- असम सरकार के मुताबिक, हर साल 3 से 4 बार अलग-अलग हिस्सों में बाढ़ आती ही है
- असम पूरी तरह से नदी घाटी में बसा है, यहां का 40% हिस्सा बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है
चाय बागानों की खुशबू से महकने वाला असम इस साल भी पानी में डूब रहा है। यहां के 33 में से 30 जिले बाढ़ के पानी में डूबे हुए हैं। गृह मंत्रालय पर 15 जुलाई तक का डेटा मौजूद है। इसके मुताबिक, 22 मई से लेकर 15 जुलाई के बीच यहां के 4 हजार 766 गांव बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
48.07 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। 1.28 लाख से ज्यादा लोग अपना घर छोड़कर रिलीफ कैम्प में रहने को मजबूर हैं। जबकि, 92 लोगों की जान भी जा चुकी है।
असम को हर साल बाढ़ से जूझना ही पड़ता है। आंकड़ों की मानें तो पहले ऐसा होता था कि बाढ़ आती भी थी, तो 4-5 साल में एकाध बार। लेकिन, पिछले कुछ सालों से बाढ़ हर साल आने लगी है।
असम में हर साल बाढ़ क्यों आती है? इसे समझने के लिए पहले यहां की जियोग्राफी समझना जरूरी है।
पूरा असम नदी घाटी पर ही बसा है
असम देश का ऐसा राज्य है जो पूरी तरह से नदी घाटी पर ही बसा हुआ है। इसका कुल एरिया 78 हजार 438 वर्ग किमी का है। जिसमें से 56 हजार 194 वर्ग किमी ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में है। और बाकी का बचा 22 हजार 244 वर्ग किमी का हिस्सा बराक नदी की घाटी में है।
इतना ही नहीं राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के मुताबिक, असम का कुल 31 हजार 500 वर्ग किमी का हिस्सा बाढ़ प्रभावित है। यानी, असम का जितना एरिया है, उसका करीब 40% हिस्सा बाढ़ प्रभावित है। जबकि, देशभर का 10.2% हिस्सा बाढ़ प्रभावित है।
ब्रह्मपुत्र नदी का कवर एरिया बढ़ रहा
असम में ब्रह्मपुत्र और बराक, दो प्रमुख नदियां हैं। इन दो के अलावा इनकी 48 सहायक नदियां और कई छोटी-छोटी नदियां हैं। इस वजह से यहां बाढ़ का खतरा ज्यादा है।
अकेली ब्रह्मपुत्र नदी का कवर एरिया भी लगातार बढ़ रहा है। असम सरकार ने 1912 से 1928 के बीच सर्वे किया था, तब ब्रह्मपुत्र नदी राज्य के 3 हजार 870 वर्ग किमी के एरिया को कवर कर रही थी। आखिरी बार 2006 में जब सर्वे हुआ, तो ब्रह्मपुत्र नदी का कवर एरिया बढ़कर 6 हजार 80 वर्ग किमी हो गया।
इसके अलावा नदी की औसतन चौड़ाई 5.46 किमी है। लेकिन, कुछ-कुछ जगहों पर इसकी चौड़ाई 15 किमी या उससे भी ज्यादा है।
जितना बड़ा गोवा, उतनी खेती की जमीन तो बाढ़ से बर्बाद हो गई
असम सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की सितंबर 2015 में एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि 1954 से लेकर 2015 के बीच बाढ़ की वजह से असम में 3 हजार 800 वर्ग किमी की खेती की जमीन बर्बाद हो गई। मतलब 61 साल में बाढ़ के कारण असम में जितनी खेती की जमीन बर्बाद हुई है, वो गोवा के एरिया से भी ज्यादा है। गोवा का एरिया 3 हजार 702 वर्ग किमी है।
खेती की जमीन का नुकसान होना सीधा-सीधा यहां के लोगों की रोजी-रोटी पर भी असर डालता है। सरकार के आंकड़े बताते हैं कि राज्य की 75% से ज्यादा की आबादी खेती-किसानी या खेती-मजदूरी पर निर्भर है।
न सिर्फ खेती की जमीन बल्कि बाढ़ की वजह से लोगों को अपने घर तक छोड़ने पड़ रहे हैं। कई सैकड़ों गांव तो तबाह ही हो गए। 2010 से 2015 के बीच 880 गांव पूरी तरह से तबाह हो गए थे। इन 5 सालों के दौरान 36 हजार 981 परिवारों के घर भी तबाह हो गए थे।
हर साल 200 करोड़ रुपए का नुकसान भी हो रहा
असम सरकार के 2017-18 आर्थिक सर्वे के मुताबिक 1954,1962, 1972, 1977, 1984, 1988, 1998, 2002 और 2004 में राज्य ने भयंकर बाढ़ का सामना किया है। हालांकि, उसके बाद भी हर साल लगभग तीन से चार बार असम में बाढ़ आती ही है।
आंकड़े बताते हैं कि हर साल बाढ़ की वजह से असम को औसतन 200 करोड़ रुपए का नुकसान होता है। 1998 की बाढ़ में राज्य को 500 करोड़ और 2004 में 771 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।
असम में हर साल बाढ़ क्यों? 4 कारण
1. रहने के लिए कम जगहः नदी घाटी में बसे होने की वजह से यहां रहने की जगह बहुत ही कम है। यहां चाय के बागान हैं, जो ऊंचे इलाकों पर हैं। निचले इलाकों में भी कुछ हिस्से में नदी है तो कुछ में जंगल है। यहां थोड़ा ही हिस्सा रहने लायक बचता है। उसमें भी लोग खेती-किसानी करते हैं।
2. सामान्य से ज्यादा बारिशः ब्रह्मपुत्र बेसिन की वजह से हर साल यहां सामान्य से 248 सेमी से 635 सेमी ज्यादा बारिश होती है। मानसून सीजन में यहां हर घंटे 40 मिमी से भी ज्यादा बारिश होती है। इतना ही नहीं, कई इलाकों में तो एक ही दिन में 500 मिमी से ज्यादा बारिश दर्ज की गई है।
3. निचले इलाके में पानी भरने सेः असम पहाड़ी इलाका है। इस कारण जब भी पहाड़ों पर बारिश होती है, तो वो बहकर ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों में आ जाता है। इससे पानी नदियों के किनारे बहने लगता है और बाढ़ का कारण बनता है।
4. कम जगह में ज्यादा आबादीः 1940-41 में असम में कई जिलों में ब्रह्मपुत्र घाटी में हर एक किमी के दायरे में 9 से 29 लोग रहते थे। लेकिन, अब यहां हर किमी में 200 लोग रहने लगे हैं। इससे घाटी में हर साल बाढ़ की समस्या बढ़ गई है।