Politics / महाराष्ट्र-बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगा तो राज्य में क्या बदल जाएगा? जानें

कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ रेप और हत्या के बाद देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं। भाजपा नेता, पश्चिम बंगाल की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस्तीफे और राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहे हैं। वहीं, महाराष्ट्र में चुनावों में देरी के कारण भी राष्ट्रपति शासन की संभावना है।

Vikrant Shekhawat : Aug 20, 2024, 09:20 AM
Politics: कोलकाता के सरकारी अस्पताल में एक महिला डॉक्टर के साथ हुए रेप और हत्या के मामले ने देशभर में विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया है। इस घटना ने पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर कानून-व्यवस्था बिगड़ने का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे और राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहे हैं। इसी बीच, महाराष्ट्र में भी चुनावों में देरी के चलते राष्ट्रपति शासन लगाने की संभावना बढ़ रही है।

कब लगता है राष्ट्रपति शासन?

राष्ट्रपति शासन तब लगता है जब:

  • राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम करने में विफल रहती है
  • राज्य में कानून व्यवस्था बिगड़ जाती है
  • किसी भी दल के पास बहुमत न हो और गठबंधन की सरकार भी न चल पा रही हो
  • राष्ट्रपति शासन लगने पर क्या बदल जाता है?
राष्ट्रपति शासन में:

  • राज्य के निवासियों के मौलिक अधिकारों को खारिज नहीं किया जा सकता
  • राष्ट्रपति मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रीपरिषद् को भंग कर देता है
  • राज्य सरकार के कामकाज और शक्तियां राष्ट्रपति के पास आ जाती हैं
  • राष्ट्रपति चाहे तो यह भी घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का इस्तेमाल संसद करेगी
कितने दिनों के लिए लग सकता है राष्ट्रपति शासन?

राष्ट्रपति शासन को 2 महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अप्रूव किया जाना जरूरी है। इसके बाद इसे 6-6 महीने करके अधिकतम 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है।

भाजपा की प्रतिक्रिया

भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता शाजिया इल्मी ने इस संदर्भ में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल में बिगड़ती कानून-व्यवस्था को देखते हुए उचित अथॉरिटी को राष्ट्रपति शासन लगाने पर विचार करना चाहिए। महाराष्ट्र के मामले में भी, जहां विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर 2024 को समाप्त हो रहा है, राष्ट्रपति शासन की संभावना है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि मतदान और गिनती की प्रक्रिया कुछ हफ्तों में पूरी कर ली जाएगी, और राष्ट्रपति शासन लगाने में कुछ भी गलत नहीं है।

राष्ट्रपति शासन की शर्तें

राष्ट्रपति शासन लगाने की प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 355 और अनुच्छेद 356 में दी गई है। अनुच्छेद 355 के अनुसार, केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाए और यह सुनिश्चित करे कि राज्य सरकारें संविधान के अनुसार चल रही हैं। अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल होने पर राज्य सरकार की शक्तियों को अपने अधीन ले सकता है।

जब राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम करने में विफल रहती है, तो राज्यपाल राष्ट्रपति को इस संबंध में रिपोर्ट भेज सकता है। कैबिनेट की सहमति के बाद, राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। इसके अलावा, जब राज्य में किसी भी दल के पास बहुमत नहीं होता और गठबंधन की सरकार भी नहीं चल पाती, तो ऐसी स्थिति में भी राज्यपाल राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकता है।

राष्ट्रपति शासन के प्रभाव

राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद, राज्य सरकार की सभी शक्तियां राष्ट्रपति के अधीन आ जाती हैं। मुख्यमंत्री और उनकी मंत्री परिषद् को भंग कर दिया जाता है, और राज्य के प्रशासनिक कार्य राष्ट्रपति के द्वारा नियंत्रित होते हैं। इसके साथ ही, राष्ट्रपति राज्य विधायिका की शक्तियों का उपयोग करने के लिए संसद को भी नियुक्त कर सकता है। संसद तब राज्य के विधेयकों पर कार्य करती है और बजट प्रस्तावों को भी पारित करती है।

राष्ट्रपति शासन की अवधि

राष्ट्रपति शासन की अवधि शुरुआत में 6 महीने की होती है। इसे संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिलने पर 6-6 महीने के अंतराल में अधिकतम 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है। राष्ट्रपति शासन की यह व्यवस्था केंद्र सरकार को राज्य में असामान्य परिस्थितियों से निपटने के लिए आवश्यक शक्ति प्रदान करती है।

इस प्रकार, राष्ट्रपति शासन का प्रावधान संविधान के तहत राज्य के प्रशासन को नियंत्रित करने का एक महत्वपूर्ण उपाय है, जो राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने या राजनीतिक अस्थिरता के समय लागू किया जा सकता है।