Vikrant Shekhawat : May 22, 2021, 06:25 AM
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और साइंटिस्ट एवी लोएब ने हाल ही में दुनिया भर के वैज्ञानिकों से पूछा कि आखिरकार दुनिया कब तक रहेगी? इंसानों की कौम कब तक जीवित रहेगी? धरती के खत्म होने या इंसानों के खत्म होने की तारीख क्या होगी? क्योंकि उन्हें लगता है साइंटिस्ट सही दिशा में काम नहीं कर रहे हैं। एवी लोएब ने वैज्ञानिकों से अपील की है कि वो जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए काम करें। वैक्सीन बनाएं। सतत ऊर्जा के विकल्प खोजें। सबको खाना मिले इसका तरीका निकाले। अंतरिक्ष में बड़े बेस स्टेशन बनाने की तैयारी कर लें। साथ ही एलियंस से संपर्क करने की कोशिश करें। क्योंकि जिस दिन हम तकनीकी रूप से पूरी तरह मैच्योर हो जाएंगे, उस दिन से इंसानों की पूरी पीढ़ी और धरती नष्ट होने के लिए तैयार हो जाएगी। उस समय यही सारे खोज और तकनीकी विकास ही कुछ इंसानों को बचा पाएंगी।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) के पूर्व छात्र सम्मेलन में संबोधित करते हुए एवी लोएब (Avi Loeb) ने कहा कि सबसे ज्यादा जरूरी है इंसानों की उम्र को बढ़ाना। क्योंकि मुझसे पूछा जा चुका है कि हमारी तकनीकी सभ्यता कितने वर्षों तक जीवित रहेगी। ऐसे में मेरा जवाब है कि हम लोग अपने जीवन के मध्य हिस्से में है। हमारी तकनीकी सभ्यता की शुरुआत सैकड़ों साल पहले हुई थी। तब यह बच्चा था। अभी हम इसके किशोरावस्था को देख रहे हैं। यह लाखों साल तक बची रह सकती है। हम फिलहाल अपने टेक्नोलॉजिकल जीवन का युवापन देख रहे हैं। यह कुछ सदियों तक जीवित रह सकता है लेकिन इससे ज्यादा नहीं। यह एक गणितीय गणना के आधार पर एवी लोएब ने बताया। लेकिन क्या यह भविष्य बदला जा सकता है? एवी लोएब ने कहा कि जिस तरह से धरती की हालत इंसानों की वजह से खराब हो रही है, उससे लगता है कि इंसान ज्यादा दिन धरती पर रह नहीं पाएंगे। कुछ सदियों में धरती की हालत इतनी खराब हो जाएगी कि लोगों को स्पेस में जाकर रहना पड़ेगा। सबसे बड़ा खतरा तकनीकी आपदा (Technological Catastrophe) का है। ये तकनीकी आपदा जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से जुड़ी होगी। इसके अलावा दो बड़े खतरे हैं इंसानों द्वारा विकसित महामारी और देशों के बीच युद्ध। इन सबको लेकर सकारात्मक रूप से काम नहीं किया गया तो इंसानों को धरती खुद खत्म कर देगी। या फिर वह अपने आप को नष्ट कर देगी। ये भी हो सकता है कि इंसानी गतिविधियों की वजह से धरती पर इतना अत्याचार हो कि वह खुद ही नष्ट होने लगे।एवी लोएब ने कहा कि इंसान उन खतरों से खुद को नहीं बचा पाते जिससे वो पहले कभी न टकराए हों। जैसे जलवायु परिवर्तन। इसकी वजह से लगातार अलग-अलग देशों में मौसम परिवर्तन हो रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है। सैकड़ों सालों से सोए हुए ज्वालामुखी फिर से आग उगलने लगे हैं। जंगल आग से खाक हो रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया की आग कैसे कोई भूल सकता है। करोड़ों जीव मारे गए उसमेंफिजिक्स का साधारण मॉडल कहता है कि हम सब एलिमेंट्री पार्टिकल्स यानी मूल तत्वों से बने हैं। इनमें अलग से कुछ नहीं जोड़ा गया है। इसलिए प्रकृति के नियमों के आधार पर हमें मौलिक स्तर पर इनसे छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि सभी मूल तत्व फिजिक्स के नियमों के तहत आपस में संबंध बनाते या बिगाड़ते हैं। अगर इनसे छेड़छाड़ की आजादी मिलती है तो इससे नुकसान ही होगा। एवी ने कहा कि इंसान और उनकी जटिल शारीरिक संरचना निजी तौर पर किसी भी आपदा की भविष्यवाणी नहीं कर सकती। क्योंकि यही हमारे मानव सभ्यता की किस्मत है। इसे इतिहास में इसी तरह से गढ़ा गया है। इंसान की सभ्यता कब तक रहेगी ये भविष्य में होने वाले तकनीकी विकास पर निर्भर करता है। वैसे भी इंसान खुद ही अपना शिकार कर डालेंगे। क्योंकि सूरज से पहले भी कई ग्रह बने हैं। हो सकता है कि कई ग्रह ऐसे हो जहां पर जीव रहते हों। उनके पास भी तकनीकी सभ्यता हो। ये भी हो सकता है कि वो तकनीकी सभ्यता को अपनी पारंपरिक और प्राचीन सभ्यता के साथ मिलाकर चल रहे हों। ताकि तकनीकी सभ्यता के चक्कर में खुद की पहचान न खो जाए। जब रेडियोएक्टिव एटम धीरे-धीरे खत्म हो सकता है तो अन्य जीवन देने वाले एटम क्यों नहीं खत्म हो सकते। इंसान को फिलहाल अंतरिक्ष की प्राचीनता की स्टडी करनी चाहिए। उन्हें मृत तकनीकी सभ्यताओं की खोज करनी चाहिए। यह पता करना चाहिए कि ये सभ्यताएं कैसे खत्म हुईं। कहीं ऐसी ही हालत इंसानों के साथ न हो। लेकिन इंसान हमेशा से अपने जीने का रास्ता निकाल लेता है। इसलिए हो सकता है कि भविष्य में इंसान अंतरिक्ष में जाकर खुद को बचाने में कामयाब हो जाए। लेकिन कठिनाइयां वहां भी कम नहीं है। आखिरकार स्पेस स्टेशन बनाएंगे तो किसी ने किसी ग्रह के आसपास ही। जिसकी कोई गुरुत्वाकर्षण शक्ति हो। बिना ग्रैविटी वाले ग्रह के स्पेस स्टेशन का मतलब नहीं रहता। या फिर आप अंतरिक्ष में स्टेशन बनाकर उसे अनंत यात्रा के लिए छोड़ दीजिए। यानी धरती खत्म होगी तो उसकी ग्रैविटी भी खत्म हो जाएगी, ऐसे में इंसान इसकी ग्रैविटी का उपयोग करके अंतरिक्ष में लटके नहीं रह पाएंगे। एवी लोएब ने कहा कि मान लीजिए इंसान धरती को छोड़कर मंगल ग्रह पर जाने की बात करता है। हो सकता है अगले 6-7 दशकों में पहुंच कर वहां अपना घर भी बना ले। लेकिन कितने लोग मंगल पर जा पाएंगे। क्या इतना पैसा वो खर्च कर पाएंगे। अगर कर भी लिया तो मंगल तक जाने के दौरान कॉस्मिक किरणों, ऊर्जावान सौर कणों, अल्ट्रावायलेट किरणों, सांस लेने लायक वायुमंडल की कमी और कम गुरुत्वाकर्षण इंसानों को ज्यादा दिन जीने देगी। मान लेते हैं इन दिक्कतों का सामना करके कुछ इंसान मंगल पर रहने भी लगे तो उन्हें फिर से अपनी दुनिया बसाने और धरती से और लोगों को ले जाने में कई दशक और लग जाएंगे। हालांकि मंगल पर जाकर रहने से एक बड़ा फायदा ये होगा कि हम वहां से अन्य रहने योग्य ग्रहों की खोज कर पाएंगे। यानी टेराफॉर्म्ड