Share Market Crash / अबतक भारतीय शेयर बाजार 8 बार हुआ क्रैश, निवेशक हैं तो जरूर इतिहास से सीखें ये बातें

भारतीय शेयर बाजार में गिरावट का दौर जारी है, जिससे निवेशकों के लाखों करोड़ डूब गए हैं। यह पहली बार नहीं है, जब भारतीय बाजार क्रैश हुआ है। इतिहास गवाह है कि हर्षद मेहता घोटाले (1992), एशियाई वित्तीय संकट (1997), डॉट-कॉम बबल (2000), वैश्विक वित्तीय संकट (2008) और कोविड-19 (2020) जैसी घटनाओं से बाजार बुरी तरह प्रभावित हुआ।

Share Market Crash: भारतीय शेयर बाजार में भारी गिरावट का दौर जारी है, जिससे निवेशकों के लाखों करोड़ रुपये डूब चुके हैं। भविष्य में बाजार की स्थिति कैसी रहेगी, यह कहना मुश्किल है, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब बाजार इस तरह क्रैश हुआ है। अतीत में भी कई बार भारतीय बाजार को भारी गिरावट का सामना करना पड़ा है और हर बार यह फिर से उभरा है। आइए जानते हैं कि भारतीय शेयर बाजार में अब तक कितनी बार बड़ी गिरावट आई और उसके बाद रिकवरी कैसे हुई।

1. हर्षद मेहता घोटाला (1992)

1992 में हर्षद मेहता घोटाले के कारण शेयर बाजार में बड़ी गिरावट आई। इस घोटाले के बाद सेंसेक्स अपने उच्चतम स्तर से 56% तक गिर गया। 1992 में सेंसेक्स 4,467 से गिरकर अप्रैल 1993 में 1,980 पर आ गया। इस गिरावट के बाद बाजार को संभलने में दो साल लगे।

2. एशियाई वित्तीय संकट (1997)

1997 में एशियाई वित्तीय संकट के कारण भारतीय बाजार पर भी असर पड़ा। सेंसेक्स दिसंबर 1997 में 4,600 से गिरकर 3,300 अंक तक आ गया, यानी 28% की गिरावट दर्ज की गई। बाजार को वापस उबरने में लगभग एक वर्ष का समय लगा।

3. डॉट-कॉम बबल बर्स्ट (2000)

साल 2000 में आईटी सेक्टर में भारी निवेश के कारण डॉट-कॉम बबल बना, लेकिन जल्द ही यह बबल फूट गया। फरवरी 2000 में सेंसेक्स 5,937 से गिरकर अक्टूबर 2001 में 3,404 पर आ गया। लगभग 43% की गिरावट के बाद बाजार ने धीरे-धीरे रिकवरी की।

4. लोकसभा चुनाव (2004)

2004 के आम चुनावों में यूपीए गठबंधन की अप्रत्याशित जीत ने बाजार को झटका दिया। 17 मई 2004 को सेंसेक्स में 15% की गिरावट आई और अत्यधिक बिकवाली के कारण कारोबार रोकना पड़ा। हालांकि, दो से तीन सप्ताह के भीतर बाजार फिर से संभल गया।

5. वैश्विक वित्तीय संकट (2008)

अमेरिका में लेहमैन ब्रदर्स के दिवालिया होने और सबप्राइम संकट के कारण वैश्विक मंदी आई। जनवरी 2008 में सेंसेक्स 21,206 पर था, जो अक्टूबर 2008 तक 8,160 पर आ गया। यानी 60% की गिरावट हुई। हालांकि, सरकार के राहत पैकेज और नीतियों के कारण बाजार ने 2009 तक फिर से मजबूती पकड़ ली।

6. वैश्विक मंदी (2015-2016)

2015-16 में चीन के बाजार में गिरावट, कमोडिटी की कीमतों में गिरावट और घरेलू एनपीए संकट के कारण सेंसेक्स जनवरी 2015 में 30,000 से गिरकर फरवरी 2016 में 22,951 पर आ गया। 24% की गिरावट के बावजूद, मजबूत आर्थिक स्थिति के कारण भारतीय बाजार 12-14 महीनों में उबर गया।

7. कोविड-19 महामारी (2020)

मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक लॉकडाउन हुआ, जिससे शेयर बाजार में भारी गिरावट आई। सेंसेक्स जनवरी 2020 में 42,273 से गिरकर मार्च 2020 में 25,638 पर आ गया, यानी 39% की गिरावट हुई। लेकिन सरकार की आक्रामक मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों के कारण वर्ष के अंत तक वी-आकार की रिकवरी देखने को मिली।

8. वर्तमान आर्थिक संकट (2025)

मौजूदा समय में भारतीय शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी जा रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा टैरिफ बढ़ाने की घोषणा, भारतीय जीडीपी में सुस्ती की आशंका, रुपये की कमजोरी और विदेशी निवेशकों की बिकवाली इसके प्रमुख कारण हैं। बीते पांच महीनों में सेंसेक्स 11.54% और निफ्टी 12.65% तक गिर चुका है, जिससे निवेशकों के 92 लाख करोड़ रुपये डूब गए हैं।

निष्कर्ष: गिरावट से सीख और रणनीति

इतिहास गवाह है कि भारतीय शेयर बाजार हर गिरावट के बाद उबरता रहा है। हर क्रैश के बाद निवेशकों को दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और घबराने के बजाय सोच-समझकर निवेश करना चाहिए। मजबूत कंपनियों में निवेश, बाजार के उतार-चढ़ाव को समझना और धैर्य रखना—इन रणनीतियों से निवेशक हर संकट के बाद लाभ उठा सकते हैं।