देश / जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं लिव-इन रिलेशनशिप: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दो लिव-इन कपल्स की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं। बकौल कोर्ट, "लिव-इन रिलेशनशिप को सामाजिक नैतिकता के पैमाने पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत स्वायत्तता के नज़रिए से देखने की ज़रूरत है।" कपल्स ने लड़कियों के परिजनों पर उनके जीवन में दखल देने का आरोप लगाया है।

Vikrant Shekhawat : Oct 30, 2021, 07:44 AM
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि लिव इन रिलेशनशिप अब जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन चुका है इसलिए इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है न कि सामाजिक नैतिकता की दृष्टि से। यह निर्णय न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे दो युगल की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि पुलिस याचियों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए बाध्य हैं। कोर्ट ने संबंधित जिलों की पुलिस को निर्देश दिया है कि याची यदि सुरक्षा की मांग करते हैं तो पुलिस कानून के मुताबिक अपने दायित्व का पालन करें।

दोनों याचिकाओं में याचियों का कहना था कि वे बालिग हैं और अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं लेकिन लड़कियों के परिवार वाले उनके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप कर रहे हैं। याचिकाओं में सुरक्षा दिलाए जाने की मांग की गई थी। एक याचिका कुशीनगर की शायरा खातून व उसके लिव इन पार्टनर और दूसरी मेरठ की जीनत परवीन व उसके लिव इन पार्टनर की थी। दोनों का कहना था कि उन्होंने स्थानीय पुलिस से मदद मांगी थी। लेकिन कोई मदद नहीं मिली। उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया जबकि उनकी जान को खतरा है उन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं। कोर्ट ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप अब जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है, यह बात सुप्रीम कोर्ट ने भी मानी है इसलिए इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के चश्मे से देखने की जरूरत है जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन व स्वतंत्रता के दायरे में आता है। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 में दी गई जीवन की स्वतंत्रता की गारंटी का पालन हर हाल में किया जाना चाहिए।