प्लैनेट्स (Terraformed Planets) खोजे जा सकेंगे। हो सकता है कि लोग ये सवाल भी पूछे कि अंतरिक्ष मिशन पर करोड़ों रुपयों का खर्च क्यों किया जाए? उन पैसों का उपयोग धरती पर रह रहे लोगों की भलाई में किया जाए। एवी लोएब ने इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि अपने छोटे से कैंपस में रहकर खत्म होने से बेहतर है कि आप दुनिया के अलग-अलग रहवासी इलाकों की खोज करें। धरती पर भी और अंतरिक्ष में भी। ऐसे सवाल हर तकनीकी विकास से पहले किए जाते हैं। सड़कों से घोड़ों की संख्या तब कम हुई जब कारें बनीं। सेलफोन आया तो उससे पहले सवाल उठाया गया कि इतना बड़ा ग्रिड नेटवर्क कैसे बनेगा। लेकिन ये सबकुछ हुआ। चांद पर इंसान पहुंचा लेकिन उससे पहले सवाल उठा था ये संभव नहीं है। कैसे करेंगे? लेकिन किया न। इंसान चाहे तो खुद को धरती को बचाने के तरीके निकाल सकता है। सवाल पहले भी उठते थे। आगे भी उठेंगे। सवाल उठाने वाले भी नई तकनीक का फायदा उठाते हैं। वो भी आगे चलकर खुद को अपडेट रखने के लिए नई तकनीक का सहारा लेते हैं। एवी लोएब ने कहा हमारी पहली जरूरत है स्थानीय समस्याओं को खत्म करना। लेकिन साथ ही हमें नए आयाम खोजने भी होंगे। नई तकनीक विकसित करनी होगी। जो ह्यूमैनिटी को बचा सके। इंसानों को आपसी मतभेद भुलाकर धरती को और खुद को बचाने के लिए काम करना होगा। इससे कुछ सदी जीने के लिए और मिल जाएगी। नहीं तो समय से पहले इंसान और धरती दोनों खत्म हो जाएंगे। हमें स्थानीय के साथ-साथ वैश्विक समस्याओं को भी निपटाना होगा। क्योंकि ऑस्कर वाइल्ड ने कहा था कि हम सभी गटर में रह रहे हैं। लेकिन हम में से कुछ सितारों की ओर भी देखते हैं। इसलिए हम में से ज्यादा लोगों को सितारों की ओर देखना होगा। हमें उसके लिए प्रयास करना होगा। ताकि इंसानियत और धरती दोनों को बचाया जा सके। अगर नहीं बचा पाएंगे तो दूसरे ग्रह पर जाने की व्यवस्था कर लें। क्योंकि जिस हिसाब से इंसान अपने काम कर रहा है, उससे अनुसार धरती बदला लेगी
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) के पूर्व छात्र सम्मेलन में संबोधित करते हुए एवी लोएब (Avi Loeb) ने कहा कि सबसे ज्यादा जरूरी है इंसानों की उम्र को बढ़ाना। क्योंकि मुझसे पूछा जा चुका है कि हमारी तकनीकी सभ्यता कितने वर्षों तक जीवित रहेगी। ऐसे में मेरा जवाब है कि हम लोग अपने जीवन के मध्य हिस्से में है। हमारी तकनीकी सभ्यता की शुरुआत सैकड़ों साल पहले हुई थी। तब यह बच्चा था। अभी हम इसके किशोरावस्था को देख रहे हैं। यह लाखों साल तक बची रह सकती है। हम फिलहाल अपने टेक्नोलॉजिकल जीवन का युवापन देख रहे हैं। यह कुछ सदियों तक जीवित रह सकता है लेकिन इससे ज्यादा नहीं। यह एक गणितीय गणना के आधार पर एवी लोएब ने बताया। लेकिन क्या यह भविष्य बदला जा सकता है? एवी लोएब ने कहा कि जिस तरह से धरती की हालत इंसानों की वजह से खराब हो रही है, उससे लगता है कि इंसान ज्यादा दिन धरती पर रह नहीं पाएंगे। कुछ सदियों में धरती की हालत इतनी खराब हो जाएगी कि