलग मंदिरों में अखंड रामायण और श्रावण मास में सहस्त्रधारा प्रोग्राम का आयोजन किया गया. बुजुर्गों को राजस्थान में देवदर्शन यात्रा करवाई जा रही है, साथ ही साथ भगवान राम के पुत्रों के नाम पर लव कुश वाटिकाएं भी हर जिले में बनाई जा रही हैं.

हिंदुत्व पर बदला-बदला रंग क्यों

इन कदमों से ये साफ झलकता है कि अब कांग्रेस पार्टी के नेता मंदिरों के फेरे काटने से कहीं ज्यादा आगे बढ़ गए हैं. कांग्रेस पार्टी अब हिंदुत्व के मुद्दे पर मुखर है. इस बदली रणनीति के पीछे कर्नाटक से मिला कॉन्फिडेंस तो है ही, साथ ही साथ 2014 से मिली वो सीख भी है.

2014 में मिली हार के बाद कांग्रेस पार्टी ने खुद को टटोला तो समझ आया कि देश से कांग्रेस के सिकुड़ते जनाधार और बीजेपी के उभार के पीछे एक प्रमुख कारण है. वो कारण था कांग्रेस की मुस्लिम पार्टी की बनती नई इमेज. इस इमेज से उसे भले ही मुस्लिम समुदाय का वोट मिल रहा था, लेकिन ये वोट इतना नहीं था कि जो कांग्रेस को फिर से सरकार में ला सके. 2019 के नतीजों ने इस आकलन पर लगी मुहर को और साफ कर दिया.

कांग्रेस पार्टी ने इसके बाद से हिंदुत्व पर अपने रुख में बदलाव की ठानी. पार्टी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सॉफ्ट और हार्ड हिंदुत्व के भेद को मिटाकर कड़ा रुख अपनाया. कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी को सफलता मिली. साथ ही साथ ये कॉन्फिडेंस भी मिला कि वो हिंदुत्व के मुद्दे पर भी बीजेपी को मात दे सकती है.