हम भारतीय लोग सड़क, बाजार, अस्पताल हर जगह भीड़ से होकर गुजरते हैं। ये हमें भले ही जनसंख्या के बल पर मजबूत होने का अहसास देती है, लेकिन अब यही भीड़ कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बड़ी चुनौती बन गई है। ओमिक्रॉन को अब तक का सबसे तेजी से फैलने वाला वैरिएंट माना जा रहा है।ऐसे में आपके शहर में एक किलोमीटर के दायरे में 7 हजार लोग रहते हैं तो वहां कोरोना किसी नदी के तेज बहाव की तरह फैल सकता है। इसकी मुख्य वजह यह है कि कोरोना भीड़ को जरिया बनाकर लोगों का शिकार करता है।इसके खिलाफ लड़ाई में सोशल डिस्टेंसिंग सबसे बड़ा हथियार है। सभी बड़े शहरों में कर्फ्यू के जरिए भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश हो रही है, लेकिन क्या ये कोशिश कामयाब साबित हो रही है?6 बड़े और भीड़-भाड़ वाले शहरों में संक्रमण की रफ्तार से पूरा मामला समझें
- अमेरिकी इंजीनियर जोन फ्रुअन की रिसर्च के मुताबिक भीड़ सही समय पर नियंत्रित न हो तो यह किसी आपदा की वजह बन सकती है। इस रिसर्च की मुख्य बातों को समझते हैं-
- किसी शहर में एक किलोमीटर के दायरे में 7 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं तो यह माना जाना चाहिए कि वहां भीड़ ज्यादा जमा हो गई है।
- ये भीड़ बहते हुए पानी की तेज रफ्तार की तरह होती है। यही वजह है कोरोना के फैलने के लिए यह भीड़ बेहतर माध्यम साबित होती है।
- इस बात को इससे भी समझा जा सकता है कि दूसरी लहर के दौरान महज 6 भीड़-भाड़ वाले शहर (अहमदाबाद , बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, कोलकता और मुंबई) में कोरोना के 16% केस सामने आए थे।
- दूसरी लहर में भारत में कोरोना से होने वाली हर 5 लोगों में से एक की मौत इन्हीं शहरों में हो रही थी।
- अब तीसरी लहर में भी भीड़ की वजह से कोरोना के मामले इन शहरों में तेजी से बढ़ रहे हैं। इस बात को हम आगे इसी आर्टिकल में समझते हैं।
- यही भीड़ कोरोना संक्रमण को गांव की ओर लेकर गई। रेलवे द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक अप्रैल 2021 में 6 लाख लोग महाराष्ट्र छोड़कर वापस अपने घरों की और गए थे। इनमें से 3 लाख लोग केवल मुंबई से थे।
- अब एक बार फिर से उसी तरह दोबारा से होने का डर सताने लगा है। मुंबई, दिल्ली समेत बड़े शहरों से लॉकडाउन के डर से लाचार मजदूरों की भीड़ फिर अपने घरों की ओर चल पड़ी है।
- इससे एक बार फिर से न सिर्फ अर्थव्यस्था बल्कि महामारी के गांव तक पहुंचने का डर सताने लगा है।
- शहर के मॉल और रेस्तरां को आधी कैपेसिटी के साथ चलाने के निर्देश जारी हुए तो बाहर भीड़ इतनी हुई कि धक्का-मुक्की की नौबत आ गई। ऐसे में पाबंदियों का कोई मतलब ही नहीं रहा।
- दिल्ली में जब मैट्रो और बसों को आधी कैपेसिटी से चलाने का फैसला हुआ तो स्टेशनों और बस स्टैंड पर भारी भीड़ जमा हो गई। इसे संभालने के लिए वहां उचित संख्या में सुरक्षाकर्मी नहीं दिखे।
- 2013 में संयुक्त राष्ट्र ने 71 देशों की स्टडी की थी। इसमें सामने आया है कि भारत में एक लाख लोगों पर केवल 138 पुलिसकर्मी हैं। जबकि भीड़ को संभालने के लिए एक लाख लोगों पर 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए। न केवल यूएन बल्कि राष्ट्रीय पुलिस ब्यूरो भी एक लाख लोगों पर 176 पुलिसकर्मी होने की सिफारिश करता है।