Karnataka High Court / मुस्लिम इलाके को पाकिस्तान बताया, हाई कोर्ट के जज की बढ़ी मुश्किलें! SC ने लिया संज्ञान

कर्नाटक हाई कोर्ट के जज बी श्रीशाह नंदा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। उन्होंने बेंगलुरु के मुस्लिम बहुल इलाके को "पाकिस्तान" बताया, जिसका वीडियो वायरल हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा कि इस मामले में दिशा-निर्देश जारी करेगा। अगली सुनवाई 25 सितंबर को होगी।

Vikrant Shekhawat : Sep 20, 2024, 11:19 AM
Karnataka High Court: कर्नाटक हाई कोर्ट के जज बी श्रीशाह नंदा की एक विवादास्पद टिप्पणी ने नई चर्चा छेड़ दी है। उन्होंने बेंगलुरु के मुस्लिम बहुल क्षेत्र गोरी पाल्या को पाकिस्तान बताया था, जिसके बाद यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ। अब इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है, जो इस मामले की गंभीरता को दर्शाता है।

जज की टिप्पणी का संदर्भ

बी श्रीशाह नंदा ने 28 अगस्त को एक सुनवाई के दौरान कहा था कि गोरी पाल्या में कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है। उन्होंने यह भी कहा, “यहां एक ऑटो में 10 लोग होते हैं और यहां कानून लागू नहीं होता। गोरी पाल्या से लेकर मैसूर फ्लाईओवर तक का इलाका पाकिस्तान में है, भारत में नहीं।” इस टिप्पणी ने कई लोगों की आपत्ति को जन्म दिया और इसके बाद यह सोशल मीडिया पर फैल गया।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इस टिप्पणी पर संज्ञान लेते हुए कहा कि मीडिया रिपोर्ट्स ने इस मामले का ध्यान आकर्षित किया है। उन्होंने कहा कि अदालत इस मामले में दिशा निर्देश जारी करेगी और कर्नाटक हाई कोर्ट के जज से रिपोर्ट मांगी जाएगी।

सीजेआई ने जज से अनुरोध किया है कि वे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से दिशा निर्देश लेकर रिपोर्ट प्रस्तुत करें। इस प्रक्रिया के लिए उन्हें दो दिन का समय दिया गया है, और अगली सुनवाई 25 सितंबर को होगी।

संवैधानिक और सामाजिक प्रभाव

इस मामले ने संवैधानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से कई सवाल उठाए हैं। जज द्वारा किए गए इस प्रकार के बयानों से न केवल न्यायिक प्रणाली की छवि प्रभावित होती है, बल्कि यह सामाजिक सौहार्द और सहिष्णुता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। ऐसी टिप्पणियों का प्रभाव समुदायों के बीच तनाव पैदा कर सकता है, जो एक लोकतांत्रिक समाज के लिए हानिकारक है।

निष्कर्ष

कर्नाटक हाई कोर्ट के जज की विवादास्पद टिप्पणी ने न केवल न्यायपालिका के भीतर बहस को जन्म दिया है, बल्कि इसे सामाजिक संवाद का हिस्सा भी बनाया है। सुप्रीम कोर्ट का स्वत: संज्ञान लेना इस बात का संकेत है कि अदालतें अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से ले रही हैं। अब देखना यह है कि 25 सितंबर को होने वाली सुनवाई में क्या निष्कर्ष निकलता है और क्या जज अपनी टिप्पणी के लिए खेद व्यक्त करते हैं या नहीं। यह मामला निश्चित रूप से भारत की न्यायिक प्रणाली की परंपराओं और मूल्यों को प्रभावित करेगा।