डीयू के 100 साल / शताब्दी वर्ष समारोह में उपराष्ट्रपति ने कहा- मातृभाषा में होनी चाहिए प्रारंभिक शिक्षा

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। भारतीय शिक्षा प्रणाली को हमारी संस्कृति पर भी ध्यान देना चाहिए। यदि किसी बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में दी जाए तो वे उसे आसानी से समझ सकेंगे।

Vikrant Shekhawat : May 02, 2022, 09:27 AM
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। भारतीय शिक्षा प्रणाली को हमारी संस्कृति पर भी ध्यान देना चाहिए। यदि किसी बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में दी जाए तो वे उसे आसानी से समझ सकेंगे।


यदि किसी दूसरी भाषा में दी जाती है तो पहले उन्हें भाषा सीखनी होगी और फिर वे समझेंगे। मानव विकास, राष्ट्र निर्माण तथा सतत स्थायी वैश्विक समृद्धि सुनिश्चित करने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रविवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष समारोह में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपराष्ट्रपति बोल रहे थे। इस दौरान केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान व डीयू के कुलपति प्रो. योगेश सिंह भी उपस्थित रहे।


नायडू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी का भी जिक्र किया, जिसमें मोदी ने अदालतों में स्थानीय भाषाओं की आवश्यकता के बारे में भी बात की थी। उपराष्ट्रपति ने कहा कि अकेले अदालतें ही क्यों, इसे हर जगह लागू किया जाना चाहिए। स्थानीय भाषा में ही व्यवहार और कार्यवाही का मूल माध्यम होना चाहिए। 


हर गजट अधिसूचना और सरकारी आदेश स्थानीय भाषा में होने चाहिए, जिसे आम जनता समझ सके। उन्होंने विश्वविद्यालयों से आग्रह किया कि वे राष्ट्र के सामने मुद्दों के नए समाधान खोजें। शोध और अनुसंधान का मकसद लोगों के जीवन को खुशहाल और सुगम बनाना होना चाहिए। भारत के पास विश्व की सबसे अधिक युवा शक्ति है और हमारी जनशक्ति का उपयोग राष्ट्र निर्माण के लिए किया जाना चाहिए। नई शिक्षा नीति 2020 एक दूरदर्शी नीति है, जो देश के शिक्षा परिदृश्य में आमूल-चूल बदलाव सुनिश्चित करेगी।


हमें रोजगार पैदा करने वाला बनना होगा : प्रधान

समारोह के विशिष्ट अतिथि के तौर पर केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि पुरातन विश्वविद्यालयों के नाम ही हमारे सामने हैं, लेकिन देश में 100 वर्ष की उम्र पूरी कर चुके बहुत कम संस्थान हैं, जिनमें दिल्ली विश्वविद्यालय भी एक है।


उन्होंने डीयू को जीवंत विश्वविद्यालय की संज्ञा देते हुए कहा कि हमारी आजादी का इतिहास इस संस्थान से जुड़ा रहा है। शहीद भगत ने एक रात इस संस्थान में गुजारी। महात्मा गांधी इसके सेंट स्टीफंस कालेज में रहे। प्रधान ने कहा कि भविष्य में हमें रोजगार तलाशने वाले नहीं, बल्कि रोजगार पैदा करने वाले बनना होगा और डीयू का इसमें अहम योगदान होगा। 


देश के अमृतकाल में डीयू अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है, जब देश अपनी आजादी के 100 वर्ष मनाएगा तब डीयू अपनी स्थापना के 125 वर्ष मना रहा होगा। अगले 25 वर्षों में डीयू को शोध के क्षेत्र में बहुत कुछ करना होगा। डीयू की सराहना करते हुए कहा कि देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को डीयू ने सबसे पहले अपनाया है और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए एकल प्रवेश परीक्षा को लागू करने में भी पहल की है। उन्होंने देश में नए पाठ्यक्रम के लिए भी डीयू से योगदान का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति भारत की शिक्षा को जड़ों से जोड़ेगी और वैश्विक स्तर पर शिक्षा का भारतीय मॉडल स्थापित करेगी।  


दुनिया का प्रतिष्ठित संस्थान बन चुका है डीयू : कुलपति

दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने डीयू की स्थापना को लेकर कानूनी प्रक्रियाओं से लेकर इसके 100 वर्षों के स्वर्णिम इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि एक मई 1922 को 750 विद्यार्थियों व केवल तीन महाविद्यालयों के साथ शुरू हुआ यह विश्वविद्यालय आज दुनिया का प्रतिष्ठित संस्थान बन चुका है। अब डीयू में छह लाख छह हजार 228 विद्यार्थी, 91 कॉलेज और हजारों शिक्षक हैं। 40 हजार के बजट से शुरू हुआ यह विश्वविद्यालय आज 838 करोड़ से अधिक के बजट पर पहुंच चुका है।


समारोह के दौरान भारतीय डाक विभाग की दिल्ली मंडल की मुख्य पोस्ट मास्टर जनरल मंजु कुमार, डीन ऑफ कॉलेज प्रो. बलराम पाणी,  साउथ कैंपस निदेशक प्रो. प्रकाश सिंह, रजिस्ट्रार डॉ. विकास गुप्ता, समारोह समिति की कंवीनर प्रो. नीरा अग्निमित्रा, प्रोक्टर प्रो. रजनी अब्बी समेत अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।

छात्रों के दबाव के कारण डीयू को विभाजित करने की हुई थी कोशिश

दिल्ली विश्वविद्यालय विद्यार्थियों के नामांकन के मामले में सबसे बड़ा नियमित संस्थान है। वर्तमान मे करीब साढ़े सात लाख छात्र इसमें नामांकित है। यह छात्रों के नामांकन के मामले में भारत के सबसे बड़े नियमित विश्वविद्यालयों में से एक है, लेकिन 1960 के दशक की शुरुआत में करीब 25 हजार विद्यार्थियों को संभालने का तनाव विश्वविद्यालय पर इतना अधिक था कि इसे दो अलग-अलग विश्वविद्यालयों में विभाजित करने की कोशिश की गई थी। 


यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसके लिए एक विधेयक भी संसद में तत्कालीन शिक्षा मंत्री एमसी छागला द्वारा पेश किया गया था। छागला चाहते थे कि नए विश्वविद्यालय का नाम पंडित नेहरू (तत्कालीन प्रधानमंत्री) के नाम पर रखा जाए, लेकिन नेहरू जी को संस्था का नाम जीवित व्यक्ति पर रखने पर आपत्ति थी। इसलिए उन्होंने सुझाव दिया कि नए विश्वविद्यालय का नाम रायसीना रखा जाए। विधेयक को बाद में अप्रैल-मई 1964 में एक प्रवर समिति के पास भेजा गया। 1967 को पंडित नेहरू का निधन हो गया तो प्रवर समिति उनके नाम पर प्रस्तावित विश्वविद्यालय का नाम रखने के लिए और प्रतिबद्ध हो गई। 


हालांकि, बाद में यह सामने आया कि यदि नेहरू जी का नाम वास्तव में लागू किया जाना था तो यह बेहतर होता कि वह नया विश्वविद्यालय हो और उनके विचारों के लिए समर्पित हो। मौजूदा विश्वविद्यालय से नेहरू जी का नाम जोड़ना ठीक नहीं। कई अन्य लोग भी इस विचार के समर्थक नहीं थे। वे दिल्ली विश्वविद्यालय के साथ प्रतिष्ठा या अपनेपन की भावना के साथ संबंध विच्छेद करने के विचार से बहुत से उत्साहित नहीं थे। इस तरह विभाजन टल गया। - चंद्रचूड़ सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग (हिंदू कॉलेज) से बातचीत के आधार पर रिपोर्ट।


लोगो तैयार करने वाली गार्गी कॉलेज की छात्रा कृतिका सम्मानित

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के शताब्दी वर्ष का लोगो तैयार करने वाली कृतिका को रविवार को उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने सम्मानित किया। उन्हें सम्मान के रूप में 100 रुपये का सिक्का दिया गया। कृतिका ने 315 प्रतिभागियों को पीछे छोड़कर यह सम्मान हासिल किया है।   


मूलरूप से राजस्थान के कोटा की रहने वाली कृतिका डीयू के गार्गी कॉलेज से बीए प्रोग्राम की छात्रा हैं। उन्होंने बताया कि गत वर्ष नवंबर में डीयू के शताब्दी वर्ष के लोगो को लेकर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इसे लेकर 315 प्रतिभागियों ने लोगो तैयार किया। हालांकि, एक चरण में ही कृतिका का लोगो डीयू  प्रशासन को बहुत पसंद आया। इसे लेकर उन्हें मार्च में पता चला कि उनका अंतिम रूप से चयन हो गया है। 


कृतिका ने बताया कि जब उन्हें इस बात का पता चला कि शताब्दी समारोह में उन्हें उपराष्ट्रपति सम्मानित करेंगे तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। कृतिका को उनके माता-पिता के साथ सोमवार को समारोह में बुलाया गया, जहां उन्हें डीयू का 100 रुपये का सिक्का देकर सम्मानित किया गया।