लोगों को स्पेस में जाकर रहना पड़ेगा। सबसे बड़ा खतरा तकनीकी आपदा (Technological Catastrophe) का है। ये तकनीकी आपदा जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से जुड़ी होगी। इसके अलावा दो बड़े खतरे हैं इंसानों द्वारा विकसित महामारी और देशों के बीच युद्ध। इन सबको लेकर सकारात्मक रूप से काम नहीं किया गया तो इंसानों को धरती खुद खत्म कर देगी। या फिर वह अपने आप को नष्ट कर देगी। ये भी हो सकता है कि इंसानी गतिविधियों की वजह से धरती पर इतना अत्याचार हो कि वह खुद ही नष्ट होने लगे।एवी लोएब ने कहा कि इंसान उन खतरों से खुद को नहीं बचा पाते जिससे वो पहले कभी न टकराए हों। जैसे जलवायु परिवर्तन। इसकी वजह से लगातार अलग-अलग देशों में मौसम परिवर्तन हो रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है। सैकड़ों सालों से सोए हुए ज्वालामुखी फिर से आग उगलने लगे हैं। जंगल आग से खाक हो रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया की आग कैसे कोई भूल सकता है। करोड़ों जीव मारे गए उसमेंफिजिक्स का साधारण मॉडल कहता है कि हम सब एलिमेंट्री पार्टिकल्स यानी मूल तत्वों से बने हैं। इनमें अलग से कुछ नहीं जोड़ा गया है। इसलिए प्रकृति के नियमों के आधार पर हमें मौलिक स्तर पर इनसे छेड़छाड़ करने का कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि सभी मूल तत्व फिजिक्स के नियमों के तहत आपस में संबंध बनाते या बिगाड़ते हैं। अगर इनसे छेड़छाड़ की आजादी मिलती है तो इससे नुकसान ही होगा। एवी ने कहा कि इंसान और उनकी जटिल शारीरिक संरचना निजी तौर पर किसी भी आपदा की भविष्यवाणी नहीं कर सकती। क्योंकि यही हमारे मानव सभ्यता की किस्मत है। इसे इतिहास में इसी तरह से गढ़ा गया है। इंसान की सभ्यता कब तक रहेगी ये भविष्य में होने वाले तकनीकी विकास पर निर्भर करता है। वैसे भी इंसान खुद ही अपना शिकार कर डालेंगे। क्योंकि सूरज से पहले भी कई ग्रह बने हैं। हो सकता है कि कई ग्रह ऐसे हो जहां पर जीव रहते हों। उनके पास भी तकनीकी सभ्यता हो। ये भी हो सकता है कि वो तकनीकी सभ्यता को अपनी पारंपरिक और प्राचीन सभ्यता के साथ मिलाकर चल रहे हों। ताकि तकनीकी सभ्यता के चक्कर में खुद की पहचान न खो जाए। जब रेडियोएक्टिव एटम धीरे-धीरे खत्म हो सकता है तो अन्य जीवन देने वाले एटम क्यों नहीं खत्म हो सकते। इंसान को फिलहाल अंतरिक्ष की प्राचीनता की स्टडी करनी चाहिए। उन्हें मृत तकनीकी सभ्यताओं की खोज करनी चाहिए। यह पता करना चाहिए कि ये सभ्यताएं कैसे खत्म हुईं। कहीं ऐसी ही हालत इंसानों के साथ न हो। लेकिन इंसान हमेशा से अपने जीने का रास्ता निकाल लेता है। इसलिए हो सकता है कि भविष्य में इंसान अंतरिक्ष में जाकर खुद को बचाने में कामयाब हो जाए। लेकिन कठिनाइयां वहां भी कम नहीं है। आखिरकार स्पेस स्टेशन बनाएंगे तो किसी ने किसी ग्रह के आसपास ही। जिसकी कोई गुरुत्वाकर्षण शक्ति हो। बिना ग्रैविटी वाले ग्रह के स्पेस स्टेशन का मतलब नहीं रहता। या फिर आप अंतरिक्ष में स्टेशन बनाकर उसे अनंत यात्रा के लिए छोड़ दीजिए। यानी धरती खत्म होगी तो उसकी ग्रैविटी भी खत्म हो जाएगी, ऐसे में इंसान इसकी ग्रैविटी का उपयोग करके अंतरिक्ष में लटके नहीं रह पाएंगे। एवी लोएब ने कहा कि मान लीजिए इंसान धरती को छोड़कर मंगल ग्रह पर जाने की बात करता है। हो सकता है अगले 6-7 दशकों में पहुंच कर वहां अपना घर भी बना ले। लेकिन कितने लोग मंगल पर जा पाएंगे। क्या इतना पैसा वो खर्च कर पाएंगे। अगर कर भी लिया तो मंगल तक जाने के दौरान कॉस्मिक किरणों, ऊर्जावान सौर कणों, अल्ट्रावायलेट किरणों, सांस लेने लायक वायुमंडल की कमी और कम गुरुत्वाकर्षण इंसानों को ज्यादा दिन जीने देगी। मान लेते हैं इन दिक्कतों का सामना करके कुछ इंसान मंगल पर रहने भी लगे तो उन्हें फिर से अपनी दुनिया बसाने और धरती से और लोगों को ले जाने में कई दशक और लग जाएंगे। हालांकि मंगल पर जाकर रहने से एक बड़ा फायदा ये होगा कि हम वहां से अन्य रहने योग्य ग्रहों की खोज कर पाएंगे। यानी टेराफॉर्म्ड प्लैनेट्स (Terraformed Planets) खोजे जा सकेंगे। हो सकता है कि लोग ये सवाल भी पूछे कि अंतरिक्ष मिशन पर करोड़ों रुपयों का खर्च क्यों किया जाए? उन पैसों का उपयोग धरती पर रह रहे लोगों की भलाई में किया जाए। एवी लोएब ने इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि अपने छोटे से कैंपस में रहकर खत्म होने से बेहतर है कि आप दुनिया के अलग-अलग रहवासी इलाकों की खोज करें। धरती पर भी और अंतरिक्ष में भी। ऐसे सवाल हर तकनीकी विकास से पहले किए जाते हैं। सड़कों से घोड़ों की संख्या तब कम हुई जब कारें बनीं। सेलफोन आया तो उससे पहले सवाल उठाया गया कि इतना बड़ा ग्रिड नेटवर्क कैसे बनेगा। लेकिन ये सबकुछ हुआ। चांद पर इंसान पहुंचा लेकिन उससे पहले सवाल उठा था ये संभव नहीं है। कैसे करेंगे? लेकिन किया न। इंसान चाहे तो खुद को धरती को बचाने के तरीके निकाल सकता है। सवाल पहले भी उठते थे। आगे भी उठेंगे। सवाल उठाने वाले भी नई तकनीक का फायदा उठाते हैं। वो भी आगे चलकर खुद को अपडेट रखने के लिए नई तकनीक का सहारा लेते हैं। एवी लोएब ने कहा हमारी पहली जरूरत है स्थानीय समस्याओं को खत्म करना। लेकिन साथ ही हमें नए आयाम खोजने भी होंगे। नई तकनीक विकसित करनी होगी। जो ह्यूमैनिटी को बचा सके। इंसानों को आपसी मतभेद भुलाकर धरती को और खुद को बचाने के लिए काम करना होगा। इससे कुछ सदी जीने के लिए और मिल जाएगी। नहीं तो समय से पहले इंसान और धरती दोनों खत्म हो जाएंगे। हमें स्थानीय के साथ-साथ वैश्विक समस्याओं को भी निपटाना होगा। क्योंकि ऑस्कर वाइल्ड ने कहा था कि हम सभी गटर में रह रहे हैं। लेकिन हम में से कुछ सितारों की ओर भी देखते हैं। इसलिए हम में से ज्यादा लोगों को सितारों की ओर देखना होगा। हमें उसके लिए प्रयास करना होगा। ताकि इंसानियत और धरती दोनों को बचाया जा सके। अगर नहीं बचा पाएंगे तो दूसरे ग्रह पर जाने की व्यवस्था कर लें। क्योंकि जिस हिसाब से इंसान अपने काम कर रहा है, उससे अनुसार धरती बदला लेगी