Vikrant Shekhawat : Jul 14, 2023, 06:31 PM
Chandrayaan-3: हॉलीवुड की ‘अवतार’ फिल्म याद है आपको? हां वही जिसमें धरतीवासी दूसरे ग्रह के लोगों के रंग-ढंग में ढलकर वहां कई तरह की खोज करने जाते हैं. बाद में खुलासा होता है कि इस मिशन से दूसरे ग्रह पर मिलने वाले कई खनिजों और अन्य द्रव्यों को धरती पर भेजा जाता है, जिसका यहां अरबों डॉलर में कारोबार होता है. वहीं दूसरे ग्रह पर इंसानों की एक कॉलोनी भी बसाई जाती है. अब जब दुनिया के 3 देश पहले ही चांद पर अपने पैर जमा चुके हैं. भारत चंद्रयान-3 से ऐसा करने जा रहा है, तो क्या कोई ‘मून इकोनॉमी’ भी बन रही है? क्या है ये ‘मून इकोनॉमी’ और कैसे भारत इसका हिस्सेदार बनने जा रहा है, चलिए समझते हैं.भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन चांद की सतह पर लैंड करने में सफल रहे हैं. भारत का चंद्रयान-3 अगर सफल होता है, तो भारत इस क्लब में एंट्री करने वाला चौथा देश होगा. इसलिए ‘मून इकोनॉमी’ में भारत के साथ-साथ ये देश भी दावेदार रहने वाले हैं, क्योंकि उन्हें कहीं ना कहीं ‘पहल करने का फायदा’ मिलेगा ही. वैसे ‘अवतार’ तो एक साइंस-फिक्शन फिल्म थी, जिसमें सब कुछ तुरंत हो जाता है. लेकिन हकीकत में चांद पर ऐसा कुछ होने में शायद अभी दशकों का समय लगे. फिर भी क्या है ये ‘मून इकोनॉमी’?समझें क्या है ‘मून इकोनॉमी’ ?चंद्रमा पर कई देश अंतरिक्ष मिशन भेज रहे हैं. चांद से जुड़ी तमाम अंतरिक्ष गतिविधियां, प्रोडक्शन, स्पेस स्टेशन बनाना, चांद की सतह से मिलने वाले संसाधनों का इस्तेमाल और एक्सचेंज, डेटा, चांद पर टूरिज्म, चांद पर लैंड की बुकिंग इत्यादि सभी ‘मून इकोनॉमी’ का हिस्सा हैं. पीडब्ल्यूसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चांद पर किसी भी रूप में मानव की उपस्थिति असल में ‘मून इकोनॉमी’ है.‘मून इकोनॉमी’ के मूल तीन पड़ाव हैं. पहला चांद पर अंतरिक्ष मिशन भेजकर अध्यनन करना, मानव को भेजना, पर्यटन उद्योग खड़ा करना. दूसरे चरण में चांद से मिली जानकारी का कमर्शलाइजेशन करना, चांद पर स्पेस स्टेशन बनाना, खनिज संसाधनों का व्यापार करना इत्यादि और तीसरे चरण में मानव को चांद पर बसाने का काम करना.एलन मस्क से लेकर जेफ बेजोस तक की दावेदारीदुनिया के कई देश इस समय इंसान को ‘चांद’ पर भेजने की कवायद में जुटे हैं. भारत का चंद्रयान-3 मिशन भी इसका एक हिस्सा है. अगर चंद्रयान-3 सही से चांद की सतह पर लैंड होता है तो भारत भी इंसान को चांद पर भेज सकेगा, जैसा कि अमेरिका 1969 में कर चुका है. जेफ बेजोस के ‘ब्लू ऑरजिन’ और एलन मस्क के ‘स्पेसएक्स’ बिजनेस का मकसद ही इंसान को चांद पर भेजना है.कितनी बड़ी है ‘मून इकोनॉमी’?पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट कहती है कि 2040 तक 1000 एस्ट्रोनॉट यानी अंतरिक्ष यात्री चांद पर रहेंगे. इसमें से 40 करीब 2030 तक ही पहुंचने की उम्मीद है. ऐसे में चांद पर जाने के लिए जरूरी उपकरण, स्पेस शटल, टेलीस्कोप के साथ-साथ चांद से जुड़े कई टीवी शो और अन्य कार्यक्रम इत्यादि ‘मून इकोनॉमी’ का हिस्सा हो सकते हैं. इससे बड़े पैमाने पर रोजगार भी पैदा होगा. चांद से जुड़ी ये इकोनॉमी 634 अरब डॉलर तक की हो सकती है.भारत कैसे बनेगा ‘मून इकोनॉमी’ का दावेदार?भारत दुनिया का चौथा देश बनने जा रहा है जो चांद की सतह पर लैंड करेगा. इस तरह चांद से जुड़ी इकोनॉमी में ‘फर्स्ट मूवर’ होने का एडवांटेज भारत को मिलेगा. इसके अलावा भारत के अंतरिक्ष मिशन की कॉस्ट दुनिया के कई देशों के मुकाबले कम पड़ती है, इसलिए भारत दुनिया के कई अन्य देशों के लिए चांद पर मिशन भेजने या उपग्रह लॉन्च करने की इकोनॉमी का बड़ा हिस्सा ले सकता है. इसी के साथ भारत चांद पर इस्तेमाल होने वाले कई उपकरणों को बनाने की पसंदीदा जगह बन सकता है.