उत्तर प्रदेश / यूपी की शादीशुदा महिला और उसके लिव-इन पार्टनर को हाईकोर्ट ने सुरक्षा देने से किया इनकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी की एक शादीशुदा महिला और उसके लिव-इन पार्टनर को सुरक्षा देने से इनकार करते हुए ₹5,000 का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने इसे हिंदू मैरिज ऐक्ट के प्रावधानों के खिलाफ बताया। कपल ने महिला के पति और परिजनों को यह निर्देश देने की मांग की थी कि वे उनके शांतिपूर्ण लिव-इन रिलेशनशिप में हस्तक्षेप न करें।

Vikrant Shekhawat : Jun 18, 2021, 12:41 PM
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति से अलग होकर दूसरे व्यक्ति के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही महिला को संरक्षण का आदेश देने से इनकार कर दिया है। साथ ही याचिका खारिज करते हुए उस पर पांच हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया है। यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ. केजे ठाकर एवं न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने अलीगढ़ की एक महिला की याचिका पर दिया है। खंडपीठ ने कहा कि क्या हम ऐसे लोगों को संरक्षण देने का आदेश दे सकते हैं जिन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत कार्य किया है। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 सभी नागरिकों को जीवन जीने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है लेकिन यह स्वतंत्रता कानून के दायरे में हो, तभी लागू होगी। कोर्ट ने हर्जाने की रकम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराने का निर्देश दिया है।

याचिका में कहा गया था कि याची अपनी मर्जी से पति को छोड़कर दूसरे व्यक्ति के साथ रह रही है। पति और उसके परिवार वाले उसके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप कर रहे हैं। उन्हें ऐसा करने से रोका जाए और याची को सुरक्षा दी जाए। कोर्ट ने कहा कि याची वैधानिक रूप से विवाहित महिला है। वह जिस किसी भी कारण से अपने पति से अलग होकर दूसरे व्यक्ति के साथ रह रही है, क्या ऐसे में उसे संविधान के अनुच्छेद 21 का लाभ दिया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि आरोप है कि महिला के पति ने अप्राकृतिक अपराध किया है (आईपीसी की धारा 377 के तहत) लेकिन महिला ने इसके खिलाफ कभी प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई।