Vikrant Shekhawat : Feb 20, 2020, 05:34 PM
Maha Shivaratri 2020: महाशिवरात्रि के अवसर पर महादेव की आऱाधना करने से मानव के सभी पापों का नाश हो जाता है और उसको महादेव की कृपा मिलती है। भगवान आशुतोष अपने भक्त को मनचाहा वरदान देते हैं। कैलाशपति जंगली वनस्पतियों से प्रसन्न हो जाते हैं और भोले भक्तों का भंडार भर देते हैं। महाशिवरात्रि देवादिदेव महादेव की आराधना का सबसे उत्तम पर्व है। इस दिन की गई पूजा का सर्वोत्तम फल भक्त को प्राप्त होता है।
ऐसे करें शिवपूजा का प्रारंभ
महादेव की आराधना करने के लिए सबसे पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर सफेद वस्त्र धारण करें। शिव आराधना में दिशा और समय का भी बड़ा महत्व रहता है। इसका ध्यान रखने से पूजा का पूरा फल मिलता है। शिवजी की पूजा सुबह पूर्व की ओर मुंह करके करना चाहिए। शाम के समय शिवजी की पूजा पश्चिम की ओर मुंह करके करना चाहिए। रात्रि में शिवजी की पूजा उत्तर दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए। पूजा आरंभ करने से पहले शिवपूजा का संकल्प लें। इसके लिए जल, फूल और चावल हाथ मे लेकर तिथि, वार, नाम, गोत्र आदि बोलकर जल को जमीन पर छोड़ दें। शिवालय में जाकर या घर में शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। तांबे के लोटे में गंगाजल या पवित्र नदी का जल या शुद्ध जल लें। जल चढ़ाने के बाद शिवलिंग पर चंदन से त्रिपुण्ड बनाएं। अबीर, गुलाल, अक्षत, बेलपत्र, फूल, धतूरा, बेरफल, तुलसीदल, गाय का कच्चा दूध, शुद्ध घी, गन्ने का रस, ऋतुफल, पंच मेवा, पंचामृत, चंदन का इत्र, मौली, जनेऊ, फलों का रस, मिठाई, शमीपत्र, आंकड़ा आदि समर्पित करें।
निशीथ काल में शिवपूजन है सर्वश्रेष्ठ
महाशिवरात्रि का पूजन निशीथ काल में करना श्रेष्ठ फलदायी होता है। रात्रि का आठवें प्रहर को निशीथ काल कहा जाता है। वैसे यह पूरा दिन शिव को समर्पित है इसलिए किसी भी समय विधि-विधान से शिव आराधना की जा सकती है। पूजा करने के साथ शिवमंत्रों का जप करते रहना चाहिए। इससे भक्त स्वयं को शिव के ज्यादा नजदीक पाता है। गाय के घी का दीपक जलाएं और धूपबत्ती प्रज्जवलित करें। पूजा के समापन पर दीप से आरती करें और उसके बाद कर्पूर से आरती करें और उपस्थित शिवभक्तों में प्रसाद का वितरण करें।
महाशिवरात्रि तिथि और शुभ मुहूर्त
प्रारंभ - 21 फरवरी शुक्रवार को शाम 5 बजकर 20 मिनट से
समापन - 22 फरवरी शनिवार को सात बजकर 2 मिनट तक
महाशिवरात्रि उपवास
महाशिवरात्रि के दिन उपवास का भी बड़ा महत्व है। इस दिन शिवभक्त उपवास रखते हैं। मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने से महादेव की कृपा प्राप्त होती है। उपवास करने के लिए एक दिन पहले से तैयारी कर लेना चाहिए। व्रत का संकल्प लेकर व्रत का प्रारंभ करना चाहिए और अपनी सामर्थ्य और श्रद्धा के अनुसार व्रत करा चाहिए। इससे भोले के भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती है। व्रत के दिन फलाहार लिया जा सकता है।
ऐसे करें शिवपूजा का प्रारंभ
महादेव की आराधना करने के लिए सबसे पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर सफेद वस्त्र धारण करें। शिव आराधना में दिशा और समय का भी बड़ा महत्व रहता है। इसका ध्यान रखने से पूजा का पूरा फल मिलता है। शिवजी की पूजा सुबह पूर्व की ओर मुंह करके करना चाहिए। शाम के समय शिवजी की पूजा पश्चिम की ओर मुंह करके करना चाहिए। रात्रि में शिवजी की पूजा उत्तर दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए। पूजा आरंभ करने से पहले शिवपूजा का संकल्प लें। इसके लिए जल, फूल और चावल हाथ मे लेकर तिथि, वार, नाम, गोत्र आदि बोलकर जल को जमीन पर छोड़ दें। शिवालय में जाकर या घर में शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। तांबे के लोटे में गंगाजल या पवित्र नदी का जल या शुद्ध जल लें। जल चढ़ाने के बाद शिवलिंग पर चंदन से त्रिपुण्ड बनाएं। अबीर, गुलाल, अक्षत, बेलपत्र, फूल, धतूरा, बेरफल, तुलसीदल, गाय का कच्चा दूध, शुद्ध घी, गन्ने का रस, ऋतुफल, पंच मेवा, पंचामृत, चंदन का इत्र, मौली, जनेऊ, फलों का रस, मिठाई, शमीपत्र, आंकड़ा आदि समर्पित करें।
निशीथ काल में शिवपूजन है सर्वश्रेष्ठ
महाशिवरात्रि का पूजन निशीथ काल में करना श्रेष्ठ फलदायी होता है। रात्रि का आठवें प्रहर को निशीथ काल कहा जाता है। वैसे यह पूरा दिन शिव को समर्पित है इसलिए किसी भी समय विधि-विधान से शिव आराधना की जा सकती है। पूजा करने के साथ शिवमंत्रों का जप करते रहना चाहिए। इससे भक्त स्वयं को शिव के ज्यादा नजदीक पाता है। गाय के घी का दीपक जलाएं और धूपबत्ती प्रज्जवलित करें। पूजा के समापन पर दीप से आरती करें और उसके बाद कर्पूर से आरती करें और उपस्थित शिवभक्तों में प्रसाद का वितरण करें।
महाशिवरात्रि तिथि और शुभ मुहूर्त
प्रारंभ - 21 फरवरी शुक्रवार को शाम 5 बजकर 20 मिनट से
समापन - 22 फरवरी शनिवार को सात बजकर 2 मिनट तक
महाशिवरात्रि उपवास
महाशिवरात्रि के दिन उपवास का भी बड़ा महत्व है। इस दिन शिवभक्त उपवास रखते हैं। मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने से महादेव की कृपा प्राप्त होती है। उपवास करने के लिए एक दिन पहले से तैयारी कर लेना चाहिए। व्रत का संकल्प लेकर व्रत का प्रारंभ करना चाहिए और अपनी सामर्थ्य और श्रद्धा के अनुसार व्रत करा चाहिए। इससे भोले के भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त होती है। व्रत के दिन फलाहार लिया जा सकता